11 सितंबर, 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा में जन्म विनोबा भावे को भारत में भूदान आंदोलन शुरू करने के लिए जाना जाता है. उन्होंने 18 अप्रैल 1950 को भूदान आंदोलन शुरू किया था. उनके 125वें जयंती पर उनको शत शत नमन. उनका मूल नाम विनायक नरहरी भावे था. भावे प्रसिद्ध चिंतक, गांधीवादी और समाजवादी थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का विनोबा के साथ इतना लगाव था कि 1918 में बापू ने आचार्य भावे के बारे में लिखा था- "मुझे नहीं पता कि आपकी प्रशंसा किस संदर्भ में की जाए. आपका प्यार और आपका चरित्र मुझे रोमांचित करता है और आपका आत्म मूल्यांकन भी. इसलिए मैं आपके मूल्य को मापने के लिए उपयुक्त नहीं हूं."

मानवतावादी विचार, सबके उदय की कामना, कर्म एवं पुरुषार्थ में अटूट निष्ठा और अपने तपस्वी जीवन से देशवासियों की चेतना को जगाने वाले युगपुरूष संत विनोबा भावे ने भूदान, डाकूओं के आत्मसमर्पण तथा जय जगत के विचारों द्वारा वैश्विक समास्याओं के अहिंसक तरीके से समाधान निकालने के रास्ते सुझाये थे. वे हमारे लिये एक प्रकाश स्तंभ, राष्ट्रीयता, नैतिकता एवं अहिंसक जीवन एवं पीड़ितों एवं अभावों में जी रहे लोगों के लिये आशा एवं उम्मीद की एक प्रतीक हैं. वे भारत में भूदान तथा सर्वोदय आन्दोलन प्रणेता के रूप पहचान बनाने वाले वे भगवद्गीता से प्रेरित जनसरोकार वाले जननेता और प्रवचनकार थे, जिनका हर संवाद उपदेश बन गया है. उन्होंने अपने प्रवचनों में गीता का सार बेहद सरल शब्दों में जन-जन तक पहुंचाया ताकि उनका आध्यात्मिक उदय हो सके, अंधेरों में उजाले एवं सत्य की स्थापना हो सके. 1958 में उन्हें सामुदायिक नेतृत्व के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय रेमन मैगसाय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था. आचार्य विनोवा भावे हमेशा इस बात को कहते थे- "भूख लगने पे खाना ये प्रकृती हैं. भूख न होते हुए खाना विकृती हैं. और भूख होते हुए भी अपनी थाली दुसरो को देना ये हमारी संस्कृती हैं."

महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी होने के कारण वह कांग्रेस पार्टी के प्रति ताउम्र समर्पित रहे. 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने लोकतंत्र को ताक पर रखते हुए आपातकाल लगाया, तब भी भावे ने इन्दिरा तथा कांग्रेस का समर्थन किया. वह समय विनोबा भावे के मौन व्रत था तब भी उन्होंने एक स्लेट पर लिखकर अपना सन्देश दिया था कि ‘आपातकाल अनुशासन पर्व है’ इस बात को लेकर वे विवादों से भी घिरे. आपको बता दें कि 25 दिसम्बर 1974 से उन्होंने एक वर्ष का मौन व्रत रखा था.

ऐसे कर्मवीर भावे जी का 15 नवंबर 1982 को निधन हो गया. 1983 में मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न से सम्मानित भी किया गया था. हम उनके जीवन-आदर्श ‘जय जगत’ यानी वसुधैव कुटुम्बकम-समूची दुनिया एक परिवार की परिकल्पना पर चलकर एक बेहतर समाज बनाने में अपना योगदान दे सकते हैं.  


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