देशवासी आज अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. परंतु इस आजादी को पाने के लिए हमें लंबी संघर्ष एवं कुर्बानी देनी पड़ीं. देश के वीर सपूतों ने मिलकर ब्रिटिश हुकूमत से भारत को आजादी दिलाई. इस दौरान कई देश प्रमियों ने अपना पूरा जीवन संघर्ष में गुजार दिया जबकि कई वीर सपूतों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहूति भी दे दी. तब जाकर 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उन नारों को याद करते हैं, जिसने देशवासियों में देशभक्ति के जज्बे को जगाये रखा, लोगों में वतन के लिए मर-मिटने की ललक पैदा की और लोगों को एकजुट होकर अन्याय के विरूद्ध लड़ना सिखाया.
“सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी ये गुलसितां हमारा” यह नारा प्रसिद्ध शायर अल्लामा मोहम्मद इक़बाल ने लिखा था. ये स्लोगन पूरे कौम की आवाज बना. इस नारे ने हमें सिखाया कि सबसे पहले देश है, क्योंकि उससी से हमारा वजूद कायम रहता हैं.
"वंदे मातरम" यानी मां, मैं आपके सामने सर झुकाता हूं और आपका सर कभी न झूके इसके लिए हमेशा कृत-
"इंकलाब जिंदाबाद" वैसे तो इस नारे को तो उर्दू के कवि और स्वतंत्रता सेनानी मौलाना हसरत मोहानी ने दिया था. लेकिन इसे लोकप्रिय बनाया देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने. यह नारा आजादी की लड़ाई के दौरान सबकी जुबान पर चढ़ गया इससे उनके दिलों में देशभक्ति का जज्बा पैदा हुआ और और देश के युवाओं ने इससे प्रेरणा लेकर बढ़-चढ़कर आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया.
"आराम हराम है" इस नारे को पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी जवाहरलाल नेहरू ने ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिए इस्तेमाल किया था. मुल्क की हालत को देशवासियों से वाकिफ कराते हुए उन्होंने देश के बाशिंदो को अपनी नारे से आगाह भी किया था कि हमें जब तक आजादी नहीं मिल जाती तब तक आराम की सांस नहीं ले सकते हैं.
"सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है" इस नारे को रामप्रसाद बिस्मिल ने दिया था. उन्होंने ब्रिटिश शासन को चुनौती देने के लिए नारे के तौर पर इसका इस्तेमाल किया था.
"करो या मरो" इस नारे को महात्मा गांधी ने दिया था. 7 अगस्त, 1942 को ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी की एक बैठक के बाद उन्होंने यह नारा दिया था. कांग्रेस के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था, 'मेरे जेल जाने से कुछ नहीं होगा, करो या मरो.' यानी या तो हम देश को आजाद करा लेंगे या आजाद कराने की कोशिश करते हुए अपना बलिदान दे देंगे.
"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" इस नारे को सुभाष चंद्र बोस ने यह नारा दिया था. उन्होंने लोगों को स्वदेश के लिए बलिदानी देने की अपील की. इस नारे से प्रेरित होकर हजारों युवकों ने मातृभूमि के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दीं.
ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को मेरा कोटि-कोटि नमन, जिनके बलिदानों से देश की आवाम आबाद हैं. वतन पर मर मिटने के लिए तत्पर आज़ादी के परवानों के लिए ये महज कुछ शब्द भर नहीं थे बल्कि एक जोश, एक जुनून था जिसने लोगों के दिलों में देशप्रेम की ललक जगाईं. इस नारे से प्रभावित होकर लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानियां देकर देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाई थीं.