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हमारे समय में गर्मी की छुट्टियो का मतलब होता था, नानी का घर और जब नानी के घर ना जाने को मिले तब हमे याद आता था मासी का घर I मेरी मासी का घर भी मेरे लिए उन्ही घरो में से एक था जहाँ जाने का सोच कर ही मन में गुदगुदी होने लगती थी, आँखो की नींदे गायब रहती थी I हमारे समय में मोबाइल फोन नही हुआ करते थे तो बस एक ही बार चिट्ठी या किसी आते जाते पहचान वाले के ज़रिए संदेश दे दिया जाता कि मैं मासी के घर जा रही हूँ I

मुझे आज भी याद है, इस बार सावन के महीने में मुझे मासी के घर जाना था, मासी के घर जाने का उत्साह इतना था कि स्कूल ना जाने का अफ़सोस बिल्कुल भी मन में नही था I मासी के घर के पीछे एक बहुत बड़ा बगीचा था जिसमे हर साल सावन आते ही झूला डाल दिया जाता और सारे मोहल्ले के बच्चे बारी बारी से उस झूले पर झूलते और झूले के हर झोके के साथ इतना खुश हो जाते, मानो कोई खजाना हाथ लग गया हो I उस समय में बच्चो के पास आज की तरह खेलने के लिए वीडियो गेम, रिमोट कंट्रोलर खिलोने, यू ट्यूब वीडियोस ये सब नही हुआ करते थे I मनोरंजन के नाम पर एक दूरदर्शन ही था जिस पर पूरा परिवार एक साथ बैठकर रात के समय में टीवी देखा करता था I गर्मियो में आम खाते खाते पूरे परिवार के साथ दूरदर्शन देखना भी अपने आप में बड़ा ही मज़ेदार एहसास होता था I

सावन के झूले के साथ मुझे मासी के घर पर हर रोज गरम गरम जलेबिया खाने को मिलती I दीदी और मैं एक दूसरे के फ़ेवरेट थे, जितना इंतज़ार मुझे दीदी से मिलने का होता उतना ही दीदी को मुझसे मिलने का होता I दीदी के सारे खिलौने मेरे हो जाते जिनसे सिर्फ़ मुझे ही खेलने का हक होता और दीदी बड़े प्यार से मेरे लिए अपने सारे खिलौने निकाल देती, अपनी खाने की चीज़ से एक एक्सट्रा हिस्सा मेरे लिए रखती, साथ में खाना, रात में छत पर सोते और तारो को देखते हुए दीदी से ढेर सारी बातें करते करते नये और अतरंगे सपने संजोना, यही हमारा पसंदीदा खेल होता था I

झूला, मासी के घर के पीछे वाले बगीचे में डाला जाता था तो मेरा तो उस पर पूरा मालिकाना अधिकार होता I दीदी स्कूल जाती और मैं हर रोज सुबह जल्दी उठकर अपनी जलेबिया लेकर उस पर बैठ जाती और सावन के कुछ आधे अधूरे टूटे फूटे गीत गाते हुए जलेबिया खाती, बहुत ही आनंद आता था I जब कभी बारिश आ जाती तो उस सुहाने मौसम में सावन के झूले का मजा दुगना हो जाता I जितनी बार मेरा झूला ऊपर जाता, उतनी ही बार मुझे लगता कि आज आसमान छू लूँगी और जब झूला नीचे आता तो लगता बगीचे के सारे फूलो की खूशबू को समेट कर फिर से और ज़्यादा ऊँचा जाकर मुझे बादलो को खूशबू बाँट आनी हैं I

आस पास के सभी बच्चे अपने स्कूल से आने के बाद मासी के झूले पर झूलने आ जाते I एक दिन ऐसे ही सुहाने मौसम में सभी बच्चे हर रोज की तरह अपनी- अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे I काले बादल थे और शायद बहुत तेज बारिश होने वाली थी तो सभी बच्चो को अपने अपने घरो से जल्दी झूलकर वापिस अपने घर आने की हिदायत मिली थी तो सभी जल्दी- जल्दी अपनी बारी आने का इंतज़ार कर रहे थे I आज रोज आने वाले बच्चो में एक बच्चा था जो आज ही दिखा, वो एक छोटी सी लड़की थी शायद 8-9 साल की होगी I झूले से हटकर मेरा ध्यान उस लड़की पर गया, उसके हाथ में नीले और गुलाबी रंग की चूड़ियाँ थी, बाल उलझे हुए थे मगर बालो में उसने लाल रंग का रिबन लगाया हुआ था, उसने एक फ्रॉक पहनी थी जो बहुत मटमैली सी थी, शायद उसने काफ़ी दिनो से वही फ्रॉक पहनी हुई थी I उसके पैर नंगे थे, या तो उसकी चप्पल टूट गयी थी या फिर वो पहन कर नही आई थी I उस बच्ची की आँखो में बहुत मासूमियत और झूले को देखकर एक अलग ही चमक थी I उसकी आँखो की चमक झूले के लिए वही थी जो मेरी आँखो में झूले को देखकर होती I हर बार अगर झूला ऊपर जाता तो उसकी नज़रे भी ऊपर चली जाती और अगर झूला नीचे आता तो उसकी नज़रे भी साथ साथ नीचे आ जाती और जैसे ही झूला और तेज हवा में जाता वो खुशी से उछल पड़ती, अपने छोटे छोटे हाथो से तालियाँ बजाती और उसके चेहरे पर उसके कद से ज़्यादा खुशी आ जाती I मैं उस छोटी सी लड़की को एकटक देख रही थी और मुझे आज झूले को देखने से ज़्यादा उस लड़की की मुस्कान को देखना अच्छा लग रहा था I मैं इस सुंदर एहसास को महसूस कर ही रही थी कि अचानक तेज बारिश होने लगी और सभी बच्चो के साथ वो लड़की भी वहाँ से भाग गयी I

