How did the Taliban come to power

तालिबान को खड़ा करने के पीछे पाकिस्तान का हाथ है. ये दैर था 1990 का जब सोवियत सेना अफगानिस्तान से वापस जा रही थी. वहीं पश्तून आंदोलन के सहारे तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी जड़े जमानी शुरू कर दी. इस आंदोलन का मकसद था लोगों को धार्मिक मदरसों में ले जाना. 

पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस (Inter Services Intelligence-ISI) ने मदरसों के अफगान छात्रों को भड़का कर सोवियत सेना के विरुद्ध कर दिया. हथियार, ट्रेनिंग एवं फंड मुहैया कराने का काम खुद ISI ने अपने जिम्मे लिया. इसे सऊदी अरब समेत कई खाड़ी देशों से इस काम में सहयोग मिलता था.

इस्लामिक कट्टपंथी राजनीतिक आंदोलन के रुप में उभरा ये संगठन देखते ही देखते आतंक का पर्याय बन गया. पाकिस्तान की शह पर तालिबान ने सितंबर 1995 में दक्षिणी-पश्चिमी अफगानिस्तान से आगे बढ़ते हुए ईरान की सीमा से लगे हेरात पर भी कब्ज़ा कर लिया. फिर एक साल बाद वो राजधानी काबुल तक पहुंच गए. 

दो साल की घेरेबंदी के बाद 1996 में उन्होंने राजधानी पर क़ब्ज़ा कर लिया. सत्ता में आने पर तालिबान ने पहला काम किया कि राष्ट्रपति नज़ीबुल्लाह को सरेआम फांसी दे दी. पाकिस्तान और सऊदी अरब के अलावा संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने तालिबान शासन को मान्यता भी दी थी.

तालिबान ने 1996 और 2001 के बीच अफगानिस्तान पर शासन किया. कहते हैं न जब पाप का घड़ा भरता है तो वो फूटता जरूर है. ऐसा तालिबान के साथ भी हुआ. वर्ष 2001 में न्यूयॉर्क में आतंकी हमले के बाद तालिबान का आतंकी चेहरा पूरी दुनिया बेनकाब हो गया. तालिबान का अलकायदा से सांठगांठ उजागर हो चुका था. 

मानव इतिहास के इस सबसे खूंखार आतंकवादी हमले में करीब 2997 लोगों की मौत एवं 6000 से ज्यादा लोग घायल हुए. इस हमले में अमेरिका को 10 बिलियन डॉलर का नुकसान पहुंचा. ये आतंकी वारदात अमेरिका के सम्मान पर हमला था, जिसके जवाब में 7 अक्तूबर 2001 को अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया. अमेरिकी सेना ने तालिबान को सत्ता से बेदखल करके हामिद करज़ई को वहां का अंतरिम प्रशासनिक प्रमुख बना दिया.

हालांकि सत्ता से बेदखली से पहले तालिबान ने अफगानिस्तान को बर्बादी की गर्त में धकेल दिया. तालिबान ने वहां कट्टरवादी इस्लामिक कानूनों को लागू किया. अब बात इस तथ्य कि क्या खत्म हो गया था तालिबानी आतंकी संगठन? तो इसका जवाब है, नहीं. वो अमेरिकी सैनिकों के सामने कमजोर जरूर पड़ गया था. लेकिन जड़ से खत्म कभी नहीं हुआ था. वो इन 20 सालों में खुद को मजबूत करता रहा.

हालांकि पिछले 20 सालों से अमेरिकी सैनिक तालिबान को तबाह करने के लिए अफगानिस्तान में ही मौर्चा पर थे. पूरी दुनिया को लगता था कि अफगानिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी, तालिबान को नेस्तनाबूद कर देगी. लेकिन अरबों डॉलर बर्बाद करने और अपने हज़ारों सैनिकों की शहादत के बाद भी अमेरिकी सैनिक जड़ से तालिबान को खत्म नहीं कर सका. 

अब तो वो अफगानिस्तान से वापस भी लौट रहे हैं. क्योंकि पिछले साल फरवरी 2020 को कतर के दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच हुए शांति समझौते के तहत अमेरिका को 14 महीने के अंदर अफगानिस्तान से अपने सैन्य बलों को वापस बुला लेना है. और जैसे ही अमेकिकन सैनिक लौट रहे है, उसी के साथ तालिबान रिटर्न्स की तस्वीर भी साफ हो गई है.

सेनाओं की वापसी के बीच तालिबान अपनी ताक़त दिखाने लगा है. तालिबान ने अफ़ग़ान सरकार को गिराने की धमकी देते हुए कई इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करना शुरू कर दिया है. तालिबान का दावा है कि उसने 421 जिलों में से 85 फीसद जिलों पर कब्जा कर लिया है. ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं. 

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