ब्रह्मांड में कोई घटना अकारण नहीं होती, उसके पीछे भविष्य में होने वाले घटनाओं की नींव छिपी होती हैं. आप सोचेंगे कि आखिरकार रावण की सोने की लंका जलकर राख हो गई, उसके पीछे भला क्या कारण हो सकते हैं. तो सबसे पहली बात तो ये हैं कि सोने की लंका लंकापति रावण की थी ही नहीं. इसे भगवान महादेव ने माता पार्वती के कहने पर बनवाया था. इसके पीछे की जो कहानी है, वो कुछ इस तरह है-:

एक बार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी, भोलेनाथ और माता पार्वती से मिलने कैलाश पहुंचे. कैलाश की सर्दी माता लक्ष्मी से सहन नहीं हो पा रही थीं. वे ठंड से कांपने लगीं. क्योंकि मां लक्ष्मी इस तरह के वातावरण में रहने की अभ्यस्त नहीं थीं. ठण्ड से परेशान लक्ष्मी जी बातों-बातों में पार्वती जी से कह बैठी कि वो एक राजकुमारी होकर भी कैसे ऐसे माहौल में रह लेती है. इस बात से उनके दिल को बहुत चोट पहुंची. खैर, बात आई-गई हो गई. जाते जाते भगवान विष्णु ने शिव और पार्वती जी को अपने घर बैकुण्ठ आने का न्योता दे दिया.



समय बीतता रहा और एक दिन वो घड़ी भी आई जब माता पार्वती और भोले शंकर बैकुंठ पहुंचे. भगवान विष्णु ने भगवान शिव और पार्वती का यथोचित आदार-सत्कार किया. फिर माता पार्वती लक्ष्मी जी के साथ उनका महल देखने लगीं. महल की भव्यता ने मां पार्वती का मन मोह लिया. अब उनके मन में भी इक्छा जगी कि उनका भी एक आलिशान महल होना चाहिए. जब वे दोनों कैलाश वापस आये तब माता पार्वती भोलेनाथ से एक ऐसी अनोखी महल के लिए हठ करने लगीं. पार्वती चाहती थीं कि उनका महल ऐसा बने जो तीनों लोक में और कही न हो.

योगेश्वर भोलेनाथ यह बात भलिभांति जानते थे की उनके जीवन में घर का सुख नही है इसलिए उन्होंने माता को समझाने का बहुत प्रयास किया किन्तु वो अपनी जिद्द पर अड़ी रहीं. आखिरकार भोलेनाथ को उनके आगे झुकना पड़ा. भोलेनाथ ने उनकी ख्वाहिश के लिए भगवान विश्वकर्मा को एक महल का निर्माण करने का आदेश दिया. शिव जी के आदेश का पालन करते हुए, विश्वकर्मा ने सोने का एक ऐसा महल तैयार किया जिसके समान तीनों लोक में ऐसा कोई दूसरा महल नहीं था. अब बारी गृहप्रवेश की आई, इसके लिए उस समय के सबसे बड़े पंडित विश्रवा को बुलाया गया.

महापंडित विश्रवा ने महल की गृहप्रवेश करवाई और दक्षिणा में वहीं महल मांग लिया. चूंकि ब्राह्मण देव की दक्षिणा की बात नकारी नहीं जा सकती, मन मसोस कर पार्वती ने फ़ौरन ही वह महल विश्रवा को दक्षिणा में दे दिया.अपने भवन के सपने को टूटता देख पार्वती जी बहुत क्रोधित हुई और विश्रवा को श्राप दिया कि एक दिन यह सोने का महल जल कर नष्ट हो जाएगा और इसका कारण शिव के अंश ही होंगे. 

समय बीता, विश्रवा के यहां रावण का जन्म हुआ और शिव के अंश से भगवान हनुमान का. जब रावण ने सीता का अपहरण कर लिया और उनके पता लगाने के जिम्मेदारी हनुमान को मिलीं, तब इसी दौरान हनुमान जी ने अपनी पूंछ से लंका को जलाकर भस्म कर दिया. और इस तरह माता पार्वती के श्राप के ही कारण सोने की लंका आग में जल कर भस्म हुई थी. 


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