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शिव का अर्थ होता है कल्याण करने वाले, परंतु वे सृजन और संहार दोनों को ही अपने भीतर समाहित किए हुए हैं. सावन मास भगवान भोलेनाथ शिव को समर्पित हैं. इस मास में हमें शिव के स्वरूप को जानने और मनन करने का प्रयास करना चाहिए. शिव में शक्ति समाहित है. यहां शिव पुरुष के प्रतीक हैं, और शक्‍ति स्‍वरुप देवी पार्वती नारी की. इन दोनों के बीच में जो संवाद हुए है. वो मन को शक्ति भी देता है और जीने का तरीका भी.

एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि प्रभु जीवन क्या है?

शिव: जीवन तो अनंत है. उसका यूं तो कोई अंत नहीं होता, पर प्रेम के बिना जीवन नीरस है.

माता पार्वती: मतलब?

शिव: मतलब...हम अनंत हैं, पर अधूरे हैं. अगर इस अनंतता को बांटने के लिए कोई साथ न हो, तो हम अधूरे ही रहेंगे.

माता पार्वती: जीवन की यात्रा क्या है?

शिव: खुद को जानने से ही जीवन की यात्रा पूरी होती है.

माता पार्वती: ऐसा क्यों?

शिव: एक दिन खुद को जानने के सफ़र में पता चलता है कि अंत और आरम्भ एक ही है.

माता पार्वती: क्या आपको ये सब ध्यान करते हुए और योग करते हुए पता चलता है?

शिव: 'योग चित्त वृत्ति निरोध:' ये तो मन की वृतियों अर्थात् चंचलता को रोकता हैं और आत्म-साक्षात्कार में मदद करता है.

माता पार्वती: पहले मुझे आपके बाह्य आकर्षण यानी बाहरी सौंदर्य से प्रेम था और अब आपके आंतरिक भावों से प्रेम है.

शिव: तुम भानमती हो, तुम्हारा होना मुझे सम्पूर्ण करता है.

माता पार्वती: मैं भानमती हूं, तो आप क्या हैं, जो सारे संसार को सम्मोहित कर रखा है?

शिव: प्रेम का आकर्षण ऐसा ही होता है. यहीं जीवन का आधार है. इसी पर दुनिया टिकी है.

माता पार्वती: जब आप चुप होते हैं, तब भी ऐसा लगता है जैसे मुझसे बातें कर रहे हैं.

शिव: ये चुप्पी बहुत कम लोग ही समझ पाते हैं. शांत होना स्थिरता प्रदान करता है.

शिव के द्वारा दिया गया ज्ञान असीम है, अनंत है. उनकी बातें गहरी और उनकी चुप्पी उससे भी गहरी है! शक्ति को अपने शरीर का आधा भाग बनाकर शिव ने स्‍पष्‍ट किया कि वास्तव में स्त्री की शक्ति को स्वीकार किए बिना पुरुष पूर्ण नहीं हो सकता.

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