आज हमारे वैचारिक मंथन का विषय है "वैश्विक अशांति का कारण नैतिक मूल्यों का पतन "है।यह विषय अपने आपने बदलती दुनियां के स्वरूप की ओर इंगित करता है।जिसमे हमने अपने को इस कदर बदलने का प्रयास किया कि अपने मूल स्वरूप को ही खो बैठे।
मान्यवर
जियो और जीने दो सबको
यही हमारा नारा ।
हमें पड़ोसी भी लगता था
निज प्राणों से प्यारा ।।
यही हमारी पुरातन जीवन शैली थी ,हम परस्पर मेल मिलाप से रहते थे। सादा जीवन उच्च विचार हमारे जीवन से जुड़ा था।प्रदर्शन हमारे स्वभाव में न था,हमारे चिंतन में अपना विकास तो था किंतु किसी का विनाश हमारी कल्पना में भी न था।अपनी रक्षा के लिए हमने धनुष बाण से तलवार,भाला,चाकू आदि बनाए,अपने उदर पूर्ति के लिए खेती की।स्वास्थ्य रक्षा के लिए जड़ी बूटी से दवाइयां भी बनाई। हम भोग में नहीं त्याग में विश्वास करने वाले लोग थे।
महोदय
सूर्य न बदला चांद न बदला
न बदला आसमान ।
कितना बदल गया इंसान ।।
किसी हिंदी सिनेमा के गीत का यह मुखड़ा हमारी वैश्विक अशांति के मूल कारण की ओर इंगित कर रहा है। हम त्याग से भोग की ओर चले गए,हम अपने सुख से सुखी रहने की बजाय दूसरे के सुख से दुखी होने लगे। प्रदर्शन की आंधी में हम इतने भागे कि अपने हित के अलावा हमे कुछ भी न दिखाई दिया।हमने परमाणु बम बनाया,हिरोशिमा और नागासाकी में जलती मनुष्यता का तांडव देखा।रसायनिक हथियार बनाए ,दो दो विश्व युद्धों की विभीषिका में जले।धरती के लिए हम कई बार लड़े और मरे भी।अधिक अन्न उपजाने की होड़ में हानिकारक रसायनिक खादों का इस तरह प्रयोग किया कि बीमारों की फौज खड़ी कर दी।विलासिता के साधन जुटाने में हमने मानवीय मूल्यों को तार तार कर दिया।रिश्तों की पवित्रता के साथ साथ हमने प्रेम,करुणा,दया,सहयोग जैसे मूल्यों की भी अनदेखी की।दुनियां स्वार्थ के बाजार की अनैतिक स्पर्धा में इस तरह कूद गई कि उसके लिए नैतिकता, सदभाव,मदद,प्रीति जैसे भाव मंच पर भाषण के विषय बनकर रह गए जिनका यथार्थ से कोई नाता न रहा।
शायद इसी लिए हिंदी के बड़े कवि गोपाल दास नीरज को कहना पड़ा कि
"अब तो मजहब कोई
ऐसा लाया जाए ।
जिसमे इंसान को इंसान
बनाना सिखाया जाए।।"
मान्यवर
जब से हमने नैतिक मूल्यों की आहुति दी है तब से हम अशांति,तनाव और कलह में जी रहे हैं। हर आदमी दवाई पर निर्भर है,रक्तचाप,ह्रदय रोग, मधुमेह इन सबके मूल कारण में तनाव है और तनाव अशांति का प्रतीक है।
हमें अगर मानव की शक्ति और उसके विवेक की रक्षा करनी है तो नैतिक और मानवीय जीवन शैली को आत्म सात करना होगा।हम भोग से फिर त्याग की ओर चलें तभी वैश्विक शांति का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।