पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में मिराती गांव में कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहां 11 दिसंबर, 1935 को जन्मे प्रणब मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. प्रणब दा स्वतंत्रता सेनानी परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने ब्रिटिश शासन की खिलाफत के लिए 10 वर्षो से ज्यादा जेल की सजा भी काटी थी. उनके पिता 1920 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय रहे और भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलाने के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई में तन मन और धन से समर्पित थे. बालक प्रणब ने स्वतंत्रता संघर्ष को नजदीक से देखा और अनुभव किया था.                

कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास एवं राजनीति विज्ञान में डबल एम.ए की पढ़ाई करने के बाद कानून की डिग्री भी हासिल की. प्रणव पहले कॉलेज में क्लर्क फिर प्राध्यापक और बाद में वकील एवं पत्रकार के रूप में भी काम किया. इंदिरा गांधी की मदद से राजनीति में प्रवेश करने वाले प्रणब मुखर्जी कांग्रेस का सबसे बड़ा और भरोसेमंद चेहरा भी बने. उनका संसदीय सफर तकरीबन पांच दशक पुराना है, जो 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में शुरू हुआ था. वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में फिर से चुने गये. 1973 में वे औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उप मंत्री के रूप में मंत्रिमण्डल में शामिल हुए. प्रणब दा 1969 से पांच बार राज्यसभा के सांसद चुने गए, फिर 2004 में उन्होंने चुनावी राजनीति में कदम रखा और लोकसभा सांसद भी चुने गए. 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने. तो वहीं पीएम पीवी नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मंत्री के रूप में भी काम किया.

साल 2012 में प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाया गया, वो 2017 तक इस पद पर रहे. इस दौरान शुरुआती साल में मनमोहन सिंह और अंतिम वर्षों में नरेंद्र मोदी के साथ उन्होंने काम किया. नरेंद्र मोदी और प्रणब मुखर्जी की जोड़ी हमेशा चर्चा में रही. पीएम मोदी के मुताबिक उन्हें मुखर्जी से पिता जैसा स्नेह और डांट मिली, जिससे उनके काम करने के तरीके में परिष्कार आया. प्रणब दा ने 7 जून 2018 को नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में जो भाषण दिया वो भारत की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करती है. उनके इस भाषण में देश की आत्मा के उदात्त रूप का दर्शन होता है. उन्होंने राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देश भक्ति को लेकर जो कुछ कहा, उससे ये स्पष्ट हो गया कि मंच भले ही अलग हो, उनकी सोच जस की तस बनी रही, उसमें कोई फ़र्क़ नहीं आई.

प्रणब दादा ने अपने भाषण में भारत की असली राष्ट्रीयता पर बल दिया, ''भारत की राष्ट्रीयता एक भाषा और एक धर्म में नहीं है. हम वसुधैव कुटुंबकम् में भरोसा करने वाले लोग हैं. भारत के लोग 122 से ज़्यादा भाषा और 1600 से ज़्यादा बोलियां बोलते हैं. यहां सात बड़े धर्म के अनुयायी हैं और सभी एक व्यवस्था, एक झंडा और एक भारतीय पहचान के तले रहते हैं.''

दादा ने कहा, ''हम सहमत हो सकते हैं, असहमत हो सकते हैं, लेकिन हम वैचारिक विविधता को दबा नहीं सकते. 50 सालों से ज़्यादा के सार्वजनिक जीवन बिताने के बाद मैं कह रहा हूं कि बहुलतावाद, सहिष्णुता, मिलीजुली संस्कृति, बहुभाषिकता ही हमारे देश की आत्मा है.''

पांच दशकों से अधिक के अपने लंबे सियासी करियर में, प्रणव दा ने लगभग सब कुछ हासिल कर लिया. साल 2012 से 2017 तक राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी को किसी एक सांचे में डालना अनुचित होगा. अगर वो एक राजनयिक थे तो वो एक अर्थशास्त्री के रूप में भी कमाल दिखाया. न्यूयॉर्क से प्रकाशित पत्रिका, यूरोमनी के एक सर्वे के मुताबिक, साल 1984 में दुनिया के फाइव बेस्ट फाइनेंस मिनिस्टर में से एक नाम प्रणव मुखर्जी का भी था. उनके नेतृत्व में ही भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण की 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर की अन्तिम किस्त नहीं लेने का गौरव हासिल किया. प्रणव दा रक्षा मंत्री भी रहे और विदेश एवं वित्त मंत्री भी. वे भारतीय बैंकों की समितियों से लेकर वर्ल्ड बैंक के बोर्ड के सदस्य भी रहे. उनके नाम कई सरकारी समितियों की अध्यक्षता से लेकर लोकसभा की अध्यक्षीय जिम्मेदारी शामिल हैं.

प्रणब दा के जीवन में केवल एक कमी प्रधानमंत्री पद की रह गई, जिसके वे सच्चे हक़दार थे. सही मायने में राजीव गांधी से भी ज्यादा क्योंकि राजीव को कोई सियासी अनुभव नहीं था. पीएम तो उन्हें इंदिरा गांधी के मरने के बाद यानी 1984 में ही बन जाना था, पर ये हो न सका. फिर 2004 में भी वे सबसे मजबूत दावेदार थे. परंतु नसीब ने यहां भी साथ नहीं दिया और फिर से जमीनी राजनीति का कोई अनुभव नहीं रखने वाले मनमोहन सिंह को कांग्रेस की ओर से पीएम बनाया गया. अपने साथ इतना कुछ हो जाने के बाद भी पार्टी के सच्चे एवं निष्ठावान कार्यकर्ता की तरह संकट मोचक के रूप में कांग्रेस के लिए काम करते रहे.

प्रणव दा को 1997 में सर्वश्रेष्ठ सांसद के अवार्ड से सम्मानित किया गया. उन्हें सन् 2008 के दौरान सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से नवाजा गया. प्रणव मुखर्जी को 26 जनवरी 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया. आधुनिक भारत में ऐसे कम ही नेता होंगे जो पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के क़द को छू सकेंगे.

एक शानदार राजनीतिक सफर और देश सेवा में खुद को समर्पित करने वाले भारत माता के निष्ठावान सपूत 'प्रणब दा' ने 31 अगस्त को दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली. पीएम मोदी ने उनके निधन पर शोक जताते हुए ट्वीट किया, जिसमें वे लिखते हैं, "भारत रत्न श्री प्रणब मुखर्जी के निधन पर भारत शोकाकुल है. हमारे राष्ट्र के विकास के पथ पर उन्होंने एक अमिट छाप छोड़ी है. एक विद्वान, ऊंचे कद के राजनेता जिन्हें सभी समुदायों और राजनीतिक वर्गों में सराहा गया."

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 का ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्हें दिल्ली में पहले दिन से पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का मार्गदर्शन, समर्थन और आशीर्वाद मिलता रहा, और वो उनके साथ हुई बातचीत को हमेशा याद रखेंगे.

प्रणव दा भौतिक रूप से हमारे बीच भले ही नहीं रहे, परंतु राष्ट्र निर्माण के ध्वज वाहक के रूप में हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे. 

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