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आज एक अलग तरह का चुनौती हमारे सामने है जीवन का कदर करना हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं रहा है । हम जीवन में उपलब्धियां ढेरों चाहते हैं पर जीवन को ही उपलब्धि नहीं मानते हैं ! सबसे बड़ा मजाक यही है कि अगर जीवन का कदर करना हमें नहीं आता, कैसे हम मोल लगाएंगे उपलब्धियों का?
कदर हम करेंगे परीक्षा की मनचाही नंबरोंवाले प्रमाणपत्र का, कम नंबरवाले प्रमाणपत्र है बेकार, छोटी-छोटी नौकरियों में कदर करनेवाली क्या बात? बड़े-बड़े उपलब्धियों को पाकर भी हम उसे पहचान नहीं पाते और जीवन से शिकायत करते रहते । तकनीकी तथा आधुनिक जीवन शैली के कारण हम मशीनो की कदर करने में जिस तरह माहिर हैं, जीवन को जीवन के रूप में कदर करने में रुचि नहीं रखते हैं ।
हर दिन की सफलता को हम अब अनुभव नहीं करना चाहते हैं बल्कि हम गिनाते रहते हैं इकत्थे किए गए सामग्रियों से । दुसरो के तुलना में हमारे पास ज्यादा संपत्ति होना चाहिए गाड़ियां, मकान और न जाने क्या-क्या ! पर मन से जो खुश नहीं रहना जानते इन संपत्तियों के होते हुए भी दुखी रहेंगे । सफल होना क्या है ? रात को नींद पूरी करना, परिजनों से बात करना, प्रकृति में रहना, कुछ पल मौन रहने की कोशिश करना इन बातों का अब हमारे जीवन में कोई कदर नहीं है जो चिंता की बात है । रिश्तों में भी कदर तभी मिलता है जब आपके पास पैसा और रूटबा हो ।
जीवन का कदर करने के लिए जरूरी है हम स्वास्थ्य की कदर करें । पर स्वास्थ्य का खयाल हमें तभी आता है जब हम बीमार होते हैं । जब हमारा शरीर सही से काम करता रहता है, क्या हमें याद रहता है कितनी बार दिन में स्वस्थ रहने खुशी महसूस होता है ? हम ध्यान ही नहीं देते हैं ! हम जब स्वस्थ रहते हैं हम इस बारे में बात करते हैं कि अगर कोई बीमारी हो जाए क्या करेंगे । स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है बीमारी से बिना डरे समय पर भोजन करना, सही समय पर सोना और अपना नींद पूरा करना आदि । लेकिन काम के दवाब को वजह बनाकर इन बातों को नजरंदाज कर रहे हैं, ऐसे में क्या हम जीवन का कदर कर रहे हैं ?
जहां हम काम करते हैं चाहे व्यापार हो या दफ्तर में वहां के सहकर्मियों और बरिष्ठ अधिकारियों के प्रति हमारे मन में समय के साथ शिकायत बढ़ने लगती है क्योंकि हम चाहते वे लोग हमें समझे और दूसरी ओर हमारे सहकर्मियों और बरिष्ठ अधिकारियों को भी यही लगता है हमें उन्हें समझना चाहिए, पर हम शिकायतों के चलते नहीं समझ पाते । कर्मक्षेत्र की कदर मन में कम होना भी जीवन के प्रति कदर कम होने को दर्शाता है । कुछ महीने या सालों के अंदर हमें जो भी काम पेशेवर जीवन में करना पड़ता है वो ज्यादातर हमें अच्छा नहीं लगता है; दूसरे शब्दों में हम अपने पेशे को कदर करना, सम्मान देना भूलने लगे हैं। पेशेवर जीवन ही हमारे जीवन का एक अहम पड़ाव होता है। जब हम पेशेवर जीवन का भी कदर न करते हुए सिर्फ शिकायत करते हैं मतलब हमें जीवन का भी कोई कदर नहीं है ।