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देशभर के स्टूडेंट्स यूजीसी के नए गाइडलाइन के विरोध में हैं. वे सोशल मीडिया पर अपनी नाराज़गी जता रहे हैं. आपको बता दें कि यूजीसी ने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर की परीक्षा रद्द न करने का फैसला किया है. यूजीसी के इस फैसले की जानकारी केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉक्टर रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने 6 जुलाई को दे दी थी. नए दिशानिर्देश के मुताबिक, फाइनल सेमेस्टर की परीक्षाएं जो जुलाई के महीने में होनी थीं, अब सितंबर, 2020 के अंत तक आयोजित की जाएंगी.

जब से यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाएं कराने का फैसला सुनाया है, तभी से स्टूडेंट इस फैसले का खूब विरोध कर रहे हैं. स्टूडेंट्स का कहना है कि जब आईआईटी जैसे संस्थानों ने एग्जाम नहीं लेने का फैसला किया है. जब वहां के विद्यार्थियों को पिछले प्रदर्शन के आधार पर प्रोन्नति दी जा रही है, तो हमें साथ दोहरा रवैया क्यों?

वहीं विपक्षी पार्टियां भी अब स्टूडेंट्स के सपोर्ट में उतर आई हैं. कांग्रेस की ओर से सोशल मीडिया पर ‘स्पीक अप फॉर स्टूडेंट्स’ कैंपेंन चलाया जा रहा है. यह कैंपेंन ट्वीटर पर टॉप पर ट्रेंड कर रहा है. इस मुद्दे पर राहुल गांधी ने कहा, "कोविड-19 महामारी के दौरान परीक्षाएं संचालित किया जाना बिल्कुल अनुचित है. यूजीसी को छात्रों और शिक्षाविदों की आवाज सुननी चाहिए. परीक्षाएं रद्द की जानी चाहिए और छात्रों को पिछले प्रदर्शन के आधार पर प्रोन्नत किया जाना चाहिए."

वहीं देश के कुछ राज्य सरकारों ने भी इस फैसले को लेकर अपनी आपत्ती जताई हैं. यूजीसी के नए फैसले से महाराष्ट्र की सरकार खफा दिख रही है. आदित्य ठाकरे ने इस मामले को लेकर ट्वीट किया है. ट्वीट में उन्होंने लिखा "यूजीसी को इस छोटे से मुद्दे को अपने ईगो पर नहीं लेना चाहिए और लाखों छात्रों, टीचर्स और नॉन टीचिंग स्टाफ की जान को खतरे में नहीं डालना चाहिए. क्या एचआरडी मंत्रालय और यूजीसी के प्रमुख स्टूडेंट्स की जान की गारंटी लेंगी, क्या इनको देश में बढ़ रहे कोरोना वायरस की खबर नहीं?

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