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एक बार फिर वो दिन आये
जहा से निकलना नामुमकिन लगा
खुद को इतना अकेला पाएंगे कि
यह गोर अंधेरा ही पसंद आने लगा
सबका साथ में रहने पर भी
खुदको बहुत अकेलापन सा लगा
मन में अशांति तो थी ही
साथ में ही ना जाने क्यूँ किसी के आस में लगा रहा
क्या ही पता था कि इतने अकेले हो जाएंगे कि
फिर से रात में आंसू के बिना रहा नहीं जाएगा

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