डॉटर्स डे सितंबर माह के चौथे रविवार को मनाया जाता है जो कि इस बार 27 सितंबर यानी आज है. महाराष्ट्र में इसे 'जागतिक कन्या दिवस' के रूप में मनाया जाता हैं. जिस प्रकार से हम मां को सम्मान देने के लिए मदर्स डे, शिक्षक को सम्मान देने के लिए टीचर्स डे, दोस्ती के लिए फ्रेंडशिप डे एवं पिता को सम्मान देने के लिए फादर्स डे मनाते है. उसी तरह बेटियों को सम्मान देने के लिए डॉटर्स डे मनाया जाता है. यह दुनिया भर में अलग तारीखों पर मनाया जाता है. वैश्विक स्तर पर 28 सितंबर को इसे अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत में महिलाओं के मान एंव महत्व को सबसे पहले स्थान पर रखा जाता हैं. हम महिलाओं को पूजने वाले परंपरा से संबंध रखते आये हैं. तभी तो महिलाओं को लेकर ये श्लोक रची गई:-
इसका मतलब है जहां महिलाओं की पूजा यानी सम्मान होती हैं, वहीं पर देवता वास करते हैं. जहां स्त्रियों की पूजा नहीं होती हैं, उनका सम्मान नहीं होता है वहां किये जाने वाले सारे अच्छे काम भी निष्फल हो जाते हैं.
डॉटर्स डे का उद्देश्य लोगों को लड़कियों की गरिमा, सुरक्षा और अधिकारों के बारे में जागरूक करना हैं. उन्हें अपने परंपरा का भान कराना है कि हमारी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि क्या है? हम किस दिशा में हैं और हमें किस दिशा में होना चाहिए? यह दिन उसी सनातन परंपरा को याद करने एवं बेटियों के लिए समर्पित एक विशेष दिन है. इस अवसर पर बेटियों को कई तरह के उपहार दिए जाते हैं.
सभी बच्चों को माता-पिता से प्यार होता है. विशेष रूप से बेटियों को पिता से विशेष लगाव होता है. ऐसा कहा जाता है कि मां लड़के से प्यार करती है और बेटी पिता से प्यार करती है. लड़की एक अनमोल खजाना है. बेटी लक्ष्मी है, जो घर की शोभा बढ़ाती हैं. इस दिन लड़कियों के लिए प्यार और स्नेह व्यक्त किया जाता है. लड़कियों को सपोर्ट करें, उन्हें बोझ न समझे. उन्हें प्यार और सम्मान चाहिए.
भारत में पितृसत्तात्मक संस्कृति है. इसलिए, लड़कों की तुलना में लड़कियों को अक्सर कम आंका जाता है. हालांकि, लड़कियों ने सभी क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई हैं. आज लड़कियों ने हर क्षेत्र में अपना नाम कमाया है. इससे लड़का-लड़की का अंतर कम जरूर हुआ है, लेकिन अभी भी कुछ राज्यों में कन्या भ्रूण हत्या बढ़ रही है. इसलिए, डॉटर्स डे को कन्या भ्रूण हत्या का सहारा लेने वाले नागरिकों के बीच लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव को खत्म करने की एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाया जाना चाहिए.
अगर हम लैंगिक भेदभाव खत्म कर पाएं, हर क्षेत्र में समान अवसर दिला पाएं, उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण का ख़याल रख पाएं तभी इस दिन को मनाना सार्थक हो सकता है.