आप सोच रहे होंगे कि आखिर चूहे को सोने का तमगा यानी गोल्ड मेडल कैसे मिल सकता है? छोटे से इस निरीह प्राणी जो मुश्किल से अपनी रक्षा बिल्ली से करती-फिरती है, वो क्या कोई बहादुरी वाला कारनामा भी कर सकता है. हां ये ख़बर हैरान करने वाला है पर, सच है.

अफ्रीकी नस्ल की 'स्निफर' चूहे को ब्रिटेन की चैरिटी संस्था पीडीएसए ने ‘बहादुरी और कर्तव्य के प्रति समर्पण’ के लिए गोल्ड मेडल दिया है. चुहे की इस नस्ल को 'मगावा' नाम से जाना जाता है. जिसमें सूंघने की अद्भुत क्षमता होती है. अपने सूंघने की इसी खासियत के कारण इस चूहे की खास प्रजाति ने कंबोडिया में 39 बारूदी सुरंगों एवं 28 जिंदा विस्फोटकों का पता लगाया, जिससे हजारों लोगों की ज़िंदगी बचाई जा सकी.



इस चुहे का हैरतअंगेज कारनामा इस बात की तस्दीक देता है कि प्रकृति के हर जीव-जंतुओं का संसार के सृजन यानी निर्माण में योगदान होता है. हम इंसान ही ये पहचान करने में भूल कर बैठते हैं कि कोई अदना-सा दिखने वाला जीव भी सृष्टि बचाने की ताकत रखता है. बशर्ते उसे सही तरह से प्रशिक्षित किया जाए.

मात्र 1.2 किलो के 'मागवा' प्रजाति के इस चुहे को प्रशिक्षित कर इतना काबिल बनाया जाता है कि वो सिर्फ 30 मिनट में एक टेनिस कोर्ट के बराबर एरिया को सूंघकर जांच कर सकता है. वजन कम होने की वजह से बारूदी सुरंगों के ऊपर चलते समय विस्फोट होने का खतरा भी नहीं रहता है. इसलिए इंसानो के मुकाबले ये चुहे इस तरह के काम के लिए परफेक्ट चॉइस होते है.

आप इसे तुलनात्मक रूप से ऐसे समझ सकते है जिस काम को ये चुहे महज 30 मिनट में पूरा कर देते हैं. वहीं काम एक इंसान बम डिटेक्टर की मदद से लगभग चार दिनों में कर तो पाएगा लेकिन उसमें विस्फोट का भी खतरा बना रहेगा. क्योंकि इंसान का वजन ज्यादा होता है. मागवा को इस काम के लिए चैरिटी संस्था एपीओपीओ ने प्रशिक्षित किया था. यह संस्था बेल्जियम में रजिस्टर्ड है और अफ्रीकी देश तंजानिया में काम करती है.

मगावा चुहे की ऐसी पहली प्रजाति है, जिसे इस सम्मान से नवाजा गया है. आपको बता दें कि इस अवॉर्ड से अभी तक 30 जानवरों को सम्मानित किया जा चुका है. मगावा ने अपने सात साल के सेवा अवधि में दर्जनों लैंडमाइंस का पता लगाकर इंसानी ज़िंदगी की रक्षा की है. उसके इस बेमिसाल काम के लिए हीरो रैट खिताब भी दिया जा चुका है.   


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