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शिक्षा का मतलब सीखने-सिखाने की प्रक्रिया से है. शिक्षा ही वह बुनियाद है, जिससे व्यक्ति, समाज और देश की तरक्की सुनिश्चित होती है. यह एक ऐसा साधन है जो देश के बच्चों से लेकर युवाओं तक के भविष्य का निर्माण करता है. ऐसे में ये जरूरी हो जाता हैं कि देश की विकास को गति देने वाली शिक्षा व्यवस्था भी डायनेमिक हो, ताकि बदलते वक्त के साथ स्टूडेंट्स नए ट्रेंड से अपडेट हो सके.

देश की श‍िक्षा नीति में 34 साल बाद नये बदलाव किए गए हैं. गौरतलब है कि एनईपी को 1986 में ड्राफ्ट किया गया था और 1992 में अपडेट किया गया था. फिर यही एनईपी 2014 के चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चुनाव घोषणा पत्र का हिस्सा थी.

बुधवार 29 जुलाई को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित नई शिक्षा नीति (एनईपी) को मंजूरी मिल गई. इसका मसौदा पूर्व इसरो प्रमुख के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने तैयार किया है.

नई श‍िक्षा नीति 2020 में प्री प्राइमरी क्लासेस से लेकर पीएचडी और मंत्रालय तक बहुत कुछ बदला है. आज चर्चा इसी बात पर कि आख‍िर न्यू एजुकेशन पॉलिसी में इतने सालों बाद क्या बदला है, इससे स्टूडेंट्स की पढ़ाई पर कैसा फर्क पड़ेगा.

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एक अहम बदलाव के रूप में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय किया गया है. नई शिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा के साथ तकनीकी शिक्षा को इसके दायरे में लाया गया है. इसका मुख्य उद्देश्य है कि विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ साथ किसी लाइफ स्‍क‍िल से कनेक्ट करना. अभी तक आप आर्ट, म्यूजिक, क्राफ्ट, स्पोर्ट्स, योग आदि को सह-पाठ्यक्रम के तौर पर पढ़ते आए हैं. अब ये मुख्य पाठ्यक्रम का हिस्सा होंगे, इन्हें एक्स्ट्रा करिकुलर एक्ट‍िविटी भर नहीं कहा जाएगा.

नई शिक्षा नीति के तहत अब स्कूली शिक्षा को 5+3+3+4 फॉर्मूले के तहत पढ़ाया जाएगा. 5वीं तक के छात्रों को मातृ भाषा, स्थानीय भाषा और राष्ट्र भाषा में ही पढ़ाया जाएगा. इसका मतलब है कि अब स्कूल के पहले पांच साल में प्री-प्राइमरी स्कूल के तीन साल और कक्षा 1 और कक्षा 2 सहित फाउंडेशन स्टेज शामिल होंगे. फिर अगले तीन साल को कक्षा 3 से 5 की तैयारी के चरण में विभाजित किया जाएगा. इसके बाद में तीन साल मध्य चरण (कक्षा 6 से 8) और माध्यमिक अवस्था के चार वर्ष कक्षा 9 से 12 के होंगे.

सरकार अब न्यू नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क तैयार करेगी. इसमें ईसीई, स्कूल, टीचर्स और एडल्ट एजुकेशन को जोड़ा जाएगा. बोर्ड एग्जाम को भाग में बांटा जाएगा.

अब दो बोर्ड परीक्षाओं को तनाव को कम करने के लिए बोर्ड तीन बार भी परीक्षा करा सकता है. बोर्ड परीक्षाएं मॉड्यूलर रूप में हो सकती हैं. जिसमें रट्टा मारकर याद रखने वाले सिद्धांत को हतोत्साहित करते हुए ज्ञान और योग्यता आधारित होंगी. इसके अलावा अब बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में लाइफ स्किल्स को जोड़ा जाएगा. जैसे कि आपने अगर स्कूल में कुछ रोजगारपरक सीखा है तो इसे आपके रिपोर्ट कार्ड में जगह मिलेगी. जिससे बच्चों में लाइफ स्किल्स का भी विकास हो सकेगा. अभी तक रिपोर्ट कार्ड में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था.

