की मैं जिंदगी की दौड़ में बहुत पीछे होती जा रही हूं,
पता नहीं किस भीड़ में उलझती जा रही हूं ।
ना मंजिल मिल रही है ,ना रास्ते ढूंढ पा रही हूं ,
पता नहीं कौन से गलत रास्तों में ही भटकती चली जा रही हूं,
जानती हूं मंजिल मिलने में वक्त तो लगता है,
पर वो वक्त ही तो नहीं बचा है मेरे पास अब ,
बस उम्र बढ़ रही है ,
बाल सफेद हो रहे हैं
मोटापा बढ़ रहा है ,
बीमारियां बढ़ रही है
बस ज़िंदगी नहीं बढ़ पा रही एक आगे,
मुझे पता है मेरी मंजिलों के रास्ते बहुत अलग है
उनको पाने में बहुत वक्त लग सकता है और लगेगा भी ,
पर दिल में अलग सा डर है कि मैं कर पाऊंगी या नहीं
फ़िर अंदर से आवाज आती की एक दिन तुझे सब जानेंगे
मेहनत कर 🫠
और आगे बढ़,