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घातक कोरोना वायरस से पूरे विश्व में तकरीबन 5.85 लाख लोगों की मौत हो चुकी हैं और इसका कहर रुकने का नाम नहीं ले रहा है. भारत में इस वायरस से 10.40 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और 26 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी हैं. रोज कोरोना के बढ़ते मामलों ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर हम इस जानलेवा वायरस के प्रकोप से कैसे बचेंगे?

हालांकि कोविड-19 वायरस से जूझ रही दुनिया इससे बचाव के लिए हर तरह से प्रयासरत है. वैसे तो इस वायरस को खत्म करने का सबसे कारगर तरीका है एंटीडोट यानी वैक्सीन. लेकिन जब तक इसका वैक्सीन विकसित नहीं हो जाता तब तक कैसे बचा जाए इसे लेकर वैज्ञानिक अलग-अलग उपाय सुझाते रहे हैं. उसीमें से एक उपाय है 'हर्ड इम्युनिटी'. आइए जानते है 'हर्ड इम्युनिटी' क्या होता है? और यह कोरोना से बचाव के लिए कारगर कैसे साबित हो सकता है?

क्या है हर्ड इम्युनिटी?

हर्ड इम्युनिटी मेडिकल साइंस की एक प्रक्रिया है, जिसके तहत आबादी के एक तय हिस्से को वायरस से संक्रमित कर दिया जाता है. इसके पीछे मकसद ये होता है कि उनमें वायरस से निपटने के लिए रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए. यानी इंसान का शरीर उस वायरस से इम्यून हो जाए. आसान भाषा में कहे तो इंसानी शरीर में वायरस का एंटीबॉडीज विकसित हो सके.

अब सवाल ये उठता है कि कोरोना वायरस के केस में हर्ड इम्युनिटी के लिए कितनी फीसदी जनसंख्या का इम्यून होना आवश्यक है. इस बारे में कोई सटीक सीमा निर्धारित नहीं हो पाया है. एक्सपर्ट्स की माने तो ये कुल आबादी का तकरीबन 60 से 70 फीसदी हो सकता है.

हर्ड इम्युनिटी वह स्तर होता है, जिसके बाद वायरस व्यापक रूप से नहीं फैल पाता. जब वायरस एक शरीर से दूसरे शरीर में ट्रांसफर होगा तो उसकी क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है और धीरे-धीरे यह खत्म हो जाती है. अब ये पता कैसे चलेगा कि लोगों में हर्ड इन्यूनिटी विकसित हुई या नहीं, तो इसका पता लगाने के लिए हमें एंटीबॉडी किट की जरूरत होगी. इस किट से हम पता कर पाएंगे कि कितने लोग कोविड-19 से संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं.

बहरहाल हर्ड इन्यूनिटी को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद हैं और कईयों ने तो इसे घाटक भी बताया हैं.

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