कोविड-19 के प्रकोप को देखते हुए पहले देश में लॉकडाउन लगाई गई. जब लॉकडाउन लगी तो जि़ंदगी मानो थम सी गई. देश के सभी क्षेत्रों को भारी नुकसान उठानी पड़ी. आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक और शैक्षणिक परिसर संपूर्ण रूप से बंद हो गई. इस दौरान कोरोना वायरस की प्रकृति को समझा गया. देश में कोरोना के मरीज जरूर ज्यादा बढ़े लेकिन इलाज एवं दवाओं की उपलब्धता से रिकवरी रेट बेहतर होने से लोगों के मन में वायरस को लेकर खौफ कम होते गए. 

फिर अनलॉक के जरिए देश को एक बार फिर पटरी पर लाने की कवायद की जा रही है और धीरे-धीरे सभी सुविधाएं बहाल हो रही हैं. इसी कड़ी में अनलॉक 4.0 में केंद्र सरकार ने करीब 6 महीने बाद 9वीं-12वीं तक के बच्चों के लिए स्कूल खोलने की इजाजत दी है. केंद्र सरकार से अनुमति मिलने के बाद राज्य सरकार को स्कूल खोलने पर फैसला लेना था. जिसके बाद मध्यप्रदेश, राजस्थान, जम्मू कश्मीर और हरियाणा ही स्कूल खोलने को राजी हुए हैं. वहीं दिल्ली, गुजरात, केरल, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने स्कूल शुरू करने में असमर्थता जताई.

स्कूल आने वाले स्टूडेंट्स को पैरेंट्स का परमिशन लेटर लाना अनिवार्य किया गया है. इसे आप ऐसे समझे कि वहीं बच्चे स्कूल आएंगे जिनके पैरेंट्स उन्हें इजाजत देंगे. स्कूल प्रशासन की ओर से किसी भी बच्चे को जबरदस्ती स्कूल नहीं बुलाया जा सकता है.

जिन राज्यों में सोमवार 21 सितंबर से स्कूल खुले वहां नजारा बदला-बदला सा नजरा आया. केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार स्कूलों में मुख्य द्वार पर ही सभी स्टूडेंट्स का टेंपरेचर चेक किया गया. जांच में यदि शरीर का तापमान सामान्य पाये जाने पर ही स्टूडेंट्स को स्कूल में प्रवेश दिए गए. इसके साथ ही उन्हें सैनिटाइज भी किया गया. 

विद्यार्थियों को मास्क पहनकर आना अनिवार्य किया गया है और पढ़ाने के लिए केवल उन्हीं अध्यापकों को बुलाया गया है, जिन्होंने हाल ही में कोविड टेस्ट करवाया है और उनकी रिपोर्ट निगेटिव है. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए एक क्लास में पांच-पांच स्टूडेंट्स ही बैठाये गए.

वहीं स्कूल खुलने से सबसे ज्यादा अभिभावकों को चिंता हो रही है. आज पहले दिन ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को खुद ही स्कूल पहुंचाते देखे गए. कोरोना के कारण पैरेंट्स अपने बच्चों को बसों से स्कूल भेजने में डर रहे हैं. इसलिए स्टूडेंट्स की उपस्थिति काफी कम रहीं.



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