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एक अजीब उम्मीद हम करने लगे हैं - हर काम का नतीजा सही हो । सही की परिभाषा क्या है? सही वहीं जो हमारे मुताबिक हो । आज विश्व में करोड़ों की वादी है, सभी लोग खुद के मुताबिक अपने घर, और समाज को संचालित होते हुए देखने की कामना करते हैं । इसी कारण मनमुटाव बढ़ रहा है । अगर अपने मन के अनुसार हो सब सही नहीं तो लोग ग़लत... समाज ग़लत ।
इस विचारधारा ने हमें जीवन में अनेक बार गलत राह पर ढकेला है । यह विचार मन को एक दीमक की भांति खोखला कर देता है । हमेशा सही काम करने की ही कोशिश करना चाहिए लेकिन पर इस जुनून में हमें यह भी स्वीकार करना ही होगा कि हमारे अच्छे इरादे से किए गए हर काम का মইनतीजा हमारे मुताबिक हो यह हर बार संभव नहीं होगा । इस बात को मन से स्वीकार करने में हम हिचकिचाते हैं जो हमें डरने पर मजबूर कर देता और हमें हर पल सही होने के दौड़ में शामिल होने के लिए विवश कर देता! अपने आपसे सवाल करें क्या यह दवाब सच में जरूरी है?
सुबह जल्दी उठकर कार्यालय समय पर पहुंचने के लिए कोशिश करना हमारा द्वायित्व हैं । लेकिन कभी-कभी जल्दी उठने के बाद भी ट्रैफ़िक या अन्य किसी कारण देरी हो सकता है। समय पर कार्यालय पहुंचने की कोशिश करना हमारा काम है और कार्यालय समय पर पहुंचना हमारे कोशिश का नतीजा; पर हर बार नतीजा हमारे मुताबिक नहीं होगा । यानि कोशिश के बाद नतीजा हमारे अनुसार न होने पर परिस्थितियों को नियंत्रित करने की कोशिश करने के बजाय परिस्थिति को अपनाना ही पड़ेगा ।
ज्यादा किस बात से हम दुखी होते हैं ? हमने तो तैयारी पूरी कर लिया था, मेहनत भी पूरा किया लेकिन नतीजा मन मुताबिक नहीं हुआ । नतीजों को नियंत्रित करने का प्रयास ही हमें असहाय बनाता है । एक बच्चे से हर बार प्रथम आने की अपेक्षा रखना भी ग़लत है । पढ़ाई अच्छे से करने के लिए प्रोत्साहित करना और नंबर अच्छे लाने के लिए दवाब पैदा करना ग़लत है । दोनों बच्चों ने मान लीजिए ६ घंटे मन लगाकर पढ़ाई किया लेकिन नतीजें के अनुसार एक को ज्यादा दुसरे को कम नंबर मिला । ऐसी परिस्थिति में जिसे कम नंबर मिले बच्चे को नतीजें के आधार पर ग़लत नहीं मानना चाहिए । क्योंकि अपनी तरफ से उसने भी कोशिश संपूर्ण रूप से किया था । प्रयास करना उसके हाथ में था जो वो कर चुका लेकिन उसे परीक्षक द्वारा कितने नंबर मिलते है वो परीक्षक के मूल्यांकन पर निर्भर करता है। ६ घंटा रोजाना पढ़ने के बाद भी उसके नंबर कम होने का एक कारण यह भी हो सकता है योजना ६ घंटे पढ़ उसने परीक्षा हेतु बेहतर प्रक्रिया से अभ्यास किया, दुसरे बच्चे ने ज्यादा निपुणता से अभ्यास को परीक्षा में अंजाम दिया । अब जिस बच्चे को उम्मीद के अनुसार नतीजा नहीं मिला वह सही है या ग़लत? कुछ बच्चे निर्धारित समय में जितना सीखते हैं दुसरे बच्चों को ज्यादा समय की आवश्यकता पड़ती है । इस कारण हर बार नतीजें के आधार पर कोई अगर बच्चों में भेदभाव करें वो सही नहीं होगा क्योंकि कम नंबर प्राप्त छात्र ने भी मेहनत पूरी किया होगा । पर क्या हम इस प्रकार सोचते हैं?
