गुजरात के पनेल मोटी में 29 जुलाई 1954 को जन्मे हर्षद मेहता एक छोटे से बिजनेस मैन परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनका बचपन मुंबई के कांदिवली में गुजरा. मुंबई के होली क्रॉस बेरोन बाजार सेकेंडरी स्कूल से बारहवीं करने के बाद लाजपत राय कॉलेज से बी.कॉम की डिग्री प्राप्त किया. 

पढ़ाई के बाद फिर अगले आठ साल तक छोटी-छोटी नौकरियां की. हर्षद ने न्यू इंडिया अश्योरेंस कंपनी लिमिटेड में बतौर सेल्स पर्सन अपनी पहली नौकरी ज्वॉइन किया. इसी वक्त हर्ष की रुचि शेयर मार्केट की ओर हुई. औऱ उन्होंने नौकरी छोड़ हरिजीवनदास नेमीदास सिक्योरिटीज नाम की ब्रोक्रेज फर्म में बतौर जॉबर नौकरी ज्वॉइन कर लिया.

हर्षद ने प्रसन्न परिजीवनदास के साथ काम करते हुए स्टॉक मार्केट के गुर सीखे. हर्षद परिजीवनदास को अपना गुरु मानते थे. कुछ बड़ा करने की ललक में हर्षद ने ब्रोक्रेज फर्म की नौकरी छोड़ कर 1984 में खुद की 'Grow More Research and assets Management' नाम की कंपनी की शुरुआत की और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में बतौर ब्रोकर मेंबरशिप ले लिया. और फिर यहां से शुरू होता है स्टॉक मार्केट के उस शख्सियत का सफर जिसे आगे चलकर स्टॉक मार्केट अमिताभ अमिताभ बच्चन औऱ बिग बुल कहा जाने लगा.

एक समय था जब सेंसेक्स 1000 से ऊपर नहीं जा पाता था. जब कभी 1000 से ऊपर जाने की कोशिश करता तब कुछ शक्तिशाली लोग बड़े बड़े कंपनियों के शेयर बेचने लगते थे क्योंकि उन लोगों को मार्किट के गिरने से ही फायदा था तो वे अपने पैसे के बलबूते पर कंपनियों के शेयर को इतना बेचते थे की शेयर की कीमत गिर जाती थी. इससे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का बेंचमार्क इंडेक्स 'सेंसेक्स' भी गिर जाता. हर्षद मेहता चाहते थे की सेंसेक्स में बढ़त जारी रहे. क्योंकि इससे देश के इकोनॉमी को फायदा होता है. 

हर्षद का मानना था कि शेयर बाजार किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी जैसी होती है जो मजबूत होनी चाहिए. हर्षद कहते थे कि जो कंपनी अच्छी हैं, उनके शेयर नहीं गिरने चाहिए. आपको बता दें कि हर्षद मेहता ही वो शख्स था जिसने भारत में फंडामेंटल एनालिसिस को लोकप्रिय किया. वह अपनी रिसर्च रिपोर्ट बनाते थे और लोग उन कंपनियों के शेयर खरीदते थे जिनके फंडामेंटल्स अच्छे हैं. फिर हर्षद मेहता ने पब्लिक सेक्टर बैंक को भरोसे में लिया ताकि यह शक्तिशाली लोग जितना बेचें उस से ज्यादा हर्षद मेहता खरीद सकें और शेयर की कीमत कभी ना गिरे.

कुछ बड़े उद्योगपति ने भी हर्षद मेहता का साथ दिया और पहली बार सेंसेक्स ने 1000 का लेवल तोड़ा, फिर 2000, 3000 करके आगे बढ़ता रहा. बाज़ार में मानो एक लहर सी आ गयी. वह शक्तिशाली लोग जिनका फायदा बाज़ार के गिरने से था, वह लोग बौखला गए, उन्हें मालूम ही नहीं पड़ रहा था की हर्षद मेहता के पास इतने पैसे कहां से आ रहे हैं की वह कंपनियों के शेयर खरीदते ही जा रहे हैं. उसके फंड का सोर्स क्या है?

