enter image description here राजस्थान में नेताओं के फोन टैपिंग का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. सोशल मीडिया पर एक ऑडियो क्लिप वायरल हुई थी. इस टेप ने पिछले दिनों से जारी सियासी बवंडर को और बढ़ा दिया है. गौरतलब है कि प्रदेश के सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट सियासी वर्चस्व की लड़ाई में आमने-सामने हैं. इन दोनों की जंग में अब ऑडियो टेप के जरिए भाजपा की भी एंट्री हो गई है.

जहां एक ओर कांग्रेस ने भाजपा पर विधायकों की खरीद-फरोख्‍त का आरोप लगाया है. वहीं दूसरी ओर भाजपा ने इन टेप को फर्जी बताया है और मामले की सीबीआई जांच की मांग की है. बहरहाल, सियासत में ये घटना नई नहीं है जब फोन टैपिंग को लेकर राजनीतिक खींचातानी हो रही है. चाहे किसी की भी सरकार रही हो, वो अकसर अपने राजनीतिक विरोधियों पर नजर रखने के लिए फोन टैपिंग का इस्तेमाल करती रहती है. इससे पहले भी कई मर्तवा ऐसे मामलों ने सियासी भूचाल मचाई हैं.

किदवई- पटेल फोन टैपिंग मामला

फोन टैपिंग की शुरूआत तो पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जमाने में ही हो गई थी. जब नेहरू सरकार में संचार मंत्री रहे, रफी अहमद किदवई ने तब के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल पर आरोप लगाया था कि पटेल उनका फोन टैप करवा रहे हैं. जिसे पटेल ने तूल नहीं दिया और नेहरू के बीच-बचाव करने से मामला रफा दफा हो गया.

रामकृष्ण हेगड़े फोन टैपिंग मामला

1988 में राजनीतिक फोन टैंपिग के नाटक ने बड़ा बवाल मचाया. इससे इतना बड़ा सियासी बवंडर मचा कि कर्नाटक के सीएम रामकृष्ण हेगड़े तक को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.

जनता पार्टी के नेता रामकृष्ण हेगड़े कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. वे लगातार दो बार 1983 और 1985 में चुनाव जीत चुके थे. उन्हें गैर कांग्रेसी खेमे से पीएम पद के सबसे मजबूत उम्मीदवार के रूप में देख जा रहा था. तभी कर्नाटक की सियासी ग्राउंड पर एंट्री मारी फोन टैपिंग के मामला ने. तब केंद्र में सरकार कांग्रेस की थी और पीएम थे राजीव गांधी. राजीव बोफोर्स रक्षा सौदे में विपक्ष के आरोपों से घिरे हुए थे. कांग्रेस के लिए यह मामला एक मौके की तरह था.

मामले को लेकर हाय-तौबा मचा देख केंद्र सरकार ने एजेंसी को जांच करने का आदेश दिया. जांच में पता चला कि कर्नाटक पुलिस के डीआईजी ने लगभग 50 नेताओं और बिजनेसमैन के फोन टेप करने के ऑर्डर दिए थे इस लिस्‍ट में हेगड़े के विरोधी भी शामिल थे.

हेगड़े अपना बचाव करते उससे पहले ही सुब्रहमण्यम स्वामी ने एक लेटर प्रेस में जारी कर दिया. इस पत्र में एक पूर्व इंटेलिजेंस अधिकारी ने टेलिकॉम विभाग से कर्नाटक के नेताओं, व्यापारियों और पत्रकारों के फोन टेप करने की बात कही थी इतना नहीं मीडिया ने तत्‍कालीन केन्‍द्रीय मंत्री अजीत सिंह की कॉल ट्रांस्क्रिप्ट भी प्रकाशित कर दिया था. मामला सदन तक पहुंचा और हेगड़े चारों ओर से घिर गए. मामला इतना बिगड़ गया कि हेंगड़े को 10 अगस्त 1988 इस्‍तीफा देना पड़ा.

अमर सिंह फोन टैपिंग मामला

साल 2005-06 में फिर से फोन टैपिंग का जिन्न बाहर आया. इस बार अमर सिंह ने फोन टैपिंग को लेकर केंद्र सरकार और सोनिया गांधी पर गंभीर आरोप लगाए. अमर के इस मामले ने भी खूब सुर्खियां बटोरी थी. अमर सिंह का ये केस सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था. पूरे चार साल तक केस चला और आखिरकार नाटकीय तरीके से अमर सिंह ने अपना आरोप वापस ले लिया. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने अमर सिंह को कोर्ट का वक्त जाया करने के लिए फटकार भी लगाई थी. पर मामला बिना कोई राजनीतिक उठा पटक के शांत हो गया.

