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नाकामयाबी एक दहशत है हम सबके लिए; कामयाबी हम सबको चाहिए लेकिन नाकामयाबी को हम अपने जीवन में एक पल के लिए भी जगह नहीं देना चाहते! क्या यह मानसिकता हास्यप्रद नहीं है?

जब किसी व्यक्ति को अपने प्रयासों के अनुरूप फल मिले समाज उसे कामयाब कहें और आशा के अनुरूप फल न मिलने या देरी होने पर नाकामयाब कहा जाता है। जो प्रयास लोग निष्ठा से प्रयास करते, कोशिश करनेवालों को सिर्फ फलाफल नहीं मिलने पर हम उनको नाकामयाब घोषित करते हैं। क्या हमने गंभीर होकर सोचने का प्रयास किया है कि हर असफल प्रयास भी हमें लक्ष्य की ओर जाने में पथ प्रदर्शक होता है? शायद हम केवल सफलता की तलाश में लक्ष्य प्राप्ति के लिए जरूरी विरामहीन प्रयासो की आवश्यकता को भुला बैठे हैं।

पहले प्रयास में ही कामयाबी मिलने पर भी जीवन पथ पर हमें कुछ पल ऐसे मिलेंगे जो दुसरो के लिए हमारी नाकामयाबी है; लेकिन असल में वो मात्र हमारी तैयारी और कार्यों को संपादित करने के लिए एक दिशा निर्देश और सीख है। लेकिन लोगों की प्रतिक्रियाओं से आहत होकर हम खुद को अपने प्रयासों के लिए प्रोत्साहित करना भुला बैठे हैं!अगर लक्ष्य प्राप्ति में विलम्ब हो वो कभी असफलता नहीं हो सकता है; क्योंकि हर कोशिश एक सफलता है और कभी-कभी जिंदगी हमें इंतजार कुछ बेहतर देने के लिए कराती है, पर हम अपने असंतोष दिखाने में इस कदर मग्न हो जाते हैं लक्ष्य प्राप्ति में विलम्ब होते देख प्रयास करना छोड़ देते हैं और हमारे आलोचकों को हम स्वयं खुद को नाकामयाब कहने का अवसर दे देते हैं।

घर में रोजमर्रा के खाने तैयार करने में जितना समय लगता है किसी की महमान नवाजी के लिए खाना पकाते समय ज्यादा समय की आवश्यकता होती है। अब समय अधिक लेने के आधार पर जिसने खाना पकाया उसे असफल कहना क्या सही होगा क्योंकि आमतौर पर वह तो कम समय में खाना तैयार करता है? लक्ष्य प्राप्ति की यात्रा में परिस्थितियों का भी प्रभाव नजर आता है। लेकिन समस्या यह है- हर काम में मन चाहा फल न मिलने पर हम उसे अपनी असफलता मान लेते हैं और यह विचार ही असल नाकामयाबी है।

जीवन हर बार हमारे मुताबिक उपलब्धियां नहीं देगा। जीवन में मिली परिस्थितियों को दिल से अपना लेने पर जीवन सफलता की दिशा पर अग्रसर होने लगेगा। अब एक उदाहरण देती हुं- क्या कोई क्रिकेटर हर खेल में बिना आउट हुए और शतक बार-बार लगा सकता है? जवाब है नहीं, लेकिन हर बार आउट होने का कारण विश्लेषण कर वो अभ्यास द्वारा अपने खेल को बेहतर बना सकता है। हर खेल के खिलाड़ी के लिए यही बात लागू होती है। उनका प्रदर्शन हर बार एक जैसा बेहतरीन नहीं रहता है। लेकिन इसके आधार पर खिलाड़ियों को असफल घोषित कर टिप्पणियां देना उचित नहीं है। पर दर्शक के रूप में हम जाने-अनजाने वहीं करते हैं।

हम दर्शक के रूप में अभिनेता, अभिनेत्री और निर्देशकों को भी किसी सिनेमा के ब्लागवास्तार न होने पर असफल आसानी से कहते हैं। पर जिस सिनेमा को की लोग एकत्रित होकर दर्शकों के मनोरंजन हेतु तैयार करते हैं क्या उस प्रयास को बाक्स आफिस कलेक्शन के आधार पर असफल कहना उचित होगा?

एक बच्चे को प्रयास करने के लिए शाबाशी कम और ग़लत उत्तर देने के लिए डांट ज्यादा मिलता है। यही कारण है एक समय के बाद बच्चे कोशिश करना छोड़ देते हैं और पढ़ाई तथा नई बातें सीखने में उनका रूझान कम हो जाता है। बच्चे अगर किसी चीज को समझने में समय ज्यादा लेते हैं तो उसे भी नाकामयाबी माना जाता है। यह सच है कि बच्चों को जितना हो सके सही बातें सीखकर किसी भी काम को सही से करना चाहिए। दुविधा तो यह उम्मीद है कि बच्चे कभी गलती करें नहीं!

