तुमने ये कभी सोचा,
सोच जो हमारी है
अब नहीं हमारी है
सोचते है अब वो हम
जो किसी ने सोचा है
और वो ये चाहता है
हम भी उस तरह सोचे
अब न अपने बारे में
कुछ भी हम ज़रा सोचे
अब ये तुम कहोगे की बात बे मआनी है
पर ज़रा सा सोचो तो क्या अजब कहानी है
दिन सुबह निकलता है,
और फिर मोबाइल के पास हम निकलते है
देखते है सब कुछ हम
सोचते नहीं है कुछ
देखते है वो सब कुछ
जो नहीं ज़रूरी है
देखते है पर ऐसे
बस वही ज़रूरी है
सोचते नहीं है हम
और वक़्त जाता है
ज़ेहन बंद होता है
और होता जाता है
और हम समझते है
बस यही मसर्रत है
बस यही क़नाअत है
फिर हम अपने कामो
के पीछे लग से जाते है
काम करते करते पर
सोचते है बस वो सब
जो भी हमने देखा है
"ये बुरा सा बंदा है,
ये भला सा बंदा है,
ये सितारा झूठा है,
वो सितारा अच्छा है,
ये जो है अदाकारा
कितनी अच्छी दिखती है,
कपड़े कितने अच्छे है,
बात कितनी अच्छी है,
ये खिलाड़ी जो है ना
वो बहुत बुरा सा है,
वो जो इक खिलाड़ी है
मुझको बस वो प्यारा है,
ये मज़हब बुरा सा है
वो मज़हब भला सा है"
और अनगिनत बाते
जिसका राब्ता अपने
रोज़ ओ शब से कुछ न हो
ज़िंदगी से कुछ न हो
जो अगर नहीं भी हो
फ़र्क़ कुछ न आएगा
अपनी ज़िंदगानी में
साँसों की रवानी में
सोचते ही जाते है...
सोचते ही जाते है....
रोज़ ओ शब ये होता है
बस ये सोच होती है
और अपने बारे मे
कोई कुछ अगर पूछे
ज़िंदगी के बारे मे
कोई कुछ अगर पूछे
चुप सी एक लगती है
और ख़लाओ में बस हम
देखते ही जाते है
क्या जवाब देना है
कुछ पता नहीं होता
कुछ ख़बर नहीं होती,
अपने घर मे रोटी है?
दिल मे कुछ कनाअत है?
पीछे क्या किया हमने?
आगे और क्या करना है?
किस तरह से जीना है?
प्यार कैसे करना है?
क्या कभी मोहब्बत की?
ईश्क़ की इबादत की?
बिन तवक़्क़ो क्या तुमने
लब पे है हँसी बाँटी?
कुछ ख़बर नहीं होती अपने बारे में हमको
बात ये डराती है
हम क़फ़स में है लेकिन
कुछ पता नहीं हमको
जब पता नहीं हमको
क़ैद में है रूह अपनी
फिर रिहाई कैसे हो
फिर रिहाई किस से हो
क्या तुम्हें पता है ये ????