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कोरोना वायरस की वजह से उपजे हालात ने हमारे जीवन में बहुत कुछ बदल दिया है और यह बदलाव निरंतर जारी है. यह बदलाव नितांत जरूरी भी बन गया था क्योंकि हम अपने रहन-सहन को बदले बगैर इस घातक वायरस से निपट नहीं सकते. कोरोना मानव जाति को नित नए सबक सिखा रहा है. न जाने अभी और कितने सबक सिखाएंगा?

कोविड-19 वायरस की प्रकृति के बारे में पुख्ता तौर पर हम इसके सटीक स्वरूप को नहीं पहचान पाएं हैं. क्योंकि यह अपने स्वरूप में हमेशा नई-नई बदलाव कर रहा है. इसलिए इसका टीका बनने में देरी हो रही है. उस जैसे दूसरे वायरस के बारे में जितना पहले से पता था, मसलन 'सार्स' वह काम नहीं आ रहा है. पुरानी दवाइयां काम नहीं कर रही हैं. यानी जरूरत यह आन पड़ी है कि वायरस के इस नए रूप के गुण-धर्म को सटीकता से जाना जाए. यानी कोरोना वायरस की जीवन शैली को फौरन जाने बगैर हम उससे निपट नहीं सकते. जीवविज्ञानी इसे किसी जीव के हैबिटेट को समझना कहते है.

पलटकर देखा जाना चाहिए कि पिछले कुछ साल से मानव समाज साइंस और टेक्नॉलजी के क्षेत्र में करता क्या रहा. मैं अपने अनुभव से बता सकता हूं कि पूरी दुनिया टेक्नॉलजी के विकास की होड़ में लगी हुई थी. सब मानकर चल रहे थे कि हमने बहुत तरक्की कर ली है. अब हम किसी भी आपदा से निपटने में सक्षम है. परंतु इस वायरस ने उन्हें घुटने के बल लाकर खड़ा कर दिया है.

हमने कुदरत के हैबिटेट से काफी छेड़छाड़ किया. हम भूल गए कि क़ुदरत ही मानव जीवन का आधार है. अफसोस कि दुनिया वाले साइंस व टेक्नॉलजी और क़ुदरत के बीच संतुलन नहीं साध पाएं. इसी के साथ कोरोना ने हमें यह एहसास कराया कि हमनें जो पहाड़ काटे, जंगल काटे, अपने स्वार्थ के खातिर एक-एक पेड़ और हरियाली काटने पर उतारू रहे. शुद्ध सात्विक खाने को छोड़कर तरह-तरह के मांस खाने का ऐसा शौक़ बढ़ाया कि हम किसी भी पशु, पक्षी यहां तक कीड़े-मकोड़े तक को नहीं छोड़ सके. पवित्र नदियों को गंदा किया. भौतिकता की दौड़ में मशीनों, फैक्ट्रियों, एयरकंडीशन.. इत्यादि के अलावा गाड़ियों के धुएं से हमने हवा में जहर घोला.

कोरोना ने हमें ये सिखाया कि हमारी ये व्यवहार गैर जिम्मेदारी से भरा हुआ था. हम कुदरत के प्रति लापारवाह हो गए थे. ये सब किए बिना भी हम जी सकते हैं और अच्छे से जी सकते हैं. बहरहाल, कोरोना ने अब तक जितना सिखाया है, उसे अपने जिंदगी में हमेशा के लिए उतारने में ही समझदारी है. ऐसा न हो कि बाद में भूल जाएं. ये बातें इसलिए बता रहा हूं कि इंसानी फितरत होती है कि जब हादसा होता है वह तभी जगता है. लेकिन अब इस आदत में बदलाव लाना बेहद आवश्यक है. हम हादसे की चपेट में आने से पहले ही सावधान हो जाएं.

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