जैसे ही इस बात का पता चल गया की हर्षद मेहता बैंक का पैसा बाज़ार में लगाते है. तो इसे एक स्कैम का रूप दे दिया गया. चूंकि भारत में सरकारी बैंकों का पैसा शेयर बाजार में लगाना अवैध था. इस स्कैम को समझने के लियें पहले आपको 1992 के फाइनेंशियल मार्केट को समझाना होगा. पहले तो आपको ये बता दें कि फाइनेंशियल मार्केट में कैपिटल मार्केट जहां कम्पनी के शेयर को ख़रीदा व बेचा जाता है. मनी मार्केट, जहां शॉर्ट टर्म दायित्व जैसे ट्रेज़री बिल, वाणिज्यिक पत्र/पेपर और बैंकरों की स्वीकृतियां आदि खरीदे और बेचे जाते हैं. 

एक तरफ कैपिटल मार्केट में रिटर्न अधिक था तो रिस्क भी ज्यादा था. वहीं मनी मार्केट में सरकारी बॉन्ड ख़रीदे और बेचे जाते थे. बॉन्ड पर सॉवरेन गारंटी होती हैं इसीलिये इनका रिटर्न कम होता था लेकिन वॉल्यूम अधिक होता था. स्टॉक मार्केट से कई गुना अधिक. 1992 में सरकार अपने प्राजेक्ट्स के लियें पैसा इन बॉन्ड के द्वारा बनाती थी और सिर्फ़ बैंक ही इनको ख़रीद पाते थे. 

इन दोनो तरह के बाज़ार में निवेश ब्रोकर के द्वारा किया जाता था. जहां स्टॉक मार्केट में अधिक ब्रोकर थे वही बैंक बॉन्ड के लियें कुछ एक ब्रोकर ही बाज़ार में थे. हर्षद मेहता भारतीय रिज़र्व बैंक (आर॰बी॰आई॰) द्वारा दोनो बाज़ार में एक रेजिस्टर्ड ब्रोकर था.

बैंक को जब पैसे की ज़रूरत होती थी, तो वो रेजिस्टर्ज़ ब्रोकर के पास जाते थे और अपने बॉन्ड के लियें ग्राहक बैंक की खोज करते थे. वो ब्रोकर को बॉन्ड बेचने के लिये अधिकृत करते थे. ब्रोकर को जब ग्राहक मिल जाता था तो वो अपने अधिकृत पत्र को दिखा कर ग्राहक बैंक से चेक ले लेता था। जब ये पैसा विक्रेता बैंक के पास आ जाता था तो विक्रेता बैंक एक रसीद जारी करता था इसको बैंक रसीद(Bank receipt) कहते थे. ग्राहक बैंक को जब रसीद प्राप्त हो जाती थी तो ट्रान्जेक्शन पूरा माना जाता था.

चूंकि इस सिस्टम में कुछ लूपहोल था जिसका फायदा हर्षद मेहता ने उठाया. ग्राहक और विक्रेता बैंक कभी एक दूसरे से बारे में नहीं जान पाते थे. सारा ट्रान्जेक्शन ब्रोकर के द्वारा होता था. इस पूरी प्रक्रिया में, वास्तविक बॉन्ड पेपर ट्रान्स्फ़र नहीं किये जाते थे. पेपर विक्रेता के पास ही रहते थे और सिर्फ़ बैंक रसीद के आधार पर ग्राहक बैंक बॉन्ड पर अधिकार रख सकता था. ये शायद इसलिये किया जाता था क्योंकि बैंक कुछ समय बाद बॉन्ड वापिस ख़रीद लेते थे, बॉन्ड एक अल्प कल्कि लोन कलैटरल की तरह इसका उपयोग करते थे. इसे रेडी फ़ॉर्वर्ड डील बोलते थे.