सफलता या कामयाबी का अर्थ है हर परीक्षा में अव्वल आना आज की भाषा में स्कूल तथा कालेजों में १००% या उसके आसपास नंबर मिलना चाहिए। नंबर मिलना जरूरी है ताकि सर्वोच्च वेतनवाला नौकरी मिले। नौकरी मिलने के बाद तो गलतियों की कोई गुंजाइश नहीं रहती कोई पदोन्नति का सवाल जो है। हर गलती पर ऐसे सवाल जवाब होता है मानो गलती करना ही एक दोष है। गलतियों से सीखना कैसे हैं उसके लिए हमें मार्गदर्शन कम या न के बराबर मिलता है। आज हम यह मानते हैं कि जो गलती करें वह असफल है। हैरानी कि बात यह है कि हम इतने नासमझ है कि नहीं मान रहे जो काम नहीं करेंगे जीवन में केवल वही बिना गलती करें जीएंगे।

सफलता का उत्सव हम मनाते हैं। पर असफलता से नाराज़ क्यों होते हैं? सफलता और असफलता दोनों ही ही हर व्यक्ति के जीवन का एक अभिन्न अंग है। अगर हमें असफलता से आपत्ति है तो हमें सफलता की उम्मीद भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि हर असफलता व्यक्ति को अनुभवी बनाकर सफलता का रास्ता दिखाता है। हम नौकरी और व्यवसाय में जिसतरह अनुभव बतोरते है असफल प्रयास भी परिपक्व बनाने के साथ सीखने में सक्षम है।

असली कामयाबी समाज के लिए क्या हो सकता है? हर व्यक्ति के प्रयासो को सराहा जाएं। हर कोशिश को सफल माना जाएं। क्योंकि अब समाज में सफलता की जो परिभाषा प्रचलित है उससे निराश होकर लगातार प्रयास जारी रखनेवाले लोगों की संख्या कम हो रही है। समाज में अगर सभी लोग प्रयास जारी न रखें विकास नहीं हो सकता है। हमें यह समझना होगा कि किसी भी क्षेत्र में शीर्ष स्थान प्राप्त लोग ही केवल सफल नहीं होते हर वो व्यक्ति जो प्रयास करता रहें सफल है। सफलता कोई बाहरी उपलब्धि नहीं है कि ट्राफी और प्रमाण पत्र से दुसरो को साबित किया जाए; सफलता तो आंतरिक खुशी है अपने आप से सवाल करें कि क्या आप अपने निजी तथा पैशेवर जीवन में में भीतर से सुखी है या नहीं? आपकी खुशी कोई बाहरवाला कैसे तय कर सकता है? यह अधिकार तो अपने ही दुसरो को दे दिया है कि अन्य लोग जब आपको सफल कहेंगे तभी आप खुद को कामयाब मानेंगे।

यह जो हमारी प्रवृत्ति है कि हमें दुसरो के नज़रों में कामयाब होना है यह दवाब समय के साथ इस कदर हमें खोखला कर रहा है कि हम अपने ही जीवन का नियंत्रण दुसरो को सौंप हर पल को दर्दनाक बना रहे हैं। जब तक हम अपना प्रयास जारी रखेंगे हम कामयाब है, दुसरो के दृष्टिकोण में अगर हम असफल भी है, जरूरी है यह बात कि हम अपने प्रयासों को सफलता की ओर एक कदम मानते हैं या नहीं।

जब भी आपको ऐसा लगे कि आपको अपने प्रयासों के अनुरूप नतीजा नहीं मिला है अपने प्रयासों को लेकर फिर भी इस बात से सहमत होंगे आपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाया है। अगर प्रयास करते ही नहीं तो लक्ष्य प्राप्ति का क्या कोई उम्मीद रहता? प्रयास करने पर भी नतीजा तुरंत मिल नहीं रहा पर आप कोशिश जारी रखेंगे तो एक दिन सफलता हासिल करेंगे।

सफलता हासिल करने के लिए असफलता से दोस्ती कर सीखें और उस अनुभव से बेहतर बने। नाकामयाबी के पलों में जो सफलता के सूत्र ढूंढ ले कर टवही सफलता के दौड़ में आगे बढ़ जाएं। किसी के द्वारा उनकी रेसिपी को 1,009 बार अस्वीकार किए जाने के बाद केएफसी के कर्नल सैंडर्स के चिकन बनाने की विधि का आज पूरी दुनिया कायल हैं। आज केएफसी में जाकर खाना और फोटो लेना सबको खुश करता है। कर्नल सैंडर्स अगर पहले नाकामयाबी से निराश होकर प्रयास त्याग देते तो केएफसी आज के मूकाम तक नहीं पहुंच पाता। तो चलिए नाकामयाबी को नाकामयाबी मानने की सोच को हराकर सफलता के लिए प्रयास जारी रखें।

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