गणपति चतुर्थी के दिन बप्पा को घर एवं पंडालों में हिंदू सनातन परंपरा के मुताबिक प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. श्रद्धालु पूरे 10 दिन बप्पा को अपने घर में रखते हैं. फिर उसके बाद उनका विसर्जन करना जरूरी होता है. उनका विसर्जन जल में ही किये जाने का विधान है. आखिर पानी में ही क्यों? इसके पीछे वैज्ञानिक एवं पौराणिक दोनों पहलू जुड़े हुए हैं. 

वैज्ञानिक मतानुसार प्रकृति पांच तत्वों का समूह हैं. ये पांच तत्व हैं क्षिति(पृथ्वी), जल(पानी) पावक(आग) गगन(आकाश) समीरा(हवा). बप्पा के नाम गणेश का संधि विच्छेद होता है, गण+ईश गण का शाब्दिक अर्थ होता है समूह और ईश का भगवान, स्वामि या अधिपति. इन सभी तत्वों के अधिपति हैं भगवान 'गणेश'. भगवान गणेश से ही पंच तत्वों की उत्पति हुई है, जिससे संसार बना. और अंत में उसमें ही सब कुछ विलीन हो जाता है. चूंकि जल में चीजें विलीन हो सकती हैं, इसलिए अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणपति की पूजा अर्चना के बाद उन्हें वापस जल में विसर्जित कर देते हैं. यानि वो जहां के अधिपति हैं वहां पर उन्हें पहुंचा दिया जाता है. इसलिए हिंदू सनातन धर्म में जितने भी देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापित की जाती है, उन सबको जल में ही विसर्जित किया जाता हैं. 


वहीं बात पौराणिक कहानी की करे तो इसको लेकर पुराणों में कहा गया है की महाभारत के रचयिता वेद व्यास भगवान गणेश को चतुर्थी तिथि से महाभारत की कथा सुनानी शुरु की, जिसे गणेश जी लिख रहे थे. इस दौरान व्यास जी ने अपनी आंख बंद कर ली और लगातार दस दिनों तक कथा सुनाते रहे और गणेश जी लिखते रहे. महाभारत की कथा दस दिनों तक चलती रही. जब कथा पूरी हुई और उसके बाद व्यास जी ने अपनी आंखे खोली तो उस वक्त गणेश जी के शरीर का तापमान बहुत बढ़ा हुआ था. 

तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को निकट के सरोवर में ले जाकर डूबकी लगवाई, जिससे उनका शरीर सामान्य हो पाया. तभी से मान्‍यता है कि गणेश जी को चतुर्थी के दिन स्थापित कर, ठीक दस दिनों बाद चतुर्दशी को उन्हें जल में विसर्जित करके ठंडा किया जाता है. 


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