पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय फ्रेंडशिप डे हर साल 30 जुलाई को मनाया जाता है. यूं तो दोस्ती-यारी जाहिर करने की कोई खास दिन तय नहीं हो सकता, पर एक दूसरे के प्रति भरोसा एवं सम्मान दर्शाने के लिए इस खास दिन के महत्व को पहचानना जरूर चाहिए.
27 अप्रैल 2011 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा ने 30 जुलाई को आधिकारिक तौर पर इस दिन को इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे घोषित किया था. भारत में दोस्ती जिसे मित्र, बंधु, यार एवं सखा शब्दों से भी संबोधित किया जाता है. भारत में मित्रता की एक लंबी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि रही है. मित्रता की जड़े हमारी संस्कृति में सदियों से बड़ी गहरी रंग- रूप में रची-बसी हैं. आइए जानते है अपने देश के उन दोस्तों की कहानी जिनकी दोस्ती की मिसाले दी जाती है.
कृष्ण और सुदामा
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कृष्ण और सुदामा की दोस्ती इस बात कि मिसाल है कि मित्रता अमीरी-गरीबी, जात-पात, रंग-रूप, कुल-खानदान देखकर नहीं की जाती. इन दोनों की दोस्ती की शुरुआत गुरु संदीपनी के आश्रम में हुई. यहां ये दोनों साथ पढ़ते थे. जहां एक ओर सुदामा एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण परिवार से थे. वहीं दूसरी ओर कृष्ण द्वारका के राजा थे. सुदामा कृष्ण से मिलने जब द्वारका पहुंचे तब द्वारपालों ने उन्हें रोका और पूछा, " क्या काम है, किससे मिलना है?"
सुदामा ने कहा, "कृष्ण से जाकर बोल दो उसका मित्र सुदामा आया है."
द्वारपालों ने ये बात भगवान कृष्ण जैसे ही बताया, तब सुदामा नाम सुनते ही भगवान कृष्ण नंगे पांव अपने दोस्त को लेने के लिए दौड़ पड़े. वहां मौजूद लोग हैरत में पड़ गए कि एक राजा और एक गरीब साधू में कैसी दोस्ती हो सकती है.
आज कृष्ण-सुदामा की अटूट मित्रता को बतौर दोस्ती के प्रतिक के तौर पर याद की जाती हैं. लोग उनके दोस्ती के इस कदर दीवाने है कि अपने मोबाइल की कॉलरट्यून में 'अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो...' इस्तेमाल करते हैं.
कर्ण और दुर्योधन
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इनकी गहरी दोस्ती की कई कहानियां महाभारत में प्रचलित हैं. दुर्योधन हमेशा कर्ण के शांत और शांतिपूर्ण स्वाभाव से प्रभावित थे और दूसरी ओर, कर्ण दुर्योधन की उदार और देखभाल प्रकृति से प्रभावित था. इस पारस्परिक भरोसे एवं सम्मान से उनकी दोस्ती मजबूत हुई. दुर्योधन ने हमेशा अपने मित्र कर्ण को वीरता का हक व मान-सम्मान दिलाने के लिए पहल की. वहीं कर्णा ने अन्त तक अपने मित्र के साथ रहा और उसके लिए लड़ते हुए ही वीरगती को प्राप्त हुआ.
नेहरू और पटेल की दोस्ती
जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल दोनों स्वाधिनता संग्राम में साथ-साथ लड़े और देश की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन दोनों के बीच में हुए पत्राचार गहरी दोस्ती की तस्दीक देती है. 1 अगस्त 1947 को नेहरू ने सरदार पटेल को एक चिट्ठी लिखी.
नेहरू सरदार पटेल को पत्र में लिखते हैं, "कुछ हद तक औपचारिकताएं निभाना जरूरी होने से मैं आपको मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने का निमंत्रण देने के लिए लिख रहा हूं. इस पत्र का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि आप तो मंत्रिमंडल के सुदृढ़ स्तंभ हैं."
सरदार पटेल ने 3 अगस्त 1947 को नेहरू को जवाबी चिट्ठी लिखी. पटेल ने अपनी चिट्ठी में लिखा, ''आपके 1 अगस्त के पत्र के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. एक-दूसरे के प्रति हमारा जो अनुराग और प्रेम रहा है वो अटूट है. हम दोनों के बीच 30 वर्ष की जो अखंड मित्रता है, उसे देखते हुए औपचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता."
