मैं समय से आगे चलूँगा
मैं थकूँगा नहीं, रुकूँगा नहीं,
जो भी राह मिले, झुकूँगा नहीं।
अंधेरा चाहे जितना गहरा हो,
मैं उम्मीदों से जलूँगा।
हर पत्थर को सीढ़ी बना दूँ,
हर तूफ़ान को साथी बना लूँ।
कभी झोंकों से डर न पाऊँ,
मैं खुद को फिर से गढ़ लूँगा।
2025 है, नए युग की दस्तक है,
हर सपना अब सच होने की हलचल है।
कल जो टूटा था, आज फिर जुड़ रहा है,
मन का दीपक फिर से जल रहा है।
ना हालातों की कैद में रहना है,
ना सोच को सीमाओं में सहना है।
अब उड़ान मेरी पहचान होगी,
हर चुप्पी में मेरी जान होगी।
जो ठहरे वो पानी बन जाता है,
जो बहता है, वही|