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वो स्त्री जिसने संघर्षों का है श्रृंगार किया,

अपनी पहचान बनाने को अपनों का ही त्याग किया।
अनेक असफलताओं में अपनी एक सफलता खोजती, 

रोज अपने सपनों को बुनती और उधेड़तीं।

चाहती है दुनिया उसके पंखों को काटना,
उसके सपनों को सीमित सीमाओं में बाँधना।

भीतर अपने आप से, बाहर इस समाज से लड़ती,
हर रोज थक करती, फिर भी उठकर पुनः कोशिश करती।

चाहती तो चुन सकती थी मौन और आराम,
पर उसने चुनी आवाज़ बनाने अपना खुद का नाम।

उसका हर प्रयास सफल हो, माना ये जरूरी नहीं,
पर कोशिश करती स्त्रियाँ कभी असफल रही भी नहीं।

सराहनीय है उसका संघर्ष, त्याग, और तप
नापा है समंदर, जब दूर से देख रहे थे सब।

आसान नहीं होता इतनी बेड़ियों में तैर पाना
प्रतिकूल धारा को चीर, अपना रास्ता बनाना।

फिर भी दुनिया को कंधों की थकान नहीं,
ओठों की मुस्कान है दिखाती।

अपने सपनों के लिए संघर्ष करती स्त्री
एक दिन अपने मुकाम तक पहुँच ही जाती।

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