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इश्क- ए-पैमान है मुसाफिर
हम डूबते चले गए
बस तुम्हारे साथ से हम दुनिया पार कर गए
जब जब हम नीचे गिरे तुमने हमे बचाया
कहीं पर भटकने के वज़ह से तुमने ही राह दिखाया
आखिरी सास को भी तुमने बढ़ाया
और दुआ में तो सिर्फ तुमने हमारा साथ माँगा
इतने व्रत किए हमारे बंधन के नाम
के हम सातों जन्म एक हो जाए
देखते ही देखते तुम्हारा नाम में मेरा नाम आ जाए
इतना ही था यह मुसाफिर का राज़ की तुम
इश्क करने वाले को समझ ना पाए
सोचा तुमने इश्क के समुंदर में डूबे ना
मगर तुम रह ना पाए 

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