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देश आज कारगिल पर विजय की 21वीं वर्षगांठ मना रहा है. 1999 में आज ही के दिन भारत के वीर सपूतों ने कारगिल की चोटियों से पाकिस्तानी फौज को खदेड़कर तिरंगा फहराया था. पाकिस्तानी सेना ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए 3 मई 1999 को कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था.

शुरुआत में इसे घुसपैठ माना जा रहा था. लेकिन बाद में भारतीय सेना को अहसास हुआ कि बड़े पैमाने पर हमले की साजिश रची जा रही है. इसके बाद जवाबी कार्रवाई में भारतीय सैनिकों की मोर्चे पर तैनाती की गई. मई से शुरू हुआ ये युद्ध 26 जुलाई तक चला.

भारतीय सेना ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करते हुए कारगिल युद्ध में धूल चटा दी. आज इस पर अवसर कारगिर युद्ध के महानायक कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय और कैप्टन विक्रम बत्रा की जिंदगी के अनसुने किस्से को साझा कर रहा हूं.

कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए भारत मां की रक्षा के लिए वीर सपूत अपने प्राणों की कुर्बानी दे रहे थे. ऐसे में इन वीर शहीदों के सम्मान में मनोज ने उनकी लाशें लाने के लिए अपने नाम की पेशकश की. मनोज का कहना था कि सैनिकों के पार्थिव शरीरों को तिरंगे में लपेट कर उनके परिवारों को लौटाया जाना चाहिए.

मनोज इस काम में जुट गए. उन्होंने दुश्मनों को ललकारते हुए कहा “खूनी कुत्तों, मैं तुम्हे अपने देश से निकाल कर ही छोडूंगा” मनोज ने शेर की तरह दहाड़ते हुए दुश्मन को ललकारा और फिर पूरा दम लगाकर मरे हुए सिपाही को अपनी ओर खींच लिया. यह एक चमत्कारिक काम था. जिन अफसरों ने इस कारनामों को होते देखा था वे आज भी मनोज के कमाल के काम को याद करते हैं, जिसने लगभग असंभव काम को संभव बनाया था.

गिरती हुई बर्फ के बीच उबड़-खाबड़ पत्थरों पर कूदते हुए, अपने चेहरे पर मौत का वीभत्स नकाब पहने हुए वे आगे बढ़े और आक्रोश व गर्व के साथ दुश्मन पर टूट पड़े. शूरवीर मनोज ने खून से लथपथ, रेंगते हुए पाकिस्‍तानी बंकर को उड़ा दिया. उन्‍हें ‘खालूबार’ की पोस्ट को जीतने का मिशन दिया गया था. उसे तो उन्होंने जीता ही साथ ही साथ पाकिस्‍तानी सेना के चार बंकरों को नेस्तानाबूद भी कर दि‍या. वे अंति‍म सांस तक गोली चलाते रहे और साथि‍यों को कवर देते रहे. मरणोपरांत उन्हें भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र दिया गया.

अब बात विक्रम बत्रा की, उनको घुसपैठियों से प्वांइट 5140 जीतने को कहा गया था. ब्रीफिंग मीटिंग में सीनियर ऑफिसर कर्नल जोशी ने कैप्टन बत्रा से जीत का सिग्नल पूछा, तब विक्रम ने कहा था, 'ये दिल मांगे मोर!' जब विक्रम से इसकी वजह पूछी तो विक्रम ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा कि वे एक कामयाबी पर रुकना नहीं चाहते और कब्ज़े के लिए दूसरे बंकरों की तलाश जारी रखेंगे.

प्वाइंट 5140 जीतते ही विकम बत्रा अगले प्वांइट 4875 को जीतने के लिए चल दिए. इस दौरान उनकी मौत एक जख्मी ऑफिसर को बचाते हुए हो गई. इस ऑफिसर को बचाते हुए विक्रम ने कहा था, ‘तुम हट जाओ. तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं. जंग में अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा को परमवीर चक्र के सम्मान से नवाजा गया.

ऐसे शूरवीरों को मेरा कोटि-कोटि नमन, जिनके बलिदानों से देश की आवाम आबाद हैं. आपको बता दें कि जब बर्फ से ढकी चोटियों, शून्य से कई डिग्री नीचे के तापमान और पहाड़ की चोटी पर बैठे दुश्मनों से युद्ध लड़ा जाता है, तो सेना को कई मोर्चों पर जंग करनी पड़ती है. ठंड, बर्फबारी, बारिश, कठिन चढ़ाई और ऊपर की ओर से चलाई जा रही दुश्मन की गोलियों से भी लड़ना पड़ता है.

उससे भी पहले भूख, थकान, नींद और रास्ते में लगी चोटों के दर्द पर विजय प्राप्त करनी होती है. पीने के लिए पानी की जगह बर्फ को चूसना पड़ता है. बारिश से गीली हुई जुराबों को निचोड़कर पहन लिया जाता है और पीठ पर गोला, बारूद लाद कर कठिन चढ़ाई कई-कई रात चढ़ी जाती है. उन शूरवीरों की कुर्बानी हमें झकझोरती है और उस साहस, हौसले, जोश, जुनून से रूबरू करवाती है जिसके बल पर सैनिक देश की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान करने से नहीं कतराता.

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Indian soldiers after winning a battle during the Kargil War
Image Credit: en.wikipedia.org

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