नीरा राडिया फोन टेप कांड

यह टेप कांड काफी चर्चा में रहा था. तब आयकर विभाग ने 2008 से 2009 के बीच नीरा राडिया के साथ कुछ वरिष्ठ पत्रकारों, राजनेताओं व कॉरपोरेट घरानों के अधिकारियों की बातचीत को रिकॉर्ड किया था. बातचीत से बड़े पैमाने पर पॉलिटिकल और कॉरपोरेट के बीच की नापाक गठजोड़ की पोल खुली, जिसमें बड़े लेवल पर भ्रष्टाचार और पैसों के लेन-देन की बात सामने आई थी.

इसमें नीरा राडिया पर पॉलिटिकल लॉबिंग का भी आरोप लगा था कि वह किस नेता को कौन सा मंत्री पद मिले इसके लिए लॉबिंग करती थी. और कंपनियों को ठेका दिलाने के नाम पर वसूली की भी बात कही गई थी. राडिया की इस टैपिंग मामले में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा का नाम भी सामने आया था. बाद में इससे उपजे सियासी हालात की वजह से उन्हें टू जी स्पेक्ट्रम मामले में इस्तीफा देना पड़ा था.

अंतागढ़ टेप कांड

छत्तीसगढ़ की राजनीति में अंतागढ़ टेप कांड ने खूब सियासी सुर्खिया बटोरी. इस फोन टैपिंग की जड़े 2014 के लोकसभा चुनाव से जुड़ी हुई है. भाजपा ने अंतागढ़ के विधायक विक्रम उसेंडी को कांकेर से लोकसभा चुनाव का टिकट दिया. वे चुनाव में जीत गए, इसके बाद अंतागढ़ की सीट खाली हो गई.

संवैधानिक नियमों के मुताबिक खाली हुई सीट पर 6 महीने के भीतर चुनाव होती है. इसलिए उपचुनाव कराए गए. कांग्रेस ने इस सीट से मंतूराम पवार को चुनावी मैदान में उतारा, तो वहीं भाजपा ने भोजराम नाग को. इस चुनाव में नाटकीय मोड़ तब आया जब नाम वापसी के आखिरी दिन कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार चुनावी मैदान से भाग खड़े हुए. यानी उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली. इससे भाजपा के प्रत्याशी को एक तरह से वॉक ओवर मिल गया और यह सीट भाजपा के खाते में चली गई.

मामला जितना आसान दिख रहा था उतना था नहीं. कुछ दिनों बाद इस पूरे मामले को लेकर एक टेप वायरल हुआ. इसमें मंतूराम पवार को नाम वापस लेने के लिए 7 करोड़ के लेनदेन की बात सामने आई. टेप में पूर्व सीएम अजीत जोगी, उनके बेटे अमित जोगी, तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के दामाद डॉ. पुनीत गुप्ता की आवाज होने का दावा किया गया था.

इसको लेकर कांग्रेस ने शिकायत दर्ज कराई, पर जिसकी सत्ता उसकी मर्जी. ये जो आए दिन हम सुनते ही रहते है कि सत्ता का इस्तेमाल नेता अपने सियासी फायदे के लिए ज्यादा करते है. हुआ भी ऐसा ही चार साल तक इस मामले को लेकर कोई सुनवाई नहीं हुई. वक्त बदला, सियासी जमीन बदली. 2018 में कांग्रेस विधानसभा की चुनाव जीत गई. अब सत्ता कांग्रेस की थी. फिर सरकार बनने के बाद टेप केस को पुर्नजीवित किया गया. बकायदा इसके लिए एसआईटी का गठन किया गया. एसआईटी ने सभी आरोपियों से वॉइस सैंपल दर्ज कराने की बात कही, लेकिन इन लोगों ने सैंपल देने से इंकार कर दिया. फिलहाल मामला कोर्ट में है.

कर्नाटक ऑडियो कांड

साल 2019 में फोन टैपिंग ने फिर से सियासी बखेड़ा खड़ा कर दिया. जब 7 फरवरी को तब के सीएम कुमारस्वामी ने 2 ऑडियो टेप पब्लिक कर दी. इसमें कथित तौर पर येदियुरप्पा जेडीएस विधायकों को तोड़ने वाली बात कर रहे थे.

कांग्रेस ने एक ऑडियो जारी कर भाजपा पर खरीद फरोख्त का आरोप लगाते हुआ कहा था कि भाजपा कर्नाटक में कालाधन का इस्तेमाल कर सरकार को गिराने की साजिश रच रही है. कांग्रेस की तरफ से कहा गया कि येदियुरप्पा कांग्रेस-जेडीएस के विधायकों से बात कर रहे हैं. विधायकों को करोड़ों का लालच देकर सरकार गिराना चाह रहे हैं. पुलिस ने तब येदियुरप्पा सहित तीन लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था. इसके कुछ दिनों बाद कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. इससे कांग्रेस-जेडीएस की गंठबंधन वाली सरकार अल्पमत में आ गई. और प्रदेश में येदियुरप्पा की सरकार बनी.

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