इसके अलावा स्कूलों में कला, वाणिज्य, विज्ञान स्ट्रीम का कोई कठोर पालन नहीं होगा, छात्र अब जो भी पाठ्यक्रम चाहें, वो ले सकते हैं. 2040 तक सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को मल्टी सब्जेक्ट इंस्टिट्यूशन बनाना होगा जिसमें 3000 से अधिक छात्र होंगे.

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वहीं कॉलेज की डिग्री 3 और 4 साल की होगी. यानि कि ग्रेजुएशन के पहले साल पर सर्टिफिकेट, दूसरे साल पर डिप्‍लोमा, तीसरे साल में डिग्री मिलेगी. 3 साल की डिग्री उन छात्रों के लिए है जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं लेना है. वहीं हायर एजुकेशन करने वाले छात्रों को 4 साल की डिग्री करनी होगी. 4 साल की डिग्री करने वाले स्‍टूडेंट्स एक साल में MA कर सकेंगे. अब स्‍टूडेंट्स को MPhil नहीं करना होगा. बल्कि MA के छात्र अब सीधे PHD कर सकेंगे.

सरकार की ओर से बताया गया कि मौजूदा शिक्षा नीति के तहत फिजिक्स ऑनर्स के साथ केमिस्ट्री, मैथ्स लिया जा सकता है. इसके साथ फैशन डिजाइनिंग नहीं ली जा सकती थी. लेकिन नई नीति में मेजर और माइनर की व्यवस्था होगी. इसके अलावा जो छात्र अलग-अलग विषयों में रूचि रखते हैं, जैसे जो म्यूजिक में रूचि रखते हैं, लेकिन उसके लिए कोई व्यवस्था नहीं रहती है. नई शिक्षा नीति में मेजर और माइनर के माध्यम से ये व्यवस्था रहेगी.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार ने बताया कि आज की व्यवस्था में 4 साल इंजीनियरिंग पढ़ने के बाद या 6 सेमेस्टर पढ़ने के बाद अगर कोई छात्र आगे नहीं पढ़ सकता है तो उसके पास कोई उपाय नहीं है. छात्र आउट ऑफ द सिस्टम हो जाता है. नए सिस्टम में ये रहेगा कि एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा, तीन या चार साल के बाद डिग्री मिल सकेगी.

सरकार ने बताया कि मल्टीपल एंट्री थ्रू बैंक ऑफ क्रेडिट के तहत छात्र के फर्स्ट, सेकंड ईयर के क्रेडिट डिजीलॉकर के माध्यम से क्रेडिट रहेंगे. जिससे कि अगर छात्र को किसी कारण ब्रेक लेना है और एक फिक्स्ड टाइम के अंतर्गत वह वापस आता है तो उसे फर्स्ट और सेकंड ईयर रिपीट करने को नहीं कहा जाएगा. छात्र के क्रेडिट एकेडमिक क्रेडिट बैंक में मौजूद रहेंगे. ऐसे में छात्र उसका इस्तेमाल अपनी आगे की पढ़ाई के लिए करेगा.

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन एंट्रेंस एग्जाम का ऑफर दिया जाएगा. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुसार, नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (National Education Policy, NEP) को अब देश भर के विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के लिए एडिशनल चार्ज दिया जाएगा. जिसमें वह हायर एजुकेशन के लिए आम यानी कॉमन एंट्रेंस परीक्षा का आयोजन कर सकता है.

NTA पहले से ही ऑल इंडिया इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम(JEE), मेडिकल प्रवेश परीक्षा NEET, UGC NET, दिल्ली विश्वविद्यालय (DUET), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय(JNUEE) जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एडमिशन के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है.

