शास्त्रीय संगीत की दुनिया ने आज एक अनमोल रत्न खो दिया है. भारतीय संस्कृति के महान विभूति 'पंडित जसराज' के निधन से सारी दुनिया शोक में डूब गई हैं. सोमवार को अमेरिका में कार्डिएक अरेस्ट की वजह से उनका निधन हो गया. वे 90 साल के थे. पंडित जसराज भारतीय शास्त्रीय संगीत के ऐसे सितारे थे, जिन्होंने धरती से लेकर अंतरिक्ष तक में अपनी शोहरत का परचम लहराया.

संगीत जगत में उनके योगदान को सलाम करते हुए नासा ने 13 साल पहले यानी 2006 में एक क्षुद्र गृह का नाम पंडित जसराज के नाम पर रखा था. यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय कलाकार थे. पंडित जसराज को यह सम्मान देते समय नासा ने अपने ऑफिशियल स्टेटमेंट में कहा था- "पंडित जसराज छुद्र ग्रह हमारे सौरमण्डल में गुरु और मंगल के बीच रहते हुए सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं." खास बात ये थी कि इस क्षुद्र ग्रह का नंबर उनकी जन्मतिथि से ठीक उलटा है. उनकी जन्मतिथि 28/01/1930 है, जबकि 2006 में नासा और इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन के वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए क्षुद्र ग्रह का नंबर 300128 है.

उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर शोक व्यक्त करते हुए कहा, "पंडित जसराज के निधन से भारतीय सांस्कृतिक जगत में गहरा शून्य उत्पन्न हो गया है."

वहीं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने ट्वीट में लिखते हैं...

मेवाती घराने के सबसे चमकते सितारे संगीत के सूर्य जसराज की आवाज़ साढ़े तीन सप्तकों में एक ख़ास स्थान रखती है. मुर्कियां, गमक, मींड और छूट की तानें उनकी गायकी की ख़ासियत हैं. उनके सुरों का जादू कृष्ण की मुरली की तरह है. जो सुनता है, वह अपनी सुध-बुध खोकर, बस संगीत रस में डूब जाता हैं. संगीत के रसिक उन्हें रसराज कहते हैं. उनके मुंह से राग भैरव में ‘मेरो अल्लाह मेहरबान’ सुनते हुए लगता है कि ईश्वर और अल्लाह के बीच धर्म की दूरियां मिट गई हो और संपूर्ण ब्रह्मांड परमतत्व परमात्मा में समा गया हो.

28 जनवरी 1930 हरियाणा के हिसार ज़िले में पंडित जसराज एक ऐसे परिवार में पैदा हुए, जिनके पुरखों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को न केवल जिंदा रखा बल्कि उसे इतना समृद्ध बनाया कि उसकी गूंज सारी दुनिया में गूंजी. खयाल शैली की गायिकी पंडित जसराज की विशेषता रही. उनके पिता पंडित मोतीराम मेवाती घराने के संगीतज्ञ थे. जब वे महज चार साल के थे, तभी उनके सर से पिता का साया उठ गया था. उसके बाद उनके पालन-पोषण का दायित्व बड़े भाई पंडित मणिराम ने संभाला. उनकी शादी जाने माने फिल्म डायरेक्टर वी. शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम से हुई थी.

जीवन के शुरुआती दिनों में वे बतौर तबला वादक काम करके जीवन-यापन करते थे. कुमार गंधर्व की एक डांट ने उन्हें गायक बना दिया. मसला कुछ ऐसा था कि वे 1945 में लाहौर में कुमार गंधर्व के साथ एक कार्यक्रम में तबले पर संगत कर रहे थे. तब उनकी उम्र मात्र 14 साल थी. कार्यक्रम के अगले दिन कुमार गंधर्व ने उन्हें डांटते हुए कहा, "जसराज तुम मरा हुआ चमड़ा पीटते हो, तुम्हें रागदारी के बारे में कुछ नहीं पता." उस दिन के बाद से उन्होंने प्रण ले लिया कि वे तबले को कभी हाथ नहीं लगाएंगे. अब वे उसकी जगह गाना गाएंगे. 

फिर जो हुआ वो इतिहास में दर्ज है. विशेष रूप से मधुराष्टकम् बहुत प्रिय था. उन्होंने इस स्तुति को अपने स्वर से घर-घर तक पहुंचा दिया. वे अपने हर एक कार्यक्रम में मधुराष्टकम् जरूर गाते थे. इस स्तुति के शब्द हैं -अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरं. आपको बता दें कि मधुराष्टकम् की रचना श्री वल्लभाचार्य जी ने की थीं. यह ग्रंथ कृष्ण भक्ति काव्य के अंतर्गत आती हैं. इसमें भगवान कृष्ण की बहुत ही मधुर स्तुति की गई हैं.

सुरों के सरताज, सुरीले संत, रागों के रसिया, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे सम्मानों से अलंकृत संगीत मार्तण्ड पंडित जसराज के सुरीली आवाज़ के दीवानी युवाओं से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक में समान रूप से देखी जा सकती हैं. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व फलक पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

जब उन्होंने अपनी जादुई आवाज़ को हिंदी फ़िल्म में आजमाया तो उनकी आवाज़ युवाओं के दिलों की धड़कन बन गईं. फिल्म '1920' में उनके द्वारा गाया गया ये गाना ‘वादा तुमसे है वादा,जन्मों का प्यार का’ की दीवानगी का आलम आप इसीसे लगा सकते हैं कि आज भी हर गांव से लेकर शहर तक के लोग इस गाने के जरिए प्यार में जीने-मरने की कस्में खाते हैं.

उन्होंने 82 साल की उम्र में 8 जनवरी 2012 को अंटार्कटिका के तट पर गाना गाकर एक मिसाल कायम कीं. उन्होंने 'सी स्पिरिट' नामक क्रूज पर बेहद शानदार गायन प्रोग्राम पेश किया था. इसके साथ ही वे सातों महाद्वीप में कार्यक्रम पेश करने वाले पहले भारतीय बन गए. भले ही वे भौतिक रूप में हमारे बीच नहीं हैं लेकिन स्मृतियों में सदैव अमर रहेंगे. 

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