हम ऐसे नहीं सोचते इसलिए बचपन से ही शुरू होता है सिर्फ सही नतीजों के उम्मीद में काम करने का सिलसिला। सिर्फ सही नतीजों के लिए हम जितना भी सोच समझकर काम करें जब भी नतीजा हमारे मन के खिलाफ हो हम टूट जाते हैं । आज की युवा पीढ़ी और परिवारो में यह बात स्पष्ट रूप से लागू है । जब मन चाहे महाविद्यालय में दाखिला न मिले परिवार और बच्चे सभी मायूस हो जातें हैं । एक ही सवाल करते ज़िन्दगी हमारे मुताबिक क्यों नहीं चलती? सही नतीजों के उम्मीदो का दवाब रिश्तों और पेशेवर जीवन में भी दिख रहा है । अब रिश्ता भी मानों सही नतीजों की मांग कर रहा है । अधिकतर परिवारों में रिश्तों को एक दुसरे को नियंत्रण करने का जरिया बना लिया गया है । आज की तारीख में हम संबंध भी उन्हीं रिश्तेदारों से रखते हैं जिनसे हमारी उम्मीदें हैं । अर्थात हर रिश्ते में हम एक फायदा या नतीजा देखते हैं जो हमारे हित में हो । आज आप किसी को परिवार समझकर कुछ न कहें तो ही बेहतर है क्योंकि अन्य लोगों के अनुसार जो नतीजा सही है वह आपके दृष्टिकोण में ग़लत हो सकता है और आप अपनी राय देंगे नतीजा रिश्तों में दूरियां आएंगी । आप प्रतिक्रिया इस प्रकार होगी मेरे सही इरादे से किए गए काम का सही नतीजा क्यों नहीं निकला?
‘सही नतीजा’ किसी काम को करते समय जो होगा किसी दूसरे व्यक्ति के लिए वो भिन्न होगा चाहे वह आपके परिवार का हो, कोई मित्र या पड़ोसी । इसलिए अगर वो आपके कार्यों का आलोचना करें आपकों परेशान नहीं होना चाहिए । आप केवल यह सुनिश्चित करें कि आप अपने जीवन में अच्छे काम करें । उन लोगों की आलोचना करने की आदत से बचें क्योंकि वो लोग हमेशा वही करेंगे जो उन्हें ठीक लगता है ।
किसी का पेशा व्यवसाय हो सकता है तो किसी अन्य का कोई दफ्तर में काम । ज़रा सोचिए व्यवसाय में लाभ न होना कुछ समय के लिए एक ग़लत नतीजा लग सकता है पर आपका मन अगर व्यवसाय में लगता है क्या काम छोड़कर किसी के अधीन काम कर आप वही सफलता हासिल करेंगे? अगर काम करेंगे तब भी जीवन सिर्फ कटेगी आप मन ही मन कहते रहेंगे व्यवसाय में ही अलग सोच से मुझे प्रयास करना चाहिए था । मतलब एकबार सही नतीजा निकलने का अर्थ हर बार गलत नतीजा मिलेगा वैसा भी नहीं है। दुसरी ओर एक दफ्तर के कर्मचारी के रूप में अगर आपको पदोन्नति नहीं दिया गया इसका अर्थ भी यह न है कि आपके कामो का किसी प्रकार का सही नतीजा सामने नहीं आया है।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।”
अर्थात कर्म करना ही केवल हमारे अधिकार में है हमें फल प्राप्ति के आशा से कुछ नहीं करना चाहिए । अब हम इस प्रकार सोचते इतना समय हो गया है जो सोचा वो क्यों नहीं हो रहा? हम सब कुछ अपने अनुसार अपने निर्धारित समय पर चाहते पर भुल जाते है हर व्यक्ति भी यही मनोकामना रखता है । धरती पर संतुलन हेतु एक ही समय हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी होना संभव नहीं है क्योंकि एक ही चीज