वस्तु एवं सेवा कर (GST) काउंसिल की 41वीं बैठक गुरुवार 27 अगस्त को हुई. इस बार की बैठक का मुख्य मसला राज्यों का बकाया मुआवजा था. आपको बता दें कि यह जीएसटी के लिए अब तक का सबसे बड़ा संकट है. आखिर क्या है यह मसला जिसको लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच तनातनी जारी है? आइये समझते हैं इस रिपोर्ट से.

दरअसल, सरकार ने एक देश-एक टैक्स को फायदेमंद बताते हुए नए कर ढांचे के रूप में जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर 1 जुलाई 2017 को लागू किया था. इसके तहत टैक्स की वसूली तो आसान हुई, लेकिन राज्यों को राजस्व का नुकसान हो रहा था. तब केन्द्र सरकार ने इसे लागू करते समय कहा था कि राज्यों के नुकसान की पूरी भरपाई की जाएगी. इसी आधार पर राज्यों को मनाया गया था. अब यहीं मुआवजा केंद्र-राज्य संबंधों में टकराव का कारण बनी हुई है. केंद्र ने कहा कि उसके पास मुआवजे के पैसे नहीं बचे. जबकि नियमों के मुताबिक केंद्र को राज्यों की राजस्व नुकसान की भरपाई करनी है.

Image credit: aajtak.in

जीएसटी कानून में यह तय किया गया था कि इसे लागू करने के बाद पहले पांच साल में राज्यों को राजस्व का जो भी नुकसान होगा, उसकी केंद्र सरकार भरपाई करेगी. आधार वर्ष 2015-16 को मानते हुए यह तय किया गया कि राज्यों के इस प्रोटेक्टेड रेवेन्यू में हर साल 14 फीसदी की बढ़त को मानते हुए गणना की जाएगी. पांच साल के ट्रांजिशन पीरियड तक केंद्र सरकार महीने में दो बार राज्यों को मुआवजे की रकम देगी. कहा गया कि राज्यों को मिलने वाला सभी मुआवजा जीएसटी के कम्पेनसेशन फंड से दिया जाएगा.

राज्यों को मुआवजे की भरपाई के लिए जीएसटी के तहत ही एक कम्पेनसेशन सेस यानी मुआवजा उपकर लगाया जाता है. यह उपकर तंबाकू, ऑटोमोबाइल जैसे गैर जरूरी और लग्जरी आइटम पर लगाया जाता है. इस उपकर के कलेक्शन से जो फंड बनता है उसी से राज्यों के मुआवजे की भरपाई सरकार करती है. संकट की वजह ये है कि जीएसटी मुआवजे के संग्रह में कोई बढ़त नहीं हुई और राज्यों के बकाये में 14 फीसदी के कंपाउंड इंटरेस्ट से बढ़त होने लगी. कोरोना संकट से काफी पहले अगस्त 2019 में ही देश की आर्थिक हालत इतनी खस्ता थी कि जीएसटी कलेक्शन राज्यों को दिए जाने वाले हिस्से का आधा भी नहीं हो पाया था.

फिर उसके बाद कोरोना महामारी की वजह से लगी लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर ही तोड़ दी. लॉकडाउन में इस फंड में कुछ खास रकम नहीं आई जिसके बाद केंद्र सरकार के लिए राज्यों को मुआवजा देने में काफी मुश्किल आने लगी. केंद्र सरकार ने जून महीने में राज्यों को नवंबर से फरवरी तक का 36,400 करोड़ रुपये का बकाया जारी किया. फरवरी से अगस्त तक का सरकार ने अभी तक कोई मुआवजा नहीं दिया है.

केंद्र सरकार ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार किया है कि जीएसटी के तहत निर्धारित कानून के तहत राज्यों की हिस्सेदारी देने के लिए उसके पास पैसे नहीं है. सरकार को यह आभास हो गया था कि राज्यों को मुआवजा देने के लिए कम्पेनसेशन सेस संग्रह काफी नहीं है. कम्पेनसेशन सेस संग्रह हर महीने 7,000 से 8,000 करोड़ रुपये हो रहा था, जबकि राज्यों को हर महीने 14,000 करोड़ रुपये देने पड़ रहे थे.


Discus