कोई भी देश विकसित तभी बन सकता है जब उसके हरेक बच्चें को सही एवं क्वालिटी एजुकेशन मिले. गौरतलब है कि देश की एक बड़ी आबादी स्कूल जाने के बाद भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित है. ये हालात और गंभीर तब हो गए जब कोरोना वायरस महामारी की वजह से देश के भविष्य यानी स्कूल जाने वाले बच्चें अपने-अपने घरों में बंद होकर रह गए. ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा ही एकमात्र विकल्प बनी. लेकिन इसके भी कई एंगल है जिस पर विचार करना बेहद जरूरी है. सबसे बड़ी बात गांव एवं शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर में जमीन-आसमान जैसी असमानता है.

शहरी बच्चों को तो वर्चुअल माध्यम से एजुकेशन उपलब्ध हो भी गया. लेकिन गांव-देहात के वे बच्चें जो गरीब एवं वंचित तबके से आते हैं, उन्हें ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पाई. इस विषम परिस्थिति में शिक्षा की मिसाल जलाई 'विद्याकंक्षा' नाम की एनजीओ ने. ये संस्था न केवल बेसहारा बच्चों के लिए सहारा बनी बल्कि लॉकडाउन में ऐसे बच्चों को फ्री में ऑनलाइन शिक्षा से लेकर करियर काउंसलिंग एवं जरूरी संसाधन भी उपलब्ध करवाये.


'विद्याकंक्षा' एनजीओ की स्थापना गुरुग्राम में कोरोना महामारी के दौरान ही हुई. देश में शिक्षा के द्वारा बदलाव की इस मुहिम की फाउंडर है एश्वर्या मिश्रा. कहते हैं न जब इरादे नेक होते है तो मिशन को आगे बढ़ाने वाले लोग खुद ब खुद मिल जाते हैं और कारवां बन जाता है. एश्वर्या के इस मुहिम से कुछ समय बाद प्राची परमिता, ख़्वाहिश कुमार अंजुम, हेमंत चौधरी और गौरव कुमार जुड़ गए. अब ये सब इस मुहिम के द्वारा समाज में शिक्षा का प्रकाश फैला रहे हैं. 

इस संस्थान ने कोविड-19 की वजह से उपजे गंभीर हालात में गांव-देहात के गरीब और वंचित तबके से आने वाले बच्चों को न सिर्फ वर्चुअल माध्यम से शिक्षा मुहैया कराया, अपितु पैरेंट्स को बिना भेदभाव के गर्ल चाइल्ड को भी बेहतर एजुकेशन देने के लिए प्रेरित भी किया. इस उद्देश्य की प्राप्ति में 150 से अधिक वालन्टिर्स का अहम योगदान है. ये वालन्टिर्स देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों जैसे आईआईटी, आईआईम और एनआईटी से पढ़े हैं. निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे इन वालन्टिर्स की बदौलत अभी तक बिहार, गुजरात, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड के 462 से ज्यादा बच्चों तक मदद पहुंचाई जा चुकी हैं. अगले छ महीने में संस्था पूरे भारत में अपना विस्तार कर गरीब व वंचित बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने के लिए कृत संकल्पित है.

ये बात किसी से छिपी नहीं हैं कि भारत के विकास का रास्ता गांवों के विकास के रास्ते से होकर गुज़रना हैं. यानी सशक्त और विकसित भारत का सपना बिना गांवों के विकास एवं सशक्त किए संभव नहीं होने वाला. ये सवाल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समय जितना प्रासंगिक था, उतना ही वर्तमान संदर्भ में भी है. इसमें भी गरीबों एवं वंचीत वर्गों को मज़बूत करके ही हम विकसित देश की तरफ कदम बढ़ा सकते हैं. ऐसे में शिक्षा ही वो बुनियाद है जिसके आधार पर बेहतर भारत की तस्वीर बनाई जा सकती है.

मैं अपने प्रिय पाठकों से रिक्वेस्ट करता हूं कि जिस-जिस तक ये ख़बर पहुंच रहा है वो आगे इसे शेयर करें और शिक्षा की मशाल को प्रज्जवलित करने वाली संस्था 'विद्याकंक्षा' को जिस प्रकार से भी सहयोग कर सकते है, करने की कोशिश करें. संस्था से संबंधित लिंक नीचे शेयर कर रहा हूं. कृपया उसे क्लिक करें और अपना सहयोग देकर बेहतर भारत के सपने को साकार करने में सहभागी बने.

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