हर रोज़ शाम में
अपनी तन्हाई को साथ लिए
टहलने निकल जाते है
दिन भर की नाकामियां और बेबसी भी होती है साथ
तो ज़ादा अकेले नहीं होते है
फिर ज़रा दूर एक बस स्टॉप है
वहाँ थोड़ी देर बैठ जाते है रोज़ाना
एक अनजान भीड़ के साथ
और ये दिखाते है की हम को इंतज़ार है उस बस का
जिस बस का इंतज़ार सब कर रहे है
फिर बस आती है
सब चले जाते है
सिर्फ हम रुके रहते है
पर हमारी बस आती ही नहीं
फिर मायूस कदमो से उठते है
और घर की जानिब रवाँ होते है
ये सोचते सोचते
की ये इंतज़ार कब ख़तम होगा..?
जवाब नहीं मिलता इसका
बस ये इंतज़ार जारी रहता है
रोज़ाना
हर दिन
हर शाम
ये इंतज़ार जारी रहता है
ये इन्तिज़ार जारी रहता है