वैसे तो भारत में खेलों की बात की जाए तो क्रिकेट की दिवानगी युवाओं के सर चढ़ कर बोलता है. लेकिन बिते कुछ सालों में युवाओं पर बास्केटबॉल का खुमार भी छाया हुआ है. ऐसा इसलिए क्योंकि युवा अब विभिन्न खेलों में अपने लिए मौके की तलाश में हैं. जहां उन्हें अपने हुनर को निखारने का अवसर मिले. इसलिए भारत में बास्केटबॉल अब तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है.
बास्केटबॉल एक टीम खेल है, जिसमें एक समय पर एक टीम के 5 खिलाड़ी कोर्ट में होते हैं और अपने विरोधी टीम के खिलाफ एक 10 फुट ऊंचे घेरे यानि बास्केट में, खेल के नियमों के अनुसार बॉल को डालना होता है. यदि वे नियमों का पालन करते हुए बास्केट में बॉल डालने में सफल हो जाते है, तो वे एक शॉट लगाने में सफल हो जाते है. इसके लिए उन्हें निर्धारित अंक मिलता है. जिससे जीत-हार का फैसला होता है.
बास्केटबॉल खेल का जन्म 1891 में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ था. कनाडा के मूल निवासी जेम्स नाइस्मिथ, जो शारीरिक शिक्षा के प्रोफ़ेसर थे.
अपने विद्यार्थियों के फ़िटनेस के लिए एक नए तरीका ढूंढ़ रहे थे. तभी उनके दिमाग में एक विचार आया कि क्यों नहीं 10 फुट ऊंचे ट्रैक पर एक बास्केट लटका दी, जिसमें विद्यार्थी को फुटबॉल की गेंद फेंकनी थी. इसलिए, इस गेम इसका नाम पड़ा बास्केटबॉल.
1894 में संयुक्त राज्य अमेरिका में पहले आधिकारिक नियमों को मंजूरी प्रदान की गई. 1919 में पहला अंतर्राष्ट्रीय बास्केटबॉल टूर्नामेंट यूएसए, फ्रांस और इटली की सेना टीमों के बीच आयोजित किया गया था. यह खेल ही इतना गतिशील और दिलचस्प था कि इसने पूरी दुनिया में एक अलग पहचान व लोकप्रियता हासिल की. इसकी बढ़ती लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए 1932 में अंतर्राष्ट्रीय बास्केटबॉल महासंघ (FIBA) का गठन किया गया. शुरुआत में इसमें केवल 8 देश शामिल थे - अर्जेंटीना, इटली, ग्रीस, पुर्तगाल, स्वीडन, लातविया, चेकोस्लोवाकिया और रोमानिया. 1935 में इस खेल को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने ओलंपिक खेल के रूप में मान्यता प्रदान की, और अगले साल बर्लिन में, इस खेल को ओलंपिक खेलों के लिस्ट में शामिल किया गया.
भारत में इस खेल की शुरुआत 1950 में हुई. इसी साल भारतीय बास्केटबॅाल संघ की स्थापना हुई जो नियमित रूप से विभिन्न राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आयोजन कराता आ रहा है. 1951 में भारत में एशियाई गेम्स का आयोजन हुआ. जहां भारत के पहले कप्तान रनबीर सिंह कि अगुवाई में इस टीम ने हिस्सा लिया. ये टीम भले ही इस साल कोई पदक नहीं जीत सकी. लेकिन सीमित संसाधनों के बावजूद टीम ने एशिया में चौथा स्थान प्राप्त किया. वह वकाई काबिले तारिफ है.
भारत में इस खेल को एक नया मुकाम तब हासिल हुआ जब अमेरिका के राष्ट्रीय बास्केटबॉल संघ (एनबीए) ने रूचि लेना शुरू किया. यह नेशनल बास्केटबॅाल आफ अमेरिका की ऐसी पहल है जिससे कई देश के खिलाड़ी एक मंच पर आकर दिग्गज खिलाड़ियों से इस खेल की बारीकियां सीखते है. उन्हें दुनिया के नामी मशहूर कोच के साथ अपने हुनर को निखालने का मौका मिलता है.
भारत में एनबीए 2008 में बास्केटबॅाल विदआउट बॉडर्स मुहिम के तहत कदम रखा. एनबीए ने रिलायंस-एसीजी जैसे कई संस्थानों के साथ मिलकर साल भर कोचिंग कैंपों का आयोजन करने लगा. यहीं नहीं बल्कि ग्रेटर नोएडा में अपनी अकादमी भी चला रहा है. जहां वह कई खिलाड़ियों के प्रशिक्षण और पढ़ाई का खर्चा उठा रहा है.
कहने का मतलब है कि एनबीए जैसी संस्था ने प्रोफेशनल बास्केटबॅाल लीग की भी शुरूआत तो कर दी है जो आने वाले दिनों में भारत में बास्केटबॅाल की सफलता की एक नई कहानी लिखेगा.