पटेल ने अपनी चिट्ठी में आगे लिखा, ''आशा है कि मेरी सेवाएं बाकी के जीवन के लिए आपके साथ रहेंगी. आपको उस ध्येय की सिद्धि के लिए मेरी सच्ची एवं संपूर्ण वफादारी और निष्ठा प्राप्त होगी, जिसके लिए आपके जैसा त्याग और बलिदान देश के लिए अप्रतिम व अनन्य है. हमारा सम्मिलन और संयोजन अटूट और अखंड है और उसी में हमारी शक्ति निहित है. आपने अपने पत्र में मेरे लिए जो भावनाएं व्यक्त की हैं, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूं.''
शाहरुख खान और करण जौहर
करण के सबसे अच्छे दोस्त शाहरुख खान हैं. करण ने न सिर्फ अपनी पहली फिल्म में शाहरुख को लिया था बल्कि एक्टर के तौर पर पहली फिल्म भी उन्होंने शाहरुख के साथ ही की थी. दोनों एक-दूसरे के मुश्किल वक्त में हमेशा साथ खड़े रहते हैं. करण ने अपने 21 साल के करियर में 6 फिल्में डायरेक्ट की हैं, जिसमें से चार में शाहरुख लीड रोल में और एक में गेस्ट अपीयरेंस में थे. करण ने 1998 में 'कुछ कुछ होता है' से बतौर डायरेक्टर अपना डेब्यू किया था, जिसमें शाहरुख लीड रोल में थे. इसके बाद 'कभी खुशी कभी गम' (2001), 'कभी अलविदा ना कहना' (2006), 'माय नेम इज़ खान' (2009) में शाहरुख का लीड रोल और 'ए दिल है मुश्किल' (2016) में उनका गेस्ट अपीयरेंस था.करण का रिश्ता सिर्फ शाहरुख से ही नहीं बल्कि उनकी पत्नी गौरी खान से भी बहुत अच्छा है. वो शाहरुख के तीनों बच्चों- आर्यन, सुहाना और अबराम को अपने बच्चों की तरह मानते हैं. यहां तक कि उन्होंने अपनी वसीयत में आर्यन और सुहाना का नाम भी रखा है.
अजय देवगन और रोहित शेट्टी
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अजय और रोहित की दोस्ती को बॉलीवुड में सबसे गहरी दोस्ती माना जाता है. इनका रिश्ता करीब 25 साल पुराना है. दोनों ने साथ में गोलमाल, गोलमाल रिटर्न, गोलमाल 3, बोल बच्चन और सिंघम जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में साथ काम किया है. इनकी दोस्ती में आज भी कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है.
नरेंद्र मोदी और अमित शाह
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पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की दोस्ती भी खास हैं. इन दोनों के बीच ये दोस्ती ही है जो वे 32 सालों से जुड़े हुए हैं. अमित शाह और मोदी 1987 से एक दूसरे के साथ हैं. लेकिन इतने सालों के साथ के बावजूद भी दोनों के रिश्तों में कभी कड़वाहट नहीं आई. मोदी शाह से उम्र में भी बड़े हैं और पद में भी. लेकिन दोस्त होने के नाते उनमें ये फर्क नजर नहीं आती. अमित शाह ने मोदी पर भरोसा बनाए रखा और मोदी अमित शाह के भरोसे के साथ आगे बढ़ते गए.
2014 में मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और 2019 में भी दोबारा कार्यकाल को दोहराया. उतना ही भरोसा प्रधानमंत्री मोदी भी अमित शाह पर करते हैं. इतने सालों के साथ ने मोदी को एक दोस्त के रूप में अमित शाह मिले जिनपर वो आंख मूंदकर भरोसा कर सकते हैं. 2014 में सत्ता में आने से पहले की तैयारी में जितना भरोसा मोदी को खुदपर था उतना ही अमित शाह पर भी था.
हमारे देश में दोस्ती की ये अनूठी मिसाल है. कहा जाता है जिसको सच्चा मित्र मिल गया, उसे जीवन का खजाना मिल गया. पर इस सच्चे खजाने की कूंजी भरोसे एवं सम्मान पर टिकी होती है, जो किसी को दिखाई नहीं देती सिर्फ महसूस की जा सकती हैं.