फिल्म जगत के सिंगिंग लीजेंड किशोर कुमार को उनके 88वें जयंती पर कोटि-कोटि नमन. इन्होंने अपने करियर में सभी भाषाओं को मिलाकर 1500 से ज्यादा गाने को आवाज़ दिया. गायक, संगीतकार, अभिनेता, निर्माता, लेखक हर फील्ड के उस्ताद किशोर कुमार बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. सबसे बड़ी दिलचस्प बात ये हैं कि सिंगिंग की दुनिया का ये नायाब कोहिनूर ने कभी संगीत की ट्रेनिंग नहीं ली थीं.
4 अगस्त, 1929 को आभास कुमार गांगुली के नाम से पैदा हुए किशोर कुमार मध्य प्रदेश के खंडवा से ताल्लुक रखते थे. उन्हें अपने जन्म स्थान से बहुत लगाव था और ये बात वो ख़ुद अपने स्टेज शो पर दोहराते थे. उन्होंने जब-जब स्टेज-शो किए, हमेशा हाथ जोड़कर सबसे पहले संबोधन करते थे- "मेरे दादा-दादियों! मेरे नाना-नानियों! मेरे भाई-बहनों!, आप सबको खंडवे वाले किशोर कुमार का राम-राम! नमस्कार."
किशोर कुमार का बचपन तो खंडवा में बीता, लेकिन जब वे किशोर हुए तो इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ने आए. किशोर दा ताउम्र अपने गांव-जवार के रंग में रंगे रहे. मुंबई की भीड़-भाड़, पार्टियां और ग्लैमर उन्हें पसंद नहीं थीं. यहां तक कि अपनी अंतिम ख्वाहिश के तौर पर अपने परिजनों से वचन लिया था कि खंडवा में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाए. वे कहा करते थे- "फिल्मों से संन्यास लेने के बाद मैं खंडवा में ही रहना चाहुंगा और रोजाना दूध-जलेबी खाऊंगा."
आज खंडवा में उनकी समाधी है. मध्य प्रदश सरकार ने कला के क्षेत्र में अद्वितिय योगदान के लिए हर साल उनके नाम पर कला जगत के उत्कृष्ट लोगों को सम्मानित करती हैं. किशोर कुमार ने अपने फिल्मी करियर में वो मुकाम हासिल किया, जो सबको नसीब नहीं होती हैं. इसलिए तो वे अपनी मौत के तीन दशक के बाद भी लोगों के दिलों में बने हुए हैं.
जहां मौजूदा दौर में हाल यह है कि सुपर हिट होने वाला कोई गाना अगले दिन ही गुमनामी के अंधेरे में खो जाता है. वहीं लोग किशोर के गाने आज भी गुनगुनाते मिल जाएंगे. ये सवाल भी खड़ी करती है कि मनोरंजन जगत कानफोड़ू गीत-संगीत से बेदम है और रचनात्मकता से कही-न-कही दूर हो गई है. किशोर कुमार को म्यूजिक डायरेक्टर एस.डी बर्मन ने ब्रेक दिया था.
गाने का पहला ब्रेक मिलने के बारे में किशोर कुमार ने ख़ुद बताया था कि जब वो मशहूर संगीतकार एसडी बर्मन से मिले तो अशोक कुमार उर्फ दादा मुनि ने उन्हें बताया था कि मेरा भाई भी थोड़ा-थोड़ा गा लेता है. संगीत के जौहरी थे किशोर दा, मतलब गीत-संगीत में मास्टरी इस लेवल की थी कि अगर संगीतकार थोड़ी खराब धुन लेकर आए तो वो उसमें इतनी जान फूंक देते थे कि वो गाना अमर हो जाता था.
किशोर दा ने बॉलीवुड के तीन हीरो को सुपर स्टार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी आवाज के जादू से देवआनंद सदाबहार स्टार कहलाए. राजेश खन्ना को हिंदी सिनेमा का पहला सुपर स्टार का तमगा मिला और अमिताभ बच्चन महानायक हो गए. वहीं किशोर दा ने एक्टिंग के क्षेत्र में अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया. उन्होंने बॉलीवुड को चलती का नाम गाड़ी, मिस्टर एक्स इन बॉम्बे, हॉफ टिकट, प्यार किए जा, दूर का राही, बढ़ती का नाम दाढ़ी आदि बेहतरीन फिल्में दीं.
पड़ोसन, किशोर कुमार की सबसे पॉपुलर फिल्म थीं. इसे बॉलीवुड के क्लासिक मूवी का दर्जा प्राप्त है. इसमें किशोर दा ने भोला यानि सुनील दत्त के मेंटर का रोल अदा किया था, जिस पर ड्रामा डायरेक्टर बनने का जुनून सवार था. ये फिल्म उनके सिंगिंग और एक्टिंग के करियर को एक नई ऊंचाई दीं.
इस फिल्म के गाने जैसे मेरे सामने वाली खिड़की और एक चतुर नार तो काफी फेमस हुआ. इस गाने की दीवानगी का आलम आप इसीसे लगा सकते है कि आज भी हर गांव से लेकर शहर तक के लोग इन गीतों के जरिए अपने प्यार का इजहार करते हैं.
किशोर कुमार जितने शानदार कलाकार थे, उतने ही बहतरीन इंसान भी. कभी भी अपने कमिटमेंट से पीछे नहीं हटे. एकबार जो वादा किया उसे ज़िंदगीभर निभाया. पहले से रोमा के साथ शादि के बंधन में बंध चुके किशोर दा को मघुबाला से पहली नज़र में इश्क़ हो गया था. ये जानते हुए भी कि मधुबाला के दिल में छेद है, उन्होंने इसके बावजूद उनसे शादी की.
वो भले ही आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनका अमर संगीत और फिल्में आज भी हमारे बीच उन्हें जिंदा रखे हैं.