भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या देश के सबसे ख़ूबसूरत शहरों में से एक है. यह सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है और इसका गौरवशाली इतिहास रहा है. यह महज एक देश की भूमि का टुकड़ा नहीं है, बल्कि प्रतिक है भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं का, आदर्श राज्य का, जिसे रामराज्य कहा जाता है, शौर्य, सेवा, समर्पण एवं मर्यादा का.
यूं तो धर्म के नाम पर झगड़ा व सियासय करना बेकार है. लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि भारत जैसे शांतिप्रिय देश में धार्मिक झगड़े शुरू कैसे हुए? इतिहास गवाह रहा है कि हिंदूओं ने कभी दूसरे मजहब या देश पर आक्रमण नहीं किया. वैदिक काल से ही वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा रहा है. हिंदू समुदाय ने इस भावना को अपने दिलों में आत्मसात करके सहिष्णु और सबको पनाह देने वाले देश के रूप में विख्यात रहा है.
"अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्,
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।
उदारचरितानांतु वसुधैव कुटुम्बकम्।।"
इसका अर्थ होता है- सनातनी मत के मुताबिक, यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की नज़रिया छोटे चित्त वाले लोग करते हैं. उदार हृदय वाले लोगों की तो पूरी धरती ही परिवार है.
फिर यहां धर्म के नाम पर झगड़े कैसे शुरू हुए? इसकी शुरूआत होती है कट्टरवादी मुस्लिम आक्रमणकारियों से, मुस्लिम शासक मुहम्मद बिन कासिम से शुरू हुआ ये सफर मुगल काल तक जारी रहा. सबसे पहले मुहम्मद बिन कासिम ने 711ई० में पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण किया, मंदिर तोड़े और उसमें रखे सोने-जवाहरात को लूट कर ले गए.
ऐसी ही धार्मिक झगड़ा शुरू हुआ बाबर के समय में, आज से लगभग पांच सौ साल पहले 1528 में जब अयोध्या के रामकोट मुहल्ले में एक टीले पर हमलावर मुग़ल बादशाह बाबर के आदेश पर उसके गवर्नर मीर बाक़ी ने मस्जिद बनवाई. इस मस्जिद को लेकर स्थानीय हिंदुओं और मुसलमानों में कई बार संघर्ष हुए. इतिहासकारों के मुताबिक 1855 में नवाबी शासन के दौरान मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद पर जमा होकर कुछ सौ मीटर दूर अयोध्या के सबसे प्रतिष्ठित हनुमानगढ़ी मंदिर पर क़ब्ज़े के लिए धावा बोला.
उनका दावा था कि यह मंदिर एक मस्जिद तोड़कर बनायी गई थी. इस तनातनी में संतों ने हमलावरों को हनुमान गढ़ी से खदेड़ दिया. 1857 में पहले स्वाधीनता संघर्ष के बाद नवाबी शासन समाप्त होने पर ब्रिटिश क़ानून, शासन और न्याय व्यवस्था लागू हुई. कहते है कि इसी दरम्यान मस्जिद के बाहरी हिस्से पर चबूतरा बना और भजन-पूजा शुरू हुआ, जिसको लेकर वहां झगड़े का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा. 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई.
असली विवाद शुरू हुआ 23 दिसंबर 1949 को, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं. इस पूरे विवाद ने सबसे तीखा मोड़ 1980 के दशक में लिया जब वीएचपी की धर्मसंसद में राम मंदिर बनाने का प्रण लिया गया. इसके बाद नवंबर 1989 में राजीव गांधी सरकार ने हिंदू संगठनों को विवादित स्थल के पास शिलान्यास की इजाजत दे दी.
साल 1990 में जब लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर स्थापित करने के लिए रथ यात्रा शुरू की, तब काफी हो-हल्ला मचा. देश में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक तनाव हुआ. यह रथयात्रा करीब सवा महीने तक चली और बिहार के समस्तीपुर ज़िले में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के द्वारा आडवाणी को गिरफ्तार करने के साथ रोक दिया गया. फिर उसके बाद साल 1992 में मस्जिद के ढ़ांचे को तोड़ दिया गया.
इस विध्वंस के बाद देश में बड़े पैमाने पर दंगे भी हुए जिनमें हज़ारों लोग मारे गए. कोर्ट में लंबी लड़ाई के बाद पिछले साल 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया. फैसले के मुताबिक 2.77 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को मिली और 5 एकड़ जमीन मस्जिद के लिए अलग से मुहैया कराने का आदेश दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने मंदिर निर्माण और प्रबंधन के लिए 15 सदस्यीय ट्रस्ट का गठन किया. इसी ट्रस्ट के देखरेख में राम मंदिर निर्माण कार्य होना है. महंत नृत्य गोपाल दास को इस ट्रस्ट की अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई. फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार 5 अगस्त, 2020 को विधिवत भूमि पूजन के बाद मंदिर निर्माण के लिए पहली ईंट रखीं.