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हरेला पर्व उतराखंड के कुमाऊं रीजन में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है. ये पर्व चैत्र, श्रावण और आषाढ़ के शुरू होने पर यानी साल में तीन बार मनाया जाता है. हरेला का पर्व नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है. सावन मास के हरेला पर्व का महत्व सबसे खास माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि देवभूमि में भगवान शंकर का घर हिमालय और ससुराल हरिद्वार दोनों हैं. और सावन का महीना तो देवों के देव महादेव को ही समर्पित हैं.

हरेला पर्व में भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. शिव-परिवार की मूर्तियां भी गढ़ी जाती हैं, जिन्हें डिकारे कहा जाता है। शुद्ध मिट्टी की आकृतियों को प्राकृतिक रंगों से शिव-परिवार की प्रतिमाओं का आकार दिया जाता है और इस दिन उनकी पूजा की जाती है.

सावन महीना आने के नौ दिन पहले ही हरेला बोया जाता है. इसे बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है. इसमें मिट्टी डालकर गेंहूं, जौ, मूंग, उड़द, भुट्टा, गहत, सरसों आदि 7 प्रकार के बीजों को बोया जाता है. फिर नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़का जाता हैं. उसके बाद दसवें दिन इसे काटा जाता है. तब तक ये पौधे 4 से 6 इंच लम्बे हो जाते हैं. इन्हीं पौधों को ही हरेला कहा जाता हैं.

सबसे पहले हरेला को देवताओं पर चढ़ाया जाता हैं. उसके बाद हरेला को घर के सभी लोगों के सर पर या कान के ऊपर रखा जाता है. घर के दरवाजों के दोनों ओर या ऊपर भी गोबर से इन तिनकों को सजाया जाता है. इस दौरान लोगों द्वारा पूरे एक पखवाड़े तक पौधारोपण किया जाता हैं. इस अवसर पर लोक गीत भी गाए जाते हैं. विशेष रूप से इस गीत को जरूर गाया जाता है-

“जी रया जागि रया आकाश जस उच्च,
धरती जस चाकव है जया स्यावै क जस बुद्धि,
सूरज जस तराण है जौ सिल पिसी भात खाया,
जाँठि टेकि भैर जया दूब जस फैलि जया...”

इस गीत का अर्थ है: “तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता-जाता रहे, वंश-परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिले आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में हिम रहने और गंगा जमुना में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो़.”

प्रकृति और अन्न देवता की पूजा के प्रतिक के रूप में मनाया जाने वाला इस लोक-त्यौहार का संबंध उर्वरता, खुशहाली, नव-जीवन और विकास से जुड़ा है. यह पर्व पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ लोक परंपरा, सामाजिक सद्भाव और संयुक्त परिवार का भी संदेश देता है.

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