"एक्टर और कार्टूनिस्ट" मनोज पंडित ने लॉकडाउन में बिताए हुए अनुभवों को रिफ्लेक्शन लाइव के एडिटर, जवाहर लाल नेहरू के साथ साझा किया है. प्रस्तुत हैं उनके साथ बातचीत के अंश:
रामायण और महाभारत जैसे क्लासिक टीवी सिरियल को देखना, लॉकडाउन में लोगों को जागरूक करने के लिए कार्टून बनाना और विभिन्न सामाजिक सेवी संस्थाओं से जुड़कर लोगों को हर प्रकार से मदद पहुंचाान, यह उनके हालिया काम हैं. अपनी लॉकडाउन डायरी में बता रहे है अभिनेता एवं कार्टूनिस्ट मनोज पंडित.
कंटेंपरेरी विषयों पर कार्टून बनाना और अभिनय करने जैसे काम तो मैं सालों से कर रहा हूं. भागम भाग की इस दुनिया में खुद और अपने परिवार के लोगों के साथ सुकून के पल बिताया. इस दौरान मैंने अपने जीवन में जिन नई चीजों को सीखा है. इससे सबक लिया और उसे जीवन में उतारा वो है प्रकृति के बदलते स्वरूप को अनुभव करना, उसे कैनवास पर उकेरना, कुछ ऐसा क्रिएशन करना जिससे लोगों को एक सामाजिक संदेश मिलने के साथ-साथ उनका स्ट्रेस लेवल कम हो. ये कुछ यादगार लम्हे हैं, जिससे सबक लेने का मेरा सिलसिला ताउम्र बना रहेंगा. बल्कि लगता है, अभी तो इसकी शुरुआत ही हुई है.
अब हमें यह देखकर राहत-सी महसूस होती है कि पॉल्यूशन का लेवल कम हुआ और प्रकृति अपने खूबसूरत रूप में निखर कर सामने आई है. पक्षियों की चहचहाहट से वातावरण गूंजने लगा है. जिन नदियों की सफाई के लिए सरकारें सैकड़ों करोड़ खर्च कर रही थीं अब वो अपने आप स्वच्छ हो गई हैं. लॉकडाउन से प्रदूषण घटा है. हम अच्छी तरह से सांस ले रहे हैं.
इससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते है कि मौजूदा हालात खासकर हमारे सबसे गरीब और कमजोर तबके के लोगों के लिए दुश्वारियाों भरा हुआ है. यह देखकर मुझे बहुत तकलीफ होती है. लॉकडाउन की वजह से कई उनके रोजी-रोटी पर संकट आ गया है. लिहाजा वो अपने घरों की तरफ जैसे-तैसे जा रहे हैं. परंतु घर वापसी के दौरान भी उनकी बेबसी एवं लाचारी को साफ देखा जा सकता है. मैं अपने स्तर पर हरसंभव मदद पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं. लॉकडाउन में लोगों को जागरूक करने के लिए कार्टून बना रहा हूं.
किसान और मजदूरों का तो सचमुच बहुत बुरा हाल है. मिड्ल क्लास को भी समझ आ रहा है कि रेंट देना है, ईएमआइ भरना है. वैसे तो पहले से ही बैरोजगारी 45 साल के उच्चतम स्तर पर था. अब रोजगार के अवसर और कम हो रहे हैं. लोग एक-दूसरे की मदद के लिए आगे रहे हैं. वैसे तो लोग पहले भी एक-दूसरे की मदद कर रहे थे पर तब इस स्तर की सहायता देखने-सुनने में नहीं मलता था. परंतु अब लोगों में इंसानियत की भावना पहले से ज्यादा देखी जा सकती हैं. यह एक साकारात्मक रुझान है.