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दर्पण मेरा रोए क्षण-क्षण,
हृदय भी अब टूटा जाए।
सावन बरस रहा झर-झर,
पिया, अब भी तुम न आए।
वर्षा ऋतु की बैरन बद्री,
तन-मन में अग्न जगाए।
तेरे दर्शन को तरस तरस,
प्यासी अंखियां नीर बहाएं।
पिया तुम कब आओगे?
ये सावन बीता जाए।
सुध लो अब मेरी,
बहुत दिन हैं बिताए।
तुम बिन ओ प्रीतम,
मन का कमल कौन खिलाए?
मैं विरहनी हूं तुम्हारी,
तुम साजन हो मेरे।
तुम्हारे दरस को प्यासे,
ये नैना मूंदे जाएं।
बिन तुम सूनी सेज मेरी,
बिखरा ये श्रृंगार है।
संवार दो अब केश मेरे,
मेरी अल्कों को बुहार दो।
मेरे निकट आकर मुझे,
अपनी चितवन में उतार लो।
नागिन-सी डस रही विरह को,
मिलन का उपहार दो।
इस टूटे दर्पण को,
दर्शन से संवार दो।
मेरे अंत के बाद भी,
तुम देखा करना मुझे।
मुझे इस प्रकार अपने,
नैनों में उतार लोl