रक्षाबंधन नाम में ही इस पर्व का अर्थ स्पष्ट है- रक्षा का बंधन. इस दिन बहनें भाईयों की कलाई पर राखी बांधती है और भाई बहन की रक्षा के प्रति अपनी वचनबद्ध दोहराता है. यह त्यौहार भाई-बहन के प्रेम और कर्तव्य के सम्बन्ध को समर्पित है. राखी हमेशा दाहिने हाथ की कलाई पर बांधी जाती है. यह हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो सावन का आखिरी दिन होता है.
यह एक महज त्योहार नहीं है बल्कि भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं की गौरवशाली अतित को याद करने का दिन है. इस त्योहार का प्रचलन सदियों पुराना है. पौराणिक कथा के अनुसार इस त्योहार की परंपरा उन बहनों ने रखी जो सगी बहनें नहीं थीं. आप ये जानकर दंग रह जाएंगे कि रक्षाबंधन की शुरुआत मां लक्ष्मी के द्वारा राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधने से हुई. पर इस वाकये के पीछे बहुत रोचक कहानी जुड़ी हुई है.
बात उस समय कि है जब राजा बलि 100 यज्ञ पूरा करके देवराज इंद्र से स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया. इससे देवराज इंद्र व्याकुल हो उठे! इंद्र भागे-भागे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और बोले अनर्थ हो गया भगवान! बलि हमारे सिंहासन पर कब्जा को तैयार है और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं. बस अब तो केवल आपका ही आसरा है!
तब भगवान विष्णु वामन अवतार लेते हैं और इंद्र की रक्षा करते हैं. वामन अवतार लेकर वे राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे. बलि उस अदना सा इंसान से भला कैसे घबड़ाता? वह तो योगेश्वर विष्णु के माया से अनजान था. जब वामन रूप धारी विष्णु ने बलि से तीन पग भूमि की याचना की तो वह तुरंत तैयार हो गया. लेकिन उसके बाद जो हुआ वो अचंभा करने वाला था! वामन ने एक पग में पूरा आकाश और दूसरे पग में पूरी धरती नाप ली. अब बलि के पास देने को कुछ भी नहीं था, लेकिन अपने वचन को पूरा करने के लिए बलि ने वामन के सामने ख़ुद अपना सर रख दिया. तब वामन ने बलि के सर पर पांव रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया और अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट होकर बलि को दर्शन दिया.
भगवान विष्णु बलि की अद्भूत दानवीरता एवं वचनबद्धता से अत्यंत प्रभावित हुए और वर मांगने को कहा. राजा बलि ने तीनों लोकों के स्वामि को रात-दिन अपने सामने रहने यानी पहरेदारी लगाने का वचन ले लिया. अब विष्णु ख़ुद अपने वचन में बंध चुके थे और पाताल लोक में बलि के लिए चौबीसों घंटे पहरा देने को विवश थे.
काफी दिन हो गए विष्णु, लक्ष्मी जी के पास नहीं जा सके. लक्ष्मी जी अपने पति का इंतजार कर रही थीं और बैचेन थी कि आखिरकार इतने दिन हो गए, वो रह कहां गए? तब नारद जी ने लक्ष्मी माता को सारी बता बताई. तब माता लक्ष्मी ने एक महिला का रूप लिया और बलि के पास पहुंच गईं. वो बलि के पास जाकर रोने लगीं.
बलि ने जब रोने का कारण पूछा तो महिला बनी लक्ष्मी मां ने कहा,"उनका कोई भाई नहीं है." उसका कोई रखवाला नहीं, आखिर वो रोये नहीं तो क्या करें? इस पर बलि ने उनको अपना बहन बनाने का प्रस्ताव दिया. फिर मां लक्ष्मी ने बलि के दाहिने हाथ की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधी और बदले में उन्होंने बलि से भगवान विष्णु को मांग लिया.
इस प्रकार भगवान विष्णु अपने लोक वैकुण्ठ जा पाएं. पौराणिक मान्याताओं के अनुसार उस दिन श्रावण माह की पूर्णिमा का दिन था. तभी से बहन-भाई के बीच अटूट प्यार को दर्शाने के लिए यह त्योहार मनाया जाता है.