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उर्वशी यादव ने ज़िंदगी के अग्निपथ पर तपकर सफलता की सुनहरी दास्तान रची, जिसकी साहस और हौसले की चमक से आने वाली पढ़ियों को प्रेरणा मिलती रहेगी. उर्वशी के जीवन में किसी चीज़ की कमी नहीं थी. अच्छी शिक्षा प्राप्त की, बढ़िया घर में शादी हुई, घर-गाड़ी और शानो-शौकत के तमाम सुविधाएं उपलब्ध थीं.

उर्वशी की शादी गुरुग्राम के एक अमीर परिवार में हुई थी. हसबैंड अमित यादव एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में अच्छी नौकरी करते थे. घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी. उर्वशी अपने परिवार के साथ गुरुग्राम में एक आलिशान जिंदगी जी रही थीं. परंतु जिंदगी ने एक दिन ऐसी करवट बदली की सब कुछ बिखर गया.

उर्वशी की हंसती-मुस्कुराती लाइफ में एक बडा हादसा घटित हुआ. 2016 में उर्वशी के पति अमित का कार एक्सीडेंट हो गया. यह एक्सीडेंट इतना खतरनाक था कि अमित को कई सर्जरी से गुज़रना पड़ा. डॉक्टरों ने अमित की सर्जरी तो कर दी थी, पर उनकी चोट काफी गहरी थी. अपनी इस चोट के कारण वो काम नहीं कर सकते थे. इस कारण उन्हें नौकरी भी छोड़नी पड़ी. अमित के नौकरी छोड़ने के बाद से ही परिवार की आर्थिक तंगी शुरू हो गई.

चूंकि परिवार में अमित की नौकरी के सिवा कोई और कमाई का जरिया भी नहीं था. बैंक में जमा सारा पैसा धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा था. अमित की दवाइयां, बच्चों की स्कूल फीस और घर के राशन में ही इतना पैसा लग गया कि आगे के दिन गुज़ारना मुश्किल हो रहा था.

सुख के नम्र छावों में रहने वाली उर्वशी को कभी एहसास भी नहीं हुआ था कि इस आलिशान जिंदगी में ऐसे बुरे वक्त भी देखने पड़ेगे. उसके परिवार को पाई-पाई का मोहताज होना पड़ेगा. अचानक हुई पैसों की इस तंगी ने पूरे परिवार का जीवन बदलकर रख दिया था. अमित के ठीक होने में अभी बहुत वक़्त था.

ऐसे में अपने परिवार और बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए उर्वशी ने काम करने की सोची. चूंकि उर्वशी ने अच्छी-खासी पढ़ाई की थी और अंग्रेजी की बढ़िया जानकारी रखती थी, उसे नौकरी जल्दी ही मिल गई. वह एक स्कूल में बतौर प्राइमरी टीचर पढ़ाने का काम करने लगी. पर वहां से उतनी कमाई नहीं हो पाती जिससे उसके परिवार का जीवन व्यवस्थित रूप से चल सके.

अंग्रेजी के बाद खाना बनाने की कला ही एक ऐसी चीज़ थी, जिसे उर्वशी बहुत अच्छी तरह से जानती थीं. हालांकि, उस वक्त उसके पास उतना पैसा नहीं था था, जिससे वह एक छोटी सी दुकान भी खोल सकें. इसके चलते उन्होंने आखिरी में फैसला किया कि दुकान ना सही पर वो एक छोटा सा ठेला जरूर लगा सकती हैं.

अपने इस विचार के बारे में जब उर्वशी ने परिवार में बताया तो सबने उनका विरोध किया. उनसे कहा गया कि वो पढ़ी-लिखी हैं और अच्छे घर से हैं, उनका यूं ठेला लगाना परिवार की प्रतिष्ठा के लिए ठीक नहीं है. हर कोई उनके खिलाफ था, पर उर्वशी जानती थीं कि परिवार की प्रतिष्ठा से उनके बच्चों का पेट नहीं भरेगा. इसलिए उन्होंने किसी की नहीं सुनी और छोले-कुलचे का ठेला खोलने का फैसला किया.

छोले-कुलचे की रेडी पर छोले–कुलचे बेचकर अपने जीवन का निर्वाह करने की शुरुआत करने का निर्णय आसान नहीं था. उर्वशी के लिए ये बहुत ही बड़ा कदम था. क्योंकि वो किसी लोक-लाज की परवाह किये बगैर अपने जीवन की एक नयी शुरुआत करने जा रही थी. कड़ी धूप में, बिना किसी की मदद के उन्हें ये काम करना था.

उर्वशी जानती थीं कि परेशानियां कई आएंगी, पर अपने परिवार के लिए उन्हें हर परेशानी का सामना करना था. कहते है "अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हे उससे मिलाने में लग जाती है" फ़िल्म 'ओम शांति ओम' में शाहरुख खान का ये फेमस डायलॉग यहां बिल्कुल फिट बैठा. कुछ ही महीनों में उर्वशी का यह ठेला पूरे इलाके में मशहूर हो गया. लोग ना सिर्फ़ उर्वशी के स्वादिष्ट छोले-कुलचे से, बल्कि उनके लहज़े से भी प्रभावित थे.

शुरुआती दिनों में ही उन्होंने दिन में 2800 से 3000 रूपए कमाने शुरू कर दिए थे. उर्वशी की जीतोड़ मेहनत ने सफलता की नई दास्तान लिख दी. अकेले अपने दम पर उर्वशी ने घर का खर्चा उठा लिया था. उनका यह ठेला बाद में एक सफल बिजनेस के रूप मे बदल गया. वह प्रति माह इतना पैसा कमा रही थीं कि अपने परिवार की सारी ज़िम्मेदारियां उठा सके.

इस तरह उर्वशी के जज्बे ने समाज को एक आइना दिखा दिया कि लाइफ में कितनी भी परेशानियां क्यों न हो, मन को कमजोर न होने दे. अटल इरादे के साथ कर्म क्षेत्र में उतरिए सफलता जरूर हासिल होगी.

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