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दुनिया भर के लोग कोविड-19 से निजात पाने के लिए बेसर्बी से इसके वैक्सीन के बनने का इंतजार कर रहे हैं. लोगों में इस बात को लेकर उत्सुकता चरम पर है कि कोविड-19 का टीका कब तक तैयार हो जाएगा. आपको बता दें कि नया वायरस सार्स-कोव-2(Sars-Cov-2) उसी कोरोना परिवार का विषाणु है जिसने साल 2002 में चीन में सार्स महामारी को जन्म दिया था. फ़िलहाल कोविड-19 का इलाज ढूंढ़ने के लिए दुनियाभर में कोशिशें चल रही हैं.

ऑस्ट्रेलिया, रूस, जर्मनी, फ्रांस,ब्रिटेन, चीन और अमेरिका में वैक्सीन की प्रक्रिया क्लीनिकल ट्रॉयल तक भी पहुंची है. दुनिया में कोरोना की वैक्‍सीन बनाने के लिए इंटरनैशनल लेवल पर चल रहे अधिकतर प्रोग्राम्‍स में भारत बतौर पार्टनर जुड़ा हुआ है. आपको बता दें कि भारत दुनिया भर में जेनेरिक दवाओं व वैक्सीन के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. पुणे में स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया दुनिया में सबसे अधिक संख्या में वैक्सीन बना सकने में सक्षम है, और यह ऑक्सफर्ड में बन रही वैक्सीन के उत्पादन में बतौर साझेदारी काम कर रही है.

ऑक्‍सफर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्‍सीन दुनिया में सबसे ऐडवास्‍ड स्‍टेज में हैं. पिछले दिन यानी कल सोमवार को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कोरोना की वैक्सीन ट्रायल के नतीजे जारी किए. रिपोर्ट के मुताबिक पहले क्लीनिकल ट्रायल में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन सुरक्षित और असरदार साबित हुई है. ये पहली वैक्सीन है जो अपने आखिरी चरण में पहुंच चुकी है.

लैंसेंट मेडिकल जरनल में प्रकाशित ट्रायल के रिजल्ट के मुताबिक, "वैक्सीन AZD1222" के नतीजे काफी बेहतर है. इसके कोई साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिले और यह एंटीबॉडी और किलर टी-सेल्स भी बनाता है.

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से किए गए ट्वीट में भी कहा गया है कि "AZD1222" नाम की इस वैक्सीन को लगाने से अच्छी इम्यून प्रतिक्रिया मिली है. वैक्सीन ट्रायल में लगी टीम और ऑक्सफोर्ड के निगरानी समूह को सुरक्षा की कसौटी पर यह वैक्सीन में खड़ी उतरी है. और इससे सॉलिड रिस्पांस प्राप्त हुआ है. वहीं दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के हेड अदर पूनावाला ने कहा कि हम वैक्सीन के रिजल्ट से खुश हैं. इसके बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं.

आपको बता दें कि 23 अप्रैल को इसका इंसानों पर ट्रायल शुरू किया गया था. गौरतलब है कि वैक्सीन के विकास की प्रक्रिया कई चरणों से होकर गुजरती है. सबसे पहला चरण लैबोरेटरी में होता है. फिर दूसरे चरण में जानवरों पर परीक्षण किया जाता है. जब प्रयोग के दौरान इसके पुख्ता सबूत मिलते है कि वैक्सीन का इस्तेमाल सुरक्षित है और रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई है, तब उसके बाद फाइनली तीसरे चरण में इंसानों पर इसका परीक्षण होता है.

इंसानों पर भी इसके परीक्षण की प्रक्रिया तीन चरणों से होकर गुजरती है. पहले चरण में सीमित लोगों स्वस्थ लोगों पर ट्रॉयल किया जाता हैं. परीक्षण के दूसरे चरण में पहले के मुकाबले ज्यादा लोगों पर ट्रॉयल किया जाता हैं. इसे कंट्रोल ग्रुप्स कहते हैं. इसका मतलब ऐसे समूह से होता है जो परीक्षण में भाग लेने वाले बाक़ी लोगों से अलग रखे जाते हैं. इसमें ये परखा जाता है कि वैक्सीन कितना सुरक्षित है. प्रयोग के तीसरे चरण में ये पता लगाया जाता है कि वैक्सीन की कितनी खुराक असरदार होगी.

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