Nitish Kumar and Chirag Paswan

सीट शेयरिंग को लेकर लोजपा एनडीए से अलग हो गई है. सीट बंटवारे को लेकर चली एक लंबी रस्साकशी के दौरान लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान जहां भाजपा के प्रति सहयोगात्मक रुख अपनाये रखा, वहीं जेडयू पर लगातार हमलावर रहे. अब जबकि ये फाइनल हो चुका है कि लोजपा उन सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी जहां से जेडयू के प्रत्याशी खड़े होंगे. सियासत के बदलते इस रुख से जेडयू को नुकसान उठना पड़ सकता है.

आप सियासी समीकरण को देखे तो चिराग पासवान का ये मास्टर स्ट्रोक कहा जा सकता है. चिराग ने बेहद सूझ-बूझ के साथ ये दांव चला है. जिसमें चिराग के पास खोने के लिए काफी कम जमीन है. जबकि उनका ये रणनीति कामयाब हो जाता है तो पाने के लिए बहुत कुछ है. मान लीजिए कि विधानसभा त्रिशंकु हो जाता है. यानी वो स्थिति जिसमें किसी भी पार्टी के पास बहुमत का आकड़ा नहीं होता है.

ऐसे हालात में लोजपा किंग मेकर बनकर उभर सकती है. इस स्थिति में सत्ता का गुणा-गणित किसी भी करवट बदल सकता है. चिराग अपने लिए कम से कम डिप्टी चीफ मिनिस्टर का पद ले सकते है या कर्नाटक वाली राजनीतिक समीकरण भी देखने को मिल सकता है. 224 सीटों वाली राज्य विधानसभा की 222 सीटों पर वोटिंग हुई थी जिसमें सबसे कम सीट पाने वाली पार्टी जनता दल सेक्युलर(जेडीएस,37 सीटें) को चीफ मीनीस्टर का पद मिल गया था. आपको बता दें कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में सबसे ज्यादा 104 सीटें भाजपा को और कांग्रेस को 78 कांग्रेस सीटें मिली थीं. तब बहुमत के लिए जरूरी संख्या न जुटा पाने के कारण भाजपा के बीएस येदियुरप्‍पा को इस्तीफा देना पड़ा था और कांग्रेस के समर्थन से जेडीएस ने सरकार बनाया था.

तय स्ट्रेटजी के तहत चिराग ने नीतीश पर हमले से जो शुरुआत की थी, उसकी पूर्णाहुति रविवार 4 सितंबर को हुई जब लोजपा ने ऐलान कर किया कि वह हर उस सीट पर लड़ेगी, जहां जदयू प्रत्याशी होंगे. भाजपा ने भी इस पूरे प्रकरण पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देकर चुप्पी साधे रखी. उसका मौन एक तरीके से सहमती के समान है.

Nitish Kumar Narendra Modi and Chirag Paswan

वैसे इस सियासी फिल्म का ट्रेलर तो ‘मोदी से कोई बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं’ वाले पोस्टर से शनिवार 3 सितंबर को ही साफ हो गई थी. मतलब एक ऐसी स्क्रीप्ट लिखी गई, जिसका क्लाइमैक्स को बखूबी समझा जा सकता है कि ऊंट किस ओर करवट लेगी. पिछले विधानसभा चुनाव 2015 की स्थिति पर गौर करे तो हम पाते हैं कि लोजपा पिछली बार भले ही 2 सीटें जीत पाई थी, मगर 36 सीटों पर दूसरे और 2 पर तीसरे नंबर पर थी. अब जबकि लोजपा एनडीए से बाहर है और जदयू को 122 सीटें दी गई हैं, जिसमें हम पार्टी को 7 सीटें शामिल हैं. भाजपा के खाते में 121 सीटें हैं और वीआईपी को इन्हीं सीटों में से हिस्सा दिया जाना है. आज के हालात में उसके हाथ में 121 सीटें हैं. पर, जिन सीटों पर भाजपा खुद नहीं लड़ेगी, वहां क्या करेगी यह देखना दिलचस्प होगा.

राजनीतिक रणनीतिकारों का मानना हैं कि ऐसी सीटों पर लोजपा लड़ रही होगी और पीछे से ही सही उसे भाजपा का ‘साथ’ मिल सकता है. लोजपा भले ही ज्यादा सीटें न जीते, लेकिन जदयू का खेल जरूर बिगाड़े सकती है. मतलब साफ है, लोजपा जीते या हारे, खेल नीतीश का खराब होगा. विधानसभा चुनाव 2005 में भी लोजपा ने राजद के प्रति लोगों की नाराजगी का फायदा उठाते हुए उसे बड़ा नुकसान पहुंचाया था. तब लालू-राबड़ी के सत्ता के 15 साल पूरे हुए थे और लोगों में सत्ता पक्ष को लेकर एंटी इनकम्बेंसी थीं.

इतिहास आज उसी मोड़ पर है अब नीतीश राज के 15 साल पूरे हो रहे हैं. लोजपा इस बार भी सत्ता विरोधी रूझानों को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. 


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