बिहार में विधानसभा चुनाव 2020 का बिगुल बज चुका है. सभी राजनीतिक दल जोर-शोर से चुनावी रण में उतरने के लिए कमर कस चुके हैं. कोरोना काल में हो रहे इस चुनाव में पिछले चुनावों की तरह चहल-पहल तो नहीं दिखाई दे रहा है, परंतु आम लोगों से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों तक गुणा-भाग लगाने में मशगूल है. दांवों और प्रतिदांवों का माहौल गर्म हैं और सियासी शह-मात का खेल शुरू हो चुका है. तो आइए आज हम आपकों बताते है इस विधानसभा रण के कौन-कौन से है महारथी जिनके सिर सज सकता है बिहार का ताज.

मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच नज़र आ रहा है. लेकिन एनडीए से अलग होकर लड़ रही लोजपा एनडीए के घटक दल जेडयू का खेल बिगाड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी. बदलते सियासी समीकरण में सत्ता के चौसर की बिसात पर सभी राजनीतिक दल ने पूरी दम-खम लगाकर चुनावी दंगल में कूद पड़ी है. एनडीए ने जहां नीतिश कुमार के नेतृत्व में भरोसा जताते हुए आत्मनिर्भर बिहार नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. वहीं महागठबंधन तेजस्वी यादव की अगुआई में उतरी है.

अब बात करते हैं कि लोजपा की तो वो चिराग पासवान के बिहार फर्स्ट नारे के साथ मैदान फतेह करने की जुगत में है. चिराग अपने इरादे पहले ही जता चुके हैं कि उन्हें बीजेपी से कोई बैर नहीं है और नीतिश की खैर वो चाहते नहीं. इसलिए तो जहां-जहां नीतिश की पार्टी जेडयू अपने उम्मीदवार खड़ी कर रही हैं. वहां-वहां चिराग भी अपने प्रत्याशी उतार रहे हैं. भाजपा ने भी इस पूरे प्रकरण पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देकर चुप्पी साधे रखी. उसका मौन एक तरीके से सहमती के समान है.



पिछले विधानसभा चुनाव 2015 की स्थिति पर गौर करे तो हम पाते हैं कि लोजपा पिछली बार भले ही 2 सीटें जीत पाई थी, मगर 36 सीटों पर दूसरे और 2 पर तीसरे नंबर पर थी. अब जबकि लोजपा एनडीए से बाहर है और जदयू को 122 सीटें दी गई हैं, जिसमें हम पार्टी को 7 सीटें शामिल हैं. भाजपा के खाते में 121 सीटें हैं और वीआईपी को उसने अपने खाते से 11 सीटें दी हैं. आज के हालात में उसके हाथ में 110 सीटें हैं. पर, जिन सीटों पर भाजपा खुद नहीं लड़ेगी, वहां क्या करेगी यह देखना दिलचस्प होगा.

अब बात करते है बिहार में कुल 243 विधानसभा की सीटों की, जिनमें से सत्ता पाने के लिए मिशन 122 सीटों के आंकड़े पूरी करनी होगी. यदि पिछले विधानसभा यानी 2015 में हुए चुनाव पर गौर फरमाये तो उसमें 243 सीटों में से महागठबंधन को 178 सीटों पर बंपर जीत हासिल हुई थीं. राजद को 80, जेडीयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं. उस वक्त राजद और जेडीयू के हिस्से में 101-101 सीटें आई थीं और कांग्रेस के हिस्से में 41 सीटें. दूसरी ओर, एनडीए को करारी शिकस्त झेलना पड़ा और उसे मात्र 58 सीटें हीं मिली पाईं. 165 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली भाजपा 53 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थीं. वहीं लोजपा के हिस्से 42 सीटें आई थीं जिसमें से वो मात्र 2 सीटें ही जीत सकीं. राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी(रालोसपा) को भी 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थीं. वहीं हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा(हम) केवल 1 सीट ही जीत पाई थी. मांझी को छोड़ हम के सभी उम्मीदार हार गए.

अब विधानसभा चुनाव 2020 में सियासी समीकरण बदल चुके हैं. जेडयू एनडीए के साथ है तो वहीं लोजपा एनडीए से अलग हो चुकी है और जेडयू के विरोध में ताल ठोके खड़ी है. रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा मयावती और असदुद्दीन ओवैसी के साथ अलग फ्रंट बनाकर मैदान में डटे हुए हैं. अगर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनती है यानी किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलती तब उस स्थिति में लोजपा और रालोसपा कम सीटें होने के बावजूद सत्ता की कूंजी बनकर उभरेंगे जो किसी भी करवट जा सकते हैं. 


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