वो लड़की अब हर रोज बगीचे में आने लगी थी, हर रोज वो उसी फ्रॉक में दिखती और हर रोज उसके मन में झूला झूलने की वही चाह और आँखो में वही चमक होती I अब, मेरा ध्यान झूले की जगह उसी लड़की पर रहता I वो छोटी सी लड़की हर बार कोशिश करती कि इस बार झूला उसे मिल जाए और वो भी सावन के झूले के मज़े ले पाए पर आस पास के बच्चे उसे देखते और उसके गंदे कपड़ो पर जैसे ही उनकी नज़र जाती वो उसे झूले के पास खड़ा भी नही होने देते I ग़लती शायद उन बच्चो की नही थी, हमारी परवरिश ही ऐसे की गयी हैं कि सिर्फ़ साफ- सुथरे बच्चो के साथ खेलना, गंदे बच्चो से दूर रहना तो बाकी सभी बच्चो के लिए उस छोटी सी लड़की के गंदे कपड़े और उलझे बाल ही उसे गंदी लड़की बना देते थे और इसी वजह से सब उसे झूले से दूर कर देते I छोटी सी लड़की को जब वहाँ से हटाया जाता तो पहले तो वो बड़ी रूआसी हो जाती पर जैसे ही वो झूले को देखती , उसकी आँखो की चमक वापिस आ जाती I

आज तीज का दिन था, सभी लड़कियो के हाथ मेहन्दी से सजे थे और हम सभी बच्चे सुंदर -सुंदर कपड़े पहन कर झूले के आस पास इकट्ठे थे और झूले के मज़े ले रहे थे I आज मुझे वो लड़की नही दिखी, मेरी नज़रे उस लड़की को खोज रही थी I कुछ देर तक मेरी नज़रे जब उसकी राह देखती- देखती थक गयी तो मैं बहुत मायूस हो गयी, मैं बिना झूला झूले ही घर को चल दी I तभी मुझे वो लड़की मासी के घर के बाहर अपनी माँ के साथ दिखी I मासी उसकी माँ को तीज पर मिठाई दे रही थी, मैने जैसे ही छोटी लड़की को देखा मेरे मन में हज़ार रंग बिखर गये और मैं भाग कर उस लड़की के पास गयी और कहा, “ झूला झूलना हैं?” वो छोटी सी लड़की जैसे मेरे पूछने का ही इंतज़ार कर रही थी, उसने तुरंत कहा, “हाँ, मुझे झूलना है मगर आप मुझे झूला झूलने दोगी?” बिना उसके मासूम सवाल का जवाब दिए ही मैने उसका हाथ पकड़ा और हवा के साथ उसे बगीचे के झूले पर ले गयी और सबसे कहा, ये मेरी मासी के बगीचे का झूला हैं, आज सिर्फ़ हम झूलेंगे इस झूले पर और ये कहकर मैने उस छोटी सी लड़की को झूले पर बिठा दिया I

वो छोटी सी लड़की भी कूद कर खुशी -खुशी उस झूले पर बैठ गयी और अपने चेहरे पर इतनी सारी खुशिया बिखेरती हुई हवा के साथ साथ आसमान को उसी तरह छूने लगी जैसे मैं छू लिया करती हूँ, वो फूलो को उसी तरह महसूस करने लगी जैसे मैं किया करती हूँ I थोड़ी देर में बारिश आ गयी, मैं भाग कर बगीचे से जाने लगी, मैने उस से कहा कि जल्दी उतर जा झूले से, बारिश शुरू हो गयी हैं, भीग जाओगी तुम मगर उस छोटी सी लड़की ने कहा, नही दीदी, आज झूला मेरा है आज मुझे झूलने दो और वो हवा और बारिश के साथ साथ कुछ कुछ गुनगुनाती हुई बस झूला झूले जा रही थी और मैं दूर खड़ी कभी उस लड़की को देखती, कभी उसके चेहरे की मासूम सी मुस्कान को, कभी उसकी आँखो की चमक को और कभी सावन के झूले को जिस पर आज सिर्फ़ उसे झूलना था I

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