की लोग मांग सकते हैं । जो हम चाहते हैं उसे मिलने पर संभालने के लिए तैयारी भी चाहिए । कई लोग कहेंगे भाग्य से भी कितनों को मन चाहा सब मिला है । इयह बात भी सही है, लेकिन पैतृक संपत्ति मिलने के बाद भी आज के समय उसका सदुपयोग करने के लिए एक सही मानसिकता और पारदर्शिता दोनों चाहिए जिसके अभाव में आज कई परिवारों में समस्या होने लगी है । ऐसे उदाहरण भी भारत और विदेशों में है कई लोगों ने अपने कार्यो द्वारा अपना भाग्य निर्माण किया है ।
हर सफल व्यक्ति का जीवन सिर्फ सही नतीजों से निर्माण नहीं होता है । उनके भी जीवन में कई नतीजें ग़लत होते पर वो उनसे निराशा हुए बिना सीखते रहते । लेकिन हम अपने नतीजों को देख जल्दी हार मानते हैं यही हम हार जाते हैं क्योंकि जहां कोशिश बंद होती है वहां सीखने की प्रक्रिया भी थम जाती है ।
अब समाज में एक नयी धारणा का जन्म हुआ है नतीजा सही तभी होगा जब आपके पास ढेर सारा पैसा होगा ! आपकों इसका प्रमाण मिल भी गया है कई बार ; आपने कोई काम अच्छे से संपन्न किया, लोग आपके काम के नतीजों का आंकलन करने के लिए आप के पास उस काम से कितना आया उसके आधार पर आपके काम के नतीजों को अच्छा मानेंगे अगर अपने अच्छा काम किया लेकिन धन आपके पास कम है, लोग यही धारणा रखते हैं आपकी राय का कोई मोल नहीं है क्योंकि आप अपने आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं कर पा रहे हैं अर्थात आपसे सलाह लेने पर सही नतीजा उन्हें मिलेगा ।
दो प्रतिस्पर्धी अगर खेल रहे है दोनों के लिए सही नतीजा होगा विजय होना । पर दोनों नहीं एक ही विजय होगा, इसका यह अर्थ नहीं कि दुसरे प्रतिभागी के लिए नतीजा ग़लत है । उसे भी अभिज्ञ होने का मौका मिला जो आगे चलकर उसे प्रदर्शन अच्छा करने में सहायक होगा । तो स्पष्ट है जो हारा उसके लिए भी कई सही नतीजें होता है बस एक नजरिया चाहिए ।
सही नतीजें की परिभाषा समय, परिस्थिति और व्यक्ति अनुसार बदलता रहता है । एक नतीजा किसी के दृष्टिकोण में सही तो दुसरे के दृष्टि में ग़लत प्रतीत होता है । बचपन में आपको जो नतीजा सही लगा था बड़े होने के बाद आपके सोच में बदलाव के कारण आप उस पुराने नतीजें से भिन्न एक अन्य नतीजा चाहते हैं जिसे आप उस समय और परिस्थिति में अपने लिए सही नतीजा मानते हैं ।
आपकों विश्व में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा जो कहें मैं ऐसा काम करना चाहता हूं जिसमें ग़लत नतीजा मिलें । लेकिन अच्छे प्रयासों को हर परिणाम कभी-कभी सीधे तौर पर वैसा सही नतीजा नहीं निकल कर आएगा जैसा आपको चाहिए; पर यह भी सत्य है जब तक आप प्रयास करते रहेंगे आपके जीवन में सही नतीजें आते रहेंगे । नतीजों पर नियंत्रण लाने की कोशिश छोड़कर अपने विचारों, परिकल्पना तथा अपने काम करने के तरीकों पर काम करते रहे । आपके प्रयासों के अनुरूप जो नतीजे आपको मिलना चाहिए वो आपको मिलेगा जो आपके सोचे हुए सही नतीजें से भी बेहतर होगा ।