चुनाव से पहले महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर रस्साकशी इतनी गहरा गई है जिसमें ये प्रतीत हो रहा है कि इसके घटक दल एक-एक करके साथ छोड़ देंगे. हम ये बात इस आधार पर कह रहे हैं कि क्योंकि जैसे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को कोई उचित आश्वासन नहीं मिला, जिसके बाद वे महागठबंधन से अलग हो गए. अब एक और घटक दल रालोसपा भी अलग होने की बाट जोह रहा है.

रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा को ऐसा लग रहा है कि महागठबंधन में उनकी अनदेखी हो रही है. ऐसे में वो कभी भी गठबंधन को अलविदा कह सकते हैं. उनके अलग होने का कारण भी सीट बंटवारे को लेकर फंसा पेंच ही है. सीट बंटवारे को लेकर उपेंद्र कुशवाहा स्थिति स्पष्ट करने की मांग लगातार करते आ रहे हैं. परंतु, अब तक उन्हें सीटों को लेकर कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है. इससे वे दुखी है और उनका महागठबंधन से मोहभंग हो चुका है. इसलिए उनके महागठबंधन से अलग होने की बात सामने आती है तो कोई ताज्जुब नहीं होनी चाहिए!

रालोसपा के प्रधान महासचिव आनंद माधव ने कहा कि अभी तक टिकट को लेकर के एक बार भी आश्वासन नहीं मिला है. ऐसे में रालोसपा अलग विकल्प देखने के लिए स्वतंत्र है. अगर रालोसपा कोई अलग विकल्प की तलाश करता है तो इसकी जिम्मेदारी आरजेडी और कांग्रेस की होगी.

उपेन्द्र कुशवाहा ने बुलाई आपात बैठक

महागठबंधन में अनदेखी किए जाने को लेकर उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी कार्यकारिणी की आपात बैठक कल यानी 24 सितंबर को बुलाई है. इस बैठक के बाद कोई भी फैसला लिया जा सकता है. रालोसपा के प्रधान महासचिव आनंद माधव का कहना है कि जैसे रालोसपा की अनदेखी की जा रही है वैसी सूरत में गठबंधन में रह पाना मुश्किल है. इससे राजद की नीयत पर भी सवाल खड़ा होता है.

अलग होने की स्थिति में पार्टी के पास कौन-सा विकल्प है?

अब उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन से अलग होते है तो उनके पास आगे क्या रास्ता होगा, इसपर भी चर्चा कर लेते है. वे एनडीए में जा सकते हैं, लेकिन वहां तो पहले से ही बहुत भीड़ है. ऊपर से नीतीश के साथ उनकी बनती भी नहीं है. ऐसे में किसी भी सूरत में वे एनडीए का हिस्सा नहीं होंगे. तो क्या वे किसी से भी गठबंधन नहीं करेंगे और अपने बूते चुनाव लड़ेंगे? ये स्तिथि अभी उनके लिए मुफीद नहीं है. हां एक विकल्प वो अपना सकते हैं. ये विकल्प है वाम दलों के साथ मिलकर थर्ड फ्रंट बनाने का.


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