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'दुश्मन की गोलियों का सामना हम करेंगे, _आजाद हैं हम आजाद ही रहेंगे..!”

भारत मां के सच्‍चे सपूत चंद्रशेखर आजाद की आज जयंती है. आज से ठीक 113 साल पहले, यानी 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर आजाद का जन्म हुआ था. उनका बचपन का नाम चंद्रशेखर तिवारी था. आज़ाद प्राकृतिक रूप से फुर्तीले एवं तंदुरुस्त थे. तीरंदाज़ी एवं भालाफेंक में उन्हें विशेष महारथ हासिल थीं. आजाद 14 वर्ष की आयु में संस्कृत की पढाई के लिए बनारस के काशी विद्यापीठ गए, जहां राष्ट्रवादी आंदोलन से उनका परिचय हुआ. बेहद कम उम्र में चंद्रशेखर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे. 1920 में आजाद गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़े. वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए.

मजिस्ट्रेट के सामने उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को अपना निवास बताया. तब आजाद को 15 कोड़ों की सजा देकर छोड़ दिया गया. उसके बाद महज 17 साल की उम्र में आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) से जुड़े गए. तेज दिमाग के कारण उनका नाम क्विक सिल्वर रखा गया. 1925 में हुए काकोरी कांड में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी. क्रांतिकारियों के इस प्रयास ने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया था. 1925 से 1928 के बीच आज़ाद ऐसी कई घटनाओं में भागीदार रहे थे, चाहे वह भारत के वाइसराय को बम से उड़ाने की कोशिश हो या अंगरेज़ पुलिस अफसर जेपी सौंडर्स की हत्या.

आज़ाद ने 1928 में भगत सिंह के साथ मिलकर एचआरए को पुनर्जीवित किया और इसे एक नया नाम दिया – हिन्दोस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक असोसिएशन (एचएसआरए). उनकी गतिविधियां अगले तीन वर्षों तक तबतक जारी रहीं जबतक वे शहीद न हो गए.

27 फरवरी 1931 को देश की आजादी के लिए लड़ते हुए निडरता से अपनी मातृभूमि पर कुर्बान हो जाने वाले चंद्रशेखर आजाद ने आखिरी दम तक माटी का कर्ज चुकाया. आजाद अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी.आई.डी. का एस.एस.पी. नॉट बाबर जीप से वहां आ पहुंचा. उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में पुलिस बल भी थी. अचानक अंग्रेज पुलिस ने उनपर हमला कर दिया. दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी हुई, हालांकि इस गोलीबारी में आजाद ने सुखदेव राज को तो वहां से सुरक्षित बाहर निकाल दिया. आजाद सैकड़ों पुलिस वालों के सामने अकेले ही लोहा लेते रहें. आखिरी दम तक अपने संकल्प पर अडिग रहें. उनका संकल्प था कि वे न कभी जिंदा पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी. इसीलिए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपनी पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली.

देश के लिए उन्होंने सिर्फ 24 साल की उम्र में अपने प्राण की आहुति दे दी. उनकी शहादत के करीब 16 साल बाद भारत को आजाद देश बनाने का उनका ख्वाब पूरा हो सका था. इलाहाबाद का सबसे बड़ा पार्क है अल्फ्रेड पार्क, जिसे अब भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद के नाम पर 'चन्द्रशेखर आजाद पार्क' के नाम से जाना जाता है. वर्तमान में इस पार्क के एक हिस्से में इलाहाबाद संग्रहालय भी है जिसमे शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की वो पिस्टल भी रखी गयी है, जो आज़ाद हमेशा अपने पास रखते थे.

सफ़ेद बनियान पहनकर मूंछों को ताव देती हुई चंद्रशेखर आज़ाद की तस्वीर साहस, देशप्रेम एवं बलिदान की जीवंत मिसाल है.

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