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि नयी पीढ़ी में विवाहित जीवन के प्रति खोये हुए कदर भावना को फिर से वापस लाने के लिए कैसा प्रयास जरूरी है । क्योंकि आज छोटी-छोटी परेशानियों को वजह बनाकर विवाहित जोड़ियां अपने रिश्ते को तोड़ देना चाहते हैं । इसके पीछे विवाहित होने का निर्णय उन्होंने क्यों लिया होगा हमें विचार करना होगा। परिवार का दवाब, दोस्तों की देखा देखी और सिनेमा को देख जब शादी को लोग जबरन अपनाते हैं तब आगे चलकर उस रिश्ते में कई उलझन शुरू होने लगते हैं । हम अच्छे पलो में जीवनसाथी से अच्छे बर्ताव करते हैं पर कठिन परिस्थितियों में भी उनका कदर करना हमारे लिए मुश्किल लग रहा है ।
शिक्षा और नैतिक मूल्यों का कदर करना भी हम आज आवश्यक नहीं समझते । हम पाठ्यक्रम संपूर्ण करते हैं पर उस ज्ञान को नैतिकता के साथ प्रयोग नहीं करते हैं । आज अर्जित ज्ञान का हम कई तरह से व्यक्तिगत लाभ हेतु प्रयोग करते हैं जो समाज के लिए एक चुनौती बन रहा है । पहले अशिक्षित होने के कारण लोग ग़लत काम करते हैं और आज शिक्षित लोग भी ग़लत काम करते हैं । ऐसे में स्पष्ट है जीवन का कदर करने को हमें अहम मुद्दा बनना कितना ज़रूरी है।
हम अपने जीवन को बिना शर्त कदर करने के लिए जब मानसिक रूप से तैयारी शुरू करेंगे हमें असहज अनुभव होगा । क्योंकि बचपन से ही हमने शर्तों पर आधारित एक जीवन और समाज देखा है । खेलने जाने से लेकर घूमने तक हमें शर्तों से बांधकर रखा जाता हैं । कालेज में दाखिला हो या नौकरी बिना शर्त हमें कुछ हासिल नहीं किया है, ऐसे हम मानकर चलें आ रहें हैं । इसलिए बिना किसी शर्त जीवन का कदर करना नामुमकिन लगता है ।
लेकिन यह काम इतना कठिन नहीं है । हमारी सांसें चल रही है, जीवन की कदर करने के लिए क्या यह काफी नहीं है ? हमारी दिल की धड़कन का भी क्या हमें कदर नहीं करना चाहिए ? प्रकृति ने जो भी हमें संसाधन दिया है क्या वो अनमोल नहीं है ? हमारे शरीर के अंगों को लेकर हम सोचते हैं यह तो आम बात है पर हर अंग अपने आप में खास है ।
हमें एक बीमारी ने जकड़ लिया है – अच्छी घटना और चीजों को नजरंदाज करने में हमारी रुचि ऐसे बढ़ रहा है कि जीवन के हर घटना हमें अपने लिए नाइंसाफी और दूसरों के लिए वरदान लगता है । जीवन को ऐसे ही अपना शत्रु मान हम अपनी समस्या बढ़ा लेते हैं ।
इसके चलते जब भी हमें सफलता मिलती है हमें कदर करना नहीं आता क्योंकि हम उन बातों को सफलता नहीं मानते हैं । कोई अगर हमारे लिए वक्त निकालकर आएं हम उसे उस रिश्ते की सफलता न मान साधारण बोलकर हम उस खास व्यक्ति को भी निराश करते हैं। हमें जब पहली नौकरी मिली थी या पुरस्कार समय के साथ हमें ऐसा लगता है कि यह तो सामान्य बात थी। असल में नयी चीजों को हासिल करने की नशे में हम अपनी हर उपलब्धि को साधारण मानने की भूल कर रहे हैं । यही कारण है कि हमें ऐसा लगता है कि हमारे जीवन में कदर करनेवाली कुछ भी खास चीज नहीं है।
याद रखें आप अपने आप ही विशेष है । खुद की निंदा न करें, दुसरो से अपनी तुलना न करें, आप जैसे है अपने आप की कदर करें ।