अमेरिका की NSF (नेशनल साइंस फाउंडेशन) की तर्ज पर सरकार NRF (नेशनल रिसर्च फाउंडेशन) लाएंगी. इसमें न केवल साइंस बल्कि सोशल साइंस भी शामिल होगा. ये बड़े प्रोजेक्ट्स की फाइनेंसिंग करेगा. ये शिक्षा के साथ रिसर्च में युवाओं को आगे आने में मदद करेगा.

ऑनलाइन व डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा

ऐसी जगह जहां पारंपरिक और व्यक्तिगत शिक्षा का साधन नहीं होगा वहां, स्कूल और उच्च शिक्षा दोनों को ई-माध्यमों से मुहैया कराया जाएगा. इसके लिए नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम (एनईटीएफ) बनेगा. इसका मकसद प्राइमरी से उच्च और तकनीकी शिक्षा तक में प्रौद्योगिकी का सही इस्तेमाल करना है.

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सरकारी, निजी, डीम्‍ड सभी संस्‍थानों के लिए होंगे समान नियम

हायर एजुकेशन सेक्रटरी अमित खरे ने बताया, ' नए सुधारों में टेक्नॉलॉजी और ऑनलाइन एजुकेशन पर जोर दिया गया है. अभी हमारे यहां डीम्ड यूनविर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटीज और स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस के लिए अलग-अलग नियम हैं. नई एजुकेशन पॉलिसी के तहत सभी के लिए नियम समान होंगे.

नई शिक्षा नीति की चुनौतियां

नई शिक्षा नीति के माध्यम से सरकार द्वारा शैक्षणिक ढांचे को बेहतर बनाने का प्रयास अपने-आप में एक सराहनीय कदम है. परंतु इसके समक्ष कई चुनौतियां मौजूद हैं जिसे पार पाकर ही मुकम्मल शिक्षा में सुधारों के लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है.

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इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी

देश में स्कूलों में छात्र अध्यापक अनुपात पूरा नहीं है. यहां तक कि कॉलेज एवं यूनिवर्स‍िटी में भी टीचर्स नहीं है. एडहॉक और गेस्ट टीचर्स की बदौलत पढ़ाई करवाया जा रहा है. एक ओर नई वैकेंसी नहीं निकल रही, वहीं दूसरी ओर परमानेंट नियुक्ति नहीं होने से गेस्ट एवं एडहॉक शिक्षकों के मन में असुरक्षा का भाव बना रहता है. ऐसे में वो जितना अच्छे से अच्छा दे सकते हैं, वो मानसिक दबाव में वो नहीं दे पाते. जाहिर सी बात है कि इस माहौल में नए पॉलिसी को इम्लीमेंट करना मुश्क‍िल नजर आता है.

प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा

उच्च श‍िक्षा को ऑटोनॉमस बनाने के नाम पर कही न कही नई श‍िक्षा नीति निजीकरण को बढ़ावा देने का काम कर रही है. अब उच्च श‍िक्षा आम आदमी की पहुंच से बाहर होने वाली है. श‍िक्षा का निजीकरण होगा तो उच्च श‍िक्षा मंहगी भी हो जाएगी.

सामाजिक समावेशन को नुक़सान

इससे अनुसूचित जाति जनजाति, महिला, दलित वर्ग का श‍िक्षा से सामाजिक परिवर्तन संभव था, उससे वो दोबारा वंचित हो जाएंगे. मेरा सरकार से प्रश्न है कि क्या एक साधारण, मध्यम, निम्न मध्यम वर्ग के परिवार वाले अपने बच्चों को महंगी फीस देकर पढ़ाई करा पाएंगे.

संसाधनों का गैप इतना ज्यादा है कि कोई भी नई नीति जादू की छड़ी तो साबित नहीं हो सकती. पहले सरकार को संसाधनों के बीच की खाई को पाटना होगा. तभी कुछ नया लाने से बदलाव आ सकता है.

Image Credit: unsplash.com

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