Increasing power of Taliban in Afghanistan, Image Source: cfr

अफगानिस्तान की धरती से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ ही वहां के हालात तेजी से बदले हैं. तालिबान बेहद तेजी से अफगानिस्तान के इलाकों पर कब्जा करता जा रहा है. ज़मीन पर हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. तालिबान का दावा है कि उसने वहां 85 फीसद हिस्सों पर कब्जा कर लिया है, जबकि राष्ट्रपति अशरफ गनी का कहना है कि अफगान फौज और पुलिस तालिबान आतंकवादियों को पीछे खदेड़ती जा रही है. वहीं तालिबान की मजबूत होती पकड़ को देखते हुए भारत ने अपने कंधार के दूतावास को बंद कर दिया है.

बता दें कि वर्ष 2001 में 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने तालिबान के विरुद्ध युद्ध में अपने सैनिक अफगानिस्तान भेजे थे. अमेरिकी सेना ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया और हामिद करज़ई को अफगानिस्तान का अंतरिम प्रशासनिक प्रमुख बनाया. तबसे वहां अमेरिकी सैनिक तैनात रहें. लेकिन बीते साल फरवरी 2020 को कतर के दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर सहमति बनी. इस समझौते के तहत अमेरिका 14 महीने के अंदर अफगानिस्तान से अपने सैन्य बलों को वापस बुला लेगा.

तालिबान का प्रभाव बढ़ने से भारतीय हितों को होने वाला खतरा

बहरहाल, भारत के लिए चिंता का कारण ये है कि अफगानिस्तान पर तालिबान के पकड़ मजबूत होने से वहां की मौजूदा सरकार संकट में आ जाएगी. इससे पश्चिम एशिया में अपनी पैठ बनाने में लगी भारत सरकार को बड़ा नुकसान होगा. इसके साथ-साथ भारत की कई विकास परियोजनाएं भी प्रभावित होंगी. उन परियोजनाओं को लगाने में भारत ने अरबों डालर खर्च किए हैं. भारत अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं का बड़ा भागीदार रहा है. भारत ने अफगानिस्तान में सड़कें, बिजली की लाइनें और सलमा बांध भी बनाया है.

भारत ने अफगानिस्तान में करीब तीन अरब डॉलर का निवेश किया हुआ है, जिससे वहां संसद भवन, सड़कों और बाँध आदि का निर्माण हुआ है. अतः इन सभी परियोजनाओं पर गंभीर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में भारत की मदद से तकरीबन 500 छोटी-बड़ी परियोजनाओं पर काम जारी है.

ईरान के चाबहार पोर्ट के विकास में भारत ने भारी निवेश किया हुआ है, ताकि अफगानिस्तान, मध्य एशिया, रूस और यूरोप के देशों के साथ व्यापार और संबंधों को मज़बूती दी जा सके. ऐसे में यदि वहां तालिबान का कब्जा होगा तो इन सभी परियोजनाओं पर खतरे की आशंका बढ़ जाएंगी क्योंकि इससे अफगानिस्तान के रास्ते अन्य देशों में भारत की पहुंच बाधित होगी.

भारतीय हित की सुरक्षा तभी संभव है जब काबुल में एक ऐसी सरकार हो जो कश्मीर को निशाना बनाने वाले पाकिस्तान स्थित आतंकवादी गुटों का समर्थन ना करती हो. पाकिस्तान की जमीन से संचालित आतंकी गुटों से निपटने को लेकर अफगानिस्तान भारत के लिए बेहद अहम है. भारत इस बात से चिंतित है कि पाकिस्तान समर्थित तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा किए जाने के बाद से उसके हितों को खतरा पैदा हो सकता है.

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बयान में कहा कि अफगानिस्तान में अगर तालिबान बलपूर्वक सत्ता में आता है तो उसे दुनिया मान्यता नहीं देगी. भारत इस बात से चिंतित है कि पाकिस्तान समर्थित तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा किए जाने के बाद से उसके हितों को खतरा पैदा हो सकता है. जब 1996-2001 के बीच तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा था, तो कश्मीर में आतंकवाद के मामलों में तेजी देखी गई थी. आंशका इस बात की भी है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों के वापस जाते ही पाकिस्तान तालिबान की मदद से कश्मीर में आतंकी घटनाओं को अंजाम दे सकता है. 

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