बैंक सीधे स्टॉक मार्केट में निवेश नहीं कर सकते थे तो हर्षद मेहता फ़र्ज़ी स्टैम्प पेपर पर बैंक को आश्वासन देता था की वो बेहतर रिटर्न वाला बॉंड विक्रेता उसके पास उपलब्ध हैं. बैंक हर्षद मेहता को पैसा ट्रान्स्फ़र कर देते थे और वो इसको बाज़ार में निवेश करता था. अधिक धन होने की वजह से बाज़ार मनिप्युलेट हो जाता था, फिर ये बेच कर अपना मुनाफ़ा निकल कर बैंक को या तो पैसे वापिस कर देता था या नक़ली बैंक रसीद पकड़ा देता था. इस समय पर शेयरों और बांड की फिजिकल ट्रेडिंग होती थी. 

करोड़ों रुपए के शेयर, बांड सर्टिफिकेट हर्षद मेहता जैसे शेयर दलालों के ऑफिस में पड़े रहते थे और उनकी डिलिवरी हुए बिना 90 फीसदी सौदे विश्वास के आधार पर होते रहते थे. उन्हें रोज़ सर्टिफिकेट नम्बरों से वास्तविक तौर पर चेक करना सम्भव ही नहीं था. हर्षद मेहता ने इसी लूपहोल का फायदा उठाया और उसने इन्हीं रसीद के बदले पैसा उठाकर वह शेयर बाजार में लगाते थे. इससे वह मुनाफा कमाकर बैंकों को उनका पैसालौटा देते थे. 

जब तक शेयर बाजार चढ़ता रहा, किसी को इसकी भनक नहीं पड़ी. लेकिन बाजार में गिरावट के बाद जब वह बैंकों का पैसा 15 दिन के भीतर नहीं लौटा पाए उनकी पोल खुल गई. हर्षद ने ये काम कई भारतीय बैंकों के साथ किया. इसमें इन सरकारी बैंकों को काफी नुकसान हुआ जिन्हें खरीदे हुए शेयरों की या तो डिलीवरी ही नहीं मिली या बेचे हुए शेयरों के पैसे डूब गए. 

टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार सुचेता दलाल ने इसको सबसे पहले रिपोर्ट किया था. सुचेता दलाल ने बताया कि हर्षद मेहता बैंक से एक 15 दिन का लोन लेता था और उसे स्टॉक मार्केट में लगा देता था. हर्षद मेहता एक बैंक से फेक बीआर बनावाता जिसके बाद उसे दूसरे बैंक से भी आराम से पैसा मिल जाता था. इस राज का खुलासा तब हुआ जब वह एक बैंक का पैसा 15 दिन के भीतर नहीं दे पाए. प्रेस में बात सामने आने से सरकार पर प्रेशर बढ़ा फिर भारत सरकार ने जारी किये गये बॉन्ड की जांच की तो गड़बड़ी सामने आई. हर्षद मेहता को 4000 करोड़ की धोखाधड़ी का दोषी पाया गया. 

उसके बाद बिना सिक्योरिटी मार्जिन राशि जमा किए फारवर्ड सौदों पर भी रोक लगा दी गई. ऐसे घोटालों को रोकने के लिए भारत सरकार ने शेयर दलालों की गतिविधियों पर दृष्टि व नियंत्रण के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI - Security Exchange Board Of India) को वैधानिक मान्यता दिते हुए अधिक अधिकार दिए. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के खानदानी दलालों से पीछा छुड़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक स्टॉक एक्सचेंज NSE और शेयर डिपाजिटरी NSDL की स्थापना की जिससे फिजिकल शेयर ट्रेडिंग प्रणाली का अंत हुआ और डिमैट ट्रेडिंग की शुरुआत हुई.

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