जब देश आजाद हुआ तब एक सबसे बड़ा प्रश्न भाषा को लेकर था. आखिर किसे राष्ट्रीय भाषा बनाया जाए. काफी विचार-विमर्श करने के बाद 14 सितंबर सन् 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया. इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में किया गया है, जिसके अनुसार भारत की राजभाषा ‘हिंदी’ और लिपि ‘देवनागरी’ है.

हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिलने के ठीक चार साल बाद 1953 को इसी दिन हिंदी दिवस मनाने की औपचारिक ऐलान किया गया. इस दिवस को मनाने के पीछे की वजह ये है कि इस भाषा की समृद्धशाली परंपरा को आगे बढ़ाया जा सके. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हिंदी को जन मानस की भाषा कहा था.


मार्च 1918 में इंदौर में हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन में महात्मा गांधी ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने का विचार सुझाया था. बापू ने उस वक्त कहा था, "आज हिंदी से मुकाबला करने वाली कोई दूसरी भाषा नहीं है. हिंदी-उर्दू का झगड़ा छोड़ने से राष्ट्रीय भाषा का सवाल सरल जाएगा. लेकिन इसके लिए एक पक्ष को थोड़े-बहुत फारसी के शब्द और दूसरे को संस्कृत के कुछ शब्द सीखने होंगे. इससे हिंदी की शक्ति कम नहीं बल्कि और बढ़ेगी और हिंदू-मुस्लिम एकता भी स्थापित होगी. खासतौर पर अंग्रेजी भाषा का मोह दूर करने के लिए इतना मेहनत तो हमें करना ही होगा."

हिंदी देश में बड़े पैमाने पर बोली, पढ़ी और लिखी जाती है. देश में 77 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते, समझते और पढ़ते हैं. हिंदी की सबसे अच्छी बात ये है कि यह समझने में बहुत आसान है, इसे जैसा लिखा जाता है इसका उच्चारण भी उसी प्रकार किया जाता है.

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