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दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में भगवान मुरुगन को प्रमुखता से पूजा जाता है. बताते चले कि तमिलनाडु में भगवान कार्तिकेय को मुरुगन नाम से भी जाना जाता है और वहां के लोग उन्हें शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक मानते हैं. इन्हें तमीज कादुवुल अर्थात तमिल के देवता कहा जाता है. 

कहा जाता है कि भगवान मुरुगन(कार्तिकेय) तमिलनाडु के रक्षक देव भी हैं. जहां-जहां तमिल निवासी रहते हैं वहां इन्हें पूजा जाता है जैसे श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर आदि. भगवान मुरुगन को कार्तिकेय, सुब्रमण्यम और स्कंद नाम से भी पुकारा जाता है.

वहीं उत्तर भारत में इन्हें कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है. अरब में यजीदी जाति के लोग भी इन्हें पूजते हैं, ये उनके प्रमुख देवता हैं. उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश उत्तर कुरु के क्षे‍त्र विशेष में ही इन्होंने स्कंद नाम से शासन किया था. इनके नाम पर ही स्कंद पुराण है. इनका जन्म भी एक रहस्य की ओर संकेत करता है. 

हिंदु मान्याताओं के मुताबिक उनके जन्म के संबंध में विरोधाभासी कथाएं मिलती हैं. पहली कथा के अनुसार जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी 'सती' कूदकर भस्म हो गईं, तब शिवजी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए. उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है. इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है.

देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है. चारों तरफ हाहाकार मच जाता है. इससे दुखी होकर सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास जाकर अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं. तब ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि इस राक्षस तारक का अंत शिव पुत्र द्धारा ही संभव है. 

तब इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं. फिर भगवान शंकर 'पार्वती' के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह होजाता है. इस प्रकार मुरुगन(कार्तिकेय) का जन्म होता है. वे आगे चलकर देवताओं का सेनापति बनते हैं. कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं. वहीं दूसरी कथा के अनुसार मुरुगन(कार्तिकेय) का जन्म 6 अप्सराओं के 6 अलग-अलग गर्भों से हुआ था और फिर वे 6 अलग-अलग शरीर एक में ही मिल गए थे.

कैसा है भगवान मुरुगन का स्वरूप

भगवान मुरुगन का स्वरूप एक छोटे से बालक का है. इनके इस बालक स्वरूप का भी एक रहस्य है. माता पार्वती ने इन्हें कभी जवान न होने का शाप दिया था. वे मोर पर बैठे हुए हैं. उनके माथे पर मोर पंख का मुकुट विराजमान है. उनके चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान रहती है. उनके एक हाथ में वर मुद्रा है तो दूसरे हाथ में तीर है.

भगवान मुरुगन को समर्पित प्रमुख मंदिर

पलानी मुरुगन मंदिर

पौराणिक कथा के अनुसार जब महर्षि नारद ने भगवान शिव और माता पार्वती को ‘ज्ञानफलम’ अर्थात ज्ञान का फल उपहार स्वरूप दिया तो भगवान शिव ने उसे अपने दोनों पुत्रों भगवान गणेश और कार्तिकेय स्वामी में से किसी एक को देने का निर्णय लिया. इसके लिए दोनों के सामने यह शर्त रखी गई कि जो भी सम्पूर्ण ब्रह्मांड की परिक्रमा पहले कर लेगा, उसे यह फल प्राप्त होगा. 

इसके बाद मुरुगन(कार्तिकेय) अपने वाहन मोर पर सवार होकर पूरी सृष्टि की परिक्रमा करने लेकिन भगवान गणेश ने

अपने माता-पिता की परिक्रमा कर ली और कहा कि उनके लिए उनके माता-पिता ही ब्रह्मांड के समान हैं. तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वह ज्ञानफल भगवान गणेश को दे दिया. जब कार्तिकेय स्वामी परिक्रमा करके लौटे तो नाराज हो गए कि उनकी परिक्रमा व्यर्थ हो गई.

इसके बाद कार्तिकेय स्वामी ने कैलाश पर्वत छोड़ दिया और पलनि के शिवगिरि पर्वत पर निवास करने लगे. यहां ब्रह्मचारी मुरुगन स्वामी बाल रूप में विराजमान हैं. कहते हैं कि कार्तिकेय साधु वेश में यहां तपस्या करने लगे. बाद में शिव-पार्वती खुद कार्तिकेय को आशीर्वाद देने पलनी आए. पर्वत की ऊंचाई 160 मीटर है. इस मंदिर का निर्माण 5वीं-6वीं शताब्दी के दौरान चेर वंश के शासक चेरामन पेरुमल ने कराया.

तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर

भगवान मुरुगन के 6 पवित्र मंदिरों में से एक है. यह मंदिर भगवान मुरुगन और उनकी दो पत्नियों, वल्ली तथा दीवानाय को समर्पित है. हिंदु धर्मशास्त्रों के अनुसार इस मंदिर का अस्तित्व वैदिक काल से है. इस मंदिर में एक विशाल नौ त्रिस्तरीय गोपुरम अथवा मुख्य प्रवेशद्वार है. सेंथिलावंदर के रूप में भगवान मुरुगन का मुख पूर्व की ओर है, हालांकि, इस मंदिर का प्रवेशद्वार दक्षिणमुखी है. 

इस मंदिर की विशेषता यह है कि केवल यही मुरुगन मंदिर समुद्र के किनारे पर स्थित है जबकि बाकी सभी मुरुगन मंदिर भारत में पहाडि़यों की चोटी और जंगलों में स्थित है. यह हिंद महासागर पर तूतीकोरिन जिले में स्थित है.

कुमुरन कुंदन

इस मंदिर की संरचना ही एक पहाड़ी पर हुई है. इसकी हर मंजिल पर बहुत सारी मूर्तियां हैं, जो अच्छी तरह से सजाई गयी हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार, काँची मठ के संत ने इस क्षेत्र का दौरा किया था और पहाड़ी को देखने के बाद उन्होंने यहां भगवान मुरुगन के लिए एक मंदिर बनाने के बारे में सोचा. संत चले गए लेकिन इस मंदिर का निर्माण धीमा ही चलता रहा और कोई भी नहीं जानता कि क्यों संत ने यहाँ मंदिर बनाने के लिए कहा.

शिव सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर

यह मंदिर श्री मुरुगनलॉन्ग और उनके वाणिज्य वल्लिनयाकी और दीवानानायक को समर्पित है. इस मंदिर की स्थापना तब की गयी जब भगवान मुर्गन ने युद्ध में दीवानानायक और वल्लिनयाकी को प्यार से जीता था. इसकी दीवारों के डिजाइन जटिल हैं और मूर्तियां प्रशंसा करने योग्य हैं.

थिरुपुरुरकानास्वामी मंदिर

यह मंदिर हिंदूओं के भगवान मुरुगन को समर्पित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार दिव्य चरित्र मुरुगन ने समुद्र, जमीन और हवा, तीन स्थानों पर राक्षसों से लड़ाई की और विजय प्राप्त की. जब एक ऋषि ने मुरुगन का दौरा किया, तो ऋषि उनसे बहुत प्रभावित हुआ. यह ऋषि पुरुरहूज था और उनके नाम से ही इस मंदिर का नाम पड़ा.

मुरुगन मंदिर ऊटी

भगवान मुरुगन को समर्पित यह मंदिर एल्का पहाड स्थित है. इस मंदिर में भगवान गणेश, भगवान शिव और माता पार्वती और भगवान कार्तिकेय और नवग्रह की मूर्ती स्थापित है. नीलगिरि पर्वत पर स्थित यह मंदिर प्रकृति की सुंदरता का मनोरम दृश्य दिखलाता है. आपको बता दें कि चारों ओर हरी-भरी वादियों से गुलजार तमिलनाडु का हिल स्टेशन ऊटी अपनी सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध है. और यदि आपको शानदार हिल स्टेशन के साथ दिव्य मंदिर देखने व भगवान मुरुगन का आशीर्वाद मिले तो हैं न सोने पर सुहागा.

स्वामीनथस्वामी मंदिर

यह मंदिर कावेरी नदी के तट पर है. इसे भगवान मुरुगन के छह पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है. इन्हें अरुपदाइदेडू कहकर बुलाया जाता है. इस मंदिर के मुख्य देवता स्वामीनाथस्वामी है. यह मंदिर 60 फीट ऊपर एक पहाड़ी पर स्थित है. इस मंदिर के तीन टावर हैं और इसकी सभी मूर्तियां ग्रेनाइट से बनी हुई हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव के पुत्र मुरुगन ने अपने पिता को प्रणव मंत्र से प्रसन्न करके स्वामीनाथस्वामी का नाम पाया.

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