06 जून 1946 को वैशाली जिले के शाहपुर में जन्मे डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने बिहार विश्वविद्यालय से गणित में पीएचडी की उपाधि हासिल की. उन्हें ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रबंधन में महारथ हासिल था. यूपीए-1 में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के तौर मनरेगा को गांव-गांव पहुंचाने का श्रेय उन्हीं को है. मनरेगा जैसी योजना वही सोच सकता था जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जमीनी रूप से देखा हो. देश का वंचित, शोसित और मज़लूम तबका आपको कभी नहीं भूलेंगे. मनरेगा दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार योजना बनी. इस योजना ने गांवों के रूपरेखा ही बदल दिया.

मनरेगा को सरकार की नाकामियों का स्मारक कहने वाले लोग कभी भी गरीबों कि नजर में वो सम्मान नहीं पा सकेंगे जो रघुवंश बाबू को मिला. आपको बता दें कि देश में बेरोज़गारों को साल में 100 दिन रोज़गार देने वाले इस स्कीम को ऐतिहासिक माना जाता है. 2 फरवरी, 2006 को देश के 200 पिछड़े जिलों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना लागू की गई. 2008 तक यह भारत के सभी जिलों में लागू की जा चुकी थी. इससे मजदूरों का पलायन शहरों की ओर कम हुआ. उन्हें गांव में ही काम मिल जाया करता जिससे वे ज्यादा पैसे बचा कर अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में सक्षम हुए. यहां तक यूपीए-2 के दूबारा सत्ता में आने की वजह मनरेगा ही थी.

जून में वे कोरोना से संक्रमित हुए थे. हालांकि कोरोना से वो ठीक हो गए थे लेकिन सिंतबर की शुरुआत में उन्हें कई दिक़्क़तें शुरू हुईं. पिछले एक हफ़्ते से वो दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थे. एम्स में इलाज के दौरान रघुवंश बाबू को 11 बजे के करीब सांस लेने में कठिनाई और अन्य जटिलताओं के कारण निधन हो गया. रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन पर लालू यादव ने ट्वीट कर कहा है, ''प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया? मैनें परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है. लेकिन आप इतनी दूर चले गए. नि:शब्द हूँ. दुःखी हूँ. बहुत याद आएँगे.''


वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करके रघुवंश सिंह से जुड़ी कई चीज़ों को साझा किया. जयराम ने ट्वीट में लिखा- ''मैं रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन से बहुत दुखी हूं. वो बिहार के गणितज्ञ नेता थे. यूपीए एक में 2004 से 09 तक वो एक शानदार मंत्री रहे. ग्रामीण विकास मंत्री रहते हुए उन्होंने जो प्रतिष्ठा अर्जित की वो बहुत ऊंची थी. जब मैंने इस मंत्रालय को संभाला तो कई मामलों में उनकी सलाह लेता था.''


पीएम नरेंद्र मोदी ने इन शब्दों में रघुवंश बाबू को श्रद्धांजलि अर्पित की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को बिहार में पेट्रोलियम सेक्टर की तीन परियोजनाओं के उद्धाटन के मौके पर अपने भाषण की शुरुआत में रघुवंश प्रसाद सिंह को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा, "रघुवर बाबू के जाने से बिहार और देश की राजनीति से शून्य पैदा हुआ. ज़मीन से जुड़ा व्यक्तित्व, ग़रीबी को समझने वाला व्यक्ति, पूरा जीवन बिहार के संघर्ष में बिताया. जिस विचार धारा में वो पले बढ़े, जीवन भर उसको जीने का उन्होंने प्रयास किया. मैं जब भारतीय जनता पार्टी के संगठन के कार्यकर्ता के रूप में कार्य करता था उस काल से उनसे मेरा निकट परिचय रहा. अनेक टीवी डिबेट में काफी वाद विवाद, संघर्ष करते रहते थे हमलोग. बाद में वो यूपीए के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए. मैं गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में लगातार उनके साथ लगातार संपर्क में रहता था विकास के कामों को लेकर."

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रघुवंश बाबू के नीधन पर शोक जताते हुए ट्वीट में लिखा:

आख़िरी दिनों में रघुवंश बाबू अपनी ही पार्टी राजद से ख़फ़ा थे. ख़ासकर लालू प्रसाद यादव के जेल जाने बाद, उनका कई मुद्दों पर तेजस्वी यादव से टकराव भी रहा. वे 32 सालों तक लालू के साथ खड़े रहे, लालू यादव के हर उतार-चढ़ाव का साझीदार रहे. अपने निधन से दो दिन पहले ही वे आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था. माना जाता है कि पार्टी और तेजस्वी यादव के काम करने के तरीकों से नाराज़ होकर उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया था.

रघुवंश बाबू ने दिल्ली में एम्स से ही 10 सितंबर को राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखकर पार्टी से इस्तीफा देने की घोषण की थी. उन्होंने अपने पत्र में लिखा था- जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीठ पीछे खड़ा रहा लेकिन अब नहीं. पार्टी नेता और आम जनों ने बड़ा स्नेह दिया, मुझे क्षमा करें. बता दें कि रामा सिंह को राजद में लाए जाने की चर्चा के बाद से ही डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह नाराज थे.

वे पांच बार लोकसभा सदस्य और तीन बार केंद्रीय मंत्री रहे. उन्होंने 1969 से 1974 के बीच करीब 5 सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में गणित के प्रोफेसर के तौर कार्यरत रहे. पर डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने नौकरी की और इस बीच कई आंदोलनों में जेल भी गए. इसी दौरान वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्‍व में हुए सम्पूर्ण क्रांति आंदोलनों में भाग लिये थे. 1977 से 1990 तक वे बिहार से राज्‍यसभा के सदस्‍य भी रहे. वर्ष 1977 से 1979 तक वे बिहार के ऊर्जा मंत्री रहे. वर्ष 1985 से 1990 के दौरान वे लोक लेखा समिति के अध्‍यक्ष रहे. 

लोकसभा के सदस्‍य के रूप में उनका पहला कार्यकाल वर्ष 1996 से प्रारंभ हुआ. वे 1996 के लोकसभा चुनाव में निर्वाचित हुए. लोकसभा में दूसरी बार वे 1998 में निर्वाचित हुए, 1999 में तीसरी बार लोकसभा के सदस्य बने. तो वहीं 2004 में चौथी बार लोकसभा सदस्‍य के रूप में चुने जाने के बाद वे यूपीए के मनमोहन सिंह सरकार में 23 मई 2004 से 2009 तक वे केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रहे. इसी दौरान उन्होंने ऐतिहासिक मनरेगा योजना की न केवल रूपरेखा तैयार की अपितु धरातल पर क्रियान्वित भी किया. इसके बाद वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में उन्‍होंने पांचवीं बार जीत दर्ज की

रघुवंश बाबू 2014 एवं 2019 का चुनाव हारे भी, लेकिन अपने क्षेत्र वैशाली के लोगों का हमेशा ध्यान रखा. मरते दम तक उन्हें इसकी चिंता रही और उन्होंने अस्पताल से नीतीश कुमार को एक चिट्ठी लिखी जिसमें वैशाली से जुड़े मुद्दों का ज़िक्र किया. समाजवाद के पुरोधा, देसी, खांटी और जनता के प्रति समर्पित रहने वाले सच्चे जनप्रतिनिधि थे रघुवंश प्रसाद सिंह. राजनीति की कालकोठरी में रहकर भी जो बेदाग रहे, आप सदैव देश की स्मृतियों में जिंदा रहेंगे. ग्राम विकास के लिए किया कार्य सदैव देश याद